पठानकोट और उड़ी हमले के बाद भी नहीं चेती सरकार: संसदीय समिति

रक्षा प्रतिष्ठानों पर बार-बार हमलों के बावजूद रक्षा मंत्रालय ने उनकी सुरक्षा में सुधार करने के लिए 'ईमानदारी से कदम' नहीं उठाया है। यह कहना है बीजेपी के वरिष्ठ नेता मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी (रिटायर्ड) अगुवाई वाली संसद की एक हाई-पावर संसदीय समिति का। रक्षा मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय पर कई तल्ख टिप्पणियां की है। समिति ने कहा है कि पठानकोट अटैक के बाद मंत्रालय ने जूरी कदम नहीं उठाए।

पठानकोट अटैक में 7 जवानों की मौत हुई थी। संसदीय समिति ने कहा कि सुरक्षा में सुधार के लिए आर्मी के पूर्व उप प्रमुक फिलिप कैंपोज ने मई 2016 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसके बावजूद भी रक्षा मंत्रालय कोई भी कदम उठाता नहीं दिख रहा है। गुरुवार को संसद में पेश हुई संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है, 'सुरक्षा के हालात उतने ही खराब है जितने पठानकोट और उड़ी हमले के वक्त थे। रिपोर्ट के पेश होने के 6-7 महीनों के बाद भी अब तक कोई ठोस कदम उठाया गया हो, ऐसा नहीं लगता।'

 
सरकार तो वहां चेत जाती है जहां वोटों का खतरा होता है ,देश के खतरे से सरकार का कोई लेना देना नहीं

एक रिपोर्ट में बताया था कि पेरिमीटर डिफेंस सिस्टम की तैनाती और जम्मू-कश्मीर में सीमावर्ती चौकियों पर घुसपैठ को लेकर अलर्ट करने वाले उपकरणों को लगाने का काम इसलिए लटका हुआ है, क्योंकि इसे सरकार की तरफ से मंजूरी मिलना बाकी है। जनवरी 2016 में पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के बाद संवेदनशील राज्यों में रक्षा प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को मजबूत करने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए शुरुआती खर्च 400 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया था। हालांकि वह योजना क्रियान्वित हो ही नहीं पाई, जबकि अक्टूबर 2016 में आतंकी एक बार फिर आर्मी कैंप की सुरक्षा को भेदते हुए उड़ी में जबरदस्त हमले को अंजाम देने में कामयाब हो गए। उस हमले में 19 जवान शहीद हुए थे।

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