क्‍या उत्तराखंड में फेल हो गई है नसबंदी?

विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर राज्य के शहरी विकास मंत्री और राज्य सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिक ने कहा था कि जनसंख्या को धर्म और समुदाय से जोड़कर देखने के बजाय समृद्धि और विकास से जोड़कर देखना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिए हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर के साथ ही देहरादून और नैनीताल के मैदानी क्षेत्रों पर ज़्यादा ध्यान देगी.
एनएफ़एचस-4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण) के अनुसार भारत का टीएफ़आर (टोटल फ़र्टिलिटी रेट) 2.2 है और उत्तराखंड 2.1 टीएफ़आर के साथ इससे एक ही पॉएंट पीछे है. जानकार मानते है कि उत्तराखंड का टीएफ़आर इससे बेहतर हो सकता था लेकिन राज्य के मैदान ज़िले इसे पीछे खींच रहे हैं. पूरी तरह पहाड़ी ज़िलों में तो टीएफ़आर 1.7 तक है.
हालांकि ये सर्वे और हाल ही में राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़े एक मज़ेदार कहानी बताते हैं. एक लाइन में ये कहानी यह है कि राज्य के पुरुष नसबंदी नहीं करवाते या राज्य में पुरुष नसबंदी कार्यक्रम फ़ेल साबित हुआ है.
एएफ़एचएस-4 जो साल 2015-16 में किया गया सर्वेक्षण है उसके अनुसार परिवार नियोजन के लिए किसी भी तरह के उपाय का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 53.4% है. दस साल पहले 2005-2006 के सर्वेक्षण एएफ़एचएस-3 में यह दर 59.3% थी.

इसी तरह परिवार नियोजन के आधुनिक तरीके इस्तेमाल करने वाले भी दस साल में 55.5% से घटकर 49.3% रह गए हैं. दोनों सर्वेक्षणों के दौरान महिला नसबंदी में भी कमी आ है और यह 32.2% से घटकर 27.4% रह गई है.
लेकिन सबसे ज़्यादा कमी आई है पुरुष नसबंदी में जो पहले भी कभी बहुत अच्छी नहीं रही है. इसकी दर एएफ़एचएस-3 में 1.8% फ़ीसदी थी जो एएफ़एचएस-4 में घटकर आधे से भी कम 0.7% फ़ीसदी रह गई.
IUD/PPIUD के इस्तेमाल में दशमलव एक फ़ीसदी की वृद्धि हुई है और यह 1.5% से बढ़कर 1.6% हो गया है. खाने वाली गोलियों का इस्तेमाल 4.2% से घटकर 3.2% रह गया है.
कंडोम का इस्तेमाल कुछ बढ़ा है और दोनों सर्वे के अंतराल में यह 15.7% से बढ़कर 16.1% हो गया है.
उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग के पिछले तीन साल आंकड़े भी कुछ ऐसी ही तस्वीर पेश करते हैं.
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार 2014-15 में निर्धारित लक्ष्य की तुलना में पुरुष नसबंदी सिर्फ़ 28% और महिला नसबंदी 49 फ़ीसदी ही की जा सकी. IUCD/PPIUD का लक्ष्य 58 फ़ीसदी तक हासिल कर लिया गया तो खाने वाली गोलियों का वितरण पूरा 100% हुआ.
इस साल कंडोम का इस्तेमाल लक्ष्य से भी अधिक 103% किया गया.
इसी तरह 2015-16 में पुरुष और महिला नसबंदी का लक्ष्य क्रमशः 39% और 65% हासिल किया गया. खाने वाली गोलियों का वितरण 99% हुआ और कंडोम का इस्तेमाल 91 फ़ीसदी.
साल 2016-17 में पुरुष नसबंदी की दर और गिरी और यह लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ़ 23% तक ही पहुंच सकी. महिला नसबंदी पिछले साल की ही तरह 65% रही. खाने वाली गोलियों का वितरण भी बीते साल जितना, 99% हुआ और कंडोम का इस्तेमाल इस साल भी गिरा और यह लक्ष्य के मुकाबले 77 फ़ीसदी ही रहा.
राज्य के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉक्टर डीएस रावत कहते हैं कि लोग परिवार नियोजन के लिए क्या तरीका अपनाते हैं यह उनकी मर्ज़ी है. विभाग का लक्ष्य लोगों को विकल्प उपलब्ध करवाना है और कोशिश यह रहती है कि ज़रूरत के समय लोगों को परिवार नियोजन के यह उपाय उपलब्ध रहें (unmet need को कम किया जाए).
डॉक्टर रावत यह भी कहते हैं कि पहाड़ी ज़िलों का टीएफ़आर तो 1.7 तक है और राज्य में जनसंख्या वृद्धि मुख्यतः चार ज़िलों में ही हो रही है. विभाग की कोशिश है कि सभी आर्थिक और सामाजिक वर्गों को ज़्यादा से ज़्यादा जागरूक किया जाए और परिवार नियोजन के साधन अपनाने के लिए प्रेरित किया जाए.

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