जब भगवान शिव ने की प्यार की व्याख्या

बंगाल की रहस्यवादी तांत्रिक परंपरा के अनुसार शिव ने तब तक एक भी शब्द नहीं बोला जब तक उनकी जिंदगी में पार्वती नहीं आईं। वह न सिर्फ उनकी पत्नी बनीं बल्कि उनकी शिष्या और उनसे लगातार संवाद करने वाली भी बनीं। इन संवादों के दौरान ही शिव ने संसार के रहस्यों को उजागर किया। ऐसे ही एक दिन पार्वती ने शिव से पूछा, ‘प्यार क्या है।’

इस सवाल को सुनकर भगवान शिव ने मुस्कुराकर उनकी तरफ देखा और कहा, ‘जब तुम मेरे पास अन्नपूर्णा यानी अन्न की देवी के रूप में आती हो, मेरी भूख मिटाने के बदले में किसी भी चीज की उम्मीद नहीं करतीं। मेरे लिए यही प्यार है। जब तुम मेरे पास सुख की देवी कामाख्या की तरह आती हो और मुझे इस तरह से स्नेह देती हो जैसे कोई नहीं देता। यह भोग है। ये भी एक तरह का प्यार है। जब तुम मेरे पास गौरी की तरह आती हो और मुझे खुद पर हावी होने देती हो। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मेरे सिवाय तुम किसी को ऐसा नहीं करने दे सकतीं। तब मुझे प्यार महसूस होता है। जब तुम मेरे करीब दुर्गा की तरह आती हो और अपने हाथों में शस्त्र लेकर मेरी रक्षा करती हो तब मैं काफी सुरक्षित महसूस करता हूं। मुझे तब भी प्यार महसूस होता है।

यह शक्ति है। मुझे खुद पर ज्यादा हक देने, मेरी रक्षा करना, मुझे शक्ति देना यह सबकुछ मुझे प्रेम की अनुभूति देता है। हालांकि इसके अलावा भी प्रेम के रूप हैं। जब तुम मेरे ऊपर काली के विकराल स्वरूप में नृत्य करती हो, तब भी इस ताकत से भरपूर स्वरूप में भी मैं प्यार महसूस करता हूं। तब मैं यथार्थ रूप में तुम्हारा दर्शन कर पाता हूं। मुझे पता चलता है कि ललिता ही खूबसूरत भैरवी हैं, वही पवित्र मंगला हैं और वही रौद्र रूप वाली चंडिका भी हैं। मैं तुम्हें संपूर्ण स्वरूप में देख पाता हूं। ऐसे में मैं सत्य को पूर्ण स्वरूप में देख पाता हूं।

तुमने मुझे सबकुछ साक्षी भाव से देखने की शक्ति प्रदान की है। इसमें मैं खुद को भी यथार्थ स्वरूप में देख पाया हूं। एक तरह से तुमने मेरे दर्पण का काम किया है। इस पार्वती दर्पण में मैं खुद के सही स्वरूप को देख पा रहा हूं। तुमने मुझे खुद को खोजने में मदद की है। तुम मेरी सरस्वती बन गई हो। तुमने मुझे दर्शन के सही मायने बताए हैं। इस खुशी में मैं नृत्य करता हूं और नटराज बन जाता हूं।

इस तरह से तीन तरह का प्रेम होता है: शरीर के लिए प्रेम जो संतुष्टि देता है, हृदय के लिए प्रेम जो सुरक्षा देता है और दिमाग के लिए प्रेम जो प्रज्ञा प्रदान करता है। पशु पहली और दूसरी तरह का प्रेम दे सकते हैं। सिर्फ इंसान ही है जो तीसरे तरह का गूढ़ प्रेम दे सकता है। पहले दो तरह के प्रेम काम से प्रेरित होते हैं और धरती पर जीवन प्रदान करता है। तीसरी तरह का प्रेम इच्छाओं को मारकर ही पैदा किया जा सकता है और इस पर मृत्यु के भय का भी असर नहीं होता।’पार्वती ने मुस्कुरा कर अपने सवाल के इतने गूढ़ जवाब के लिए शिव को आशीर्वाद दिया।

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