पेरिस समझौते को नकार ट्रंप ने वैश्विक राजनीति में अमेरिका को पीछे धकेला : ग्रीनपीस

नई दिल्ली।  संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर करने का डोनाल्ड ट्रम्प का गैरजिम्मेदाराना और संकीर्ण निर्णय कई मायनों में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के लिए एक नुकसान है , जबकि भारत के लिए जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने का एक सुनहारा अवसर है। ग्रीनपीस इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा कि संयुक्त राज्य का निर्णय चीन के साथ वैश्विक भू-राजनीति में बदलाव की ओर अग्रसर है जबकि यूरोपीय संघ पहले ही खुद को जलवायु के मुद्दों को लेकर नेतृत्व करने की स्थिति में है।

 कई देशों ने पहले से ही कोयले के कम उपयोग करने को लेकर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में ठोस कदम उठाया है। हाल ही में संपन्न हुए जी ७ शिखर सम्मेलन में, यूरोपीय राष्ट्रों के नेतृत्व में जी -६ के द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अलग-थलग कर किया गया था, सबने पेरिस समझौते के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता दोहराई थी।

 ग्रीनपीस इंडिया के कार्यकारी निदेशक डा. रवि चेल्लम ने कहा, "डोनाल्ड ट्रम्प जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता से कोसों दूर हैं, जबकि विभिन्न सरकारों के अलावा, दुनिया के सबसे बड़े निगमों, धार्मिक नेताओं, बैंकरों, युवाओं, आम नागरिकों, वैज्ञानिकों, निवेश समूहों और सीईओ सहित सभी नेतृत्वकर्ताओं ने मजबूती के साथ जलवायु पर त्वरित कार्रवाई के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। दुनिया के विशाल बहुमत ने पहले ही जलवायु पर कार्रवाई शुरू कर दी है और अक्षय ऊर्जा के उपयोग का उद्योग भी काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत और चीन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रमुख है, जिसने व्यापक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा और कम कार्बन अर्थव्यवस्था को विकसित करना शुरू कर दिया है"। रवि आगे कहते हैं, "यह बदलाव संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ या इसके बिना भी जारी रहेगा, जो अब सीरिया और निकारागुआ की कंपनी में केवल तीन देश हैं, जो वर्तमान में पेरिस समझौते का हिस्सा नहीं हैं।"

भारत, जलवायु परिवर्तन के लिए अत्यधिक संवेदनशील है, जिसकी कृषि अर्थव्यवस्था लगभग पूरी तरह मानसून पर निर्भर है। रवि चेल्लम का कहना था, "भारतीय पहले से ही सूखे और बाढ़ सहित कई गंभीर मौसम की मार से पीड़ित हैं। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और ग्रीनहाउस गैसों के दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक अमेरिका को एक अप्रिय और गैर-जिम्मेदार निर्णय लेकर इस मुद्दे पर वैश्विक प्रगति को पटरी से उतारने की अनुमति नहीं दी जा सकती। जलवायु के मुद्दे पर कार्यवाही सभी वैश्विक नेताओं की एक नैतिक जिम्मेदारी है, विशेष रूप से उन देशों की, जो विश्व स्तर पर संसाधनों का ऐतिहासिक रूप से शोषक रहा है, और जलवायु परिवर्तन में असमानतापूर्वक योगदान करता रहा है।

 भारत में पिछले एक साल में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारी बढ़ोतरी हुई है जिसमें राजस्थान में नवीनतम नीलामी में सोलर टैरिफ २.४४ रुपए प्रति यूनिट कम हो रही है, जो समान्यतया कोयला- बिजली संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली की लागत से काफी कम है।

रवि ने कहा कि "जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत सहित सभी देशों के पास जीत की जबरदस्त संभावना है – स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण से जुड़े सभी देशों के लिए सस्ता, स्वच्छ ऊर्जा, आर्थिक नवाचार और रोजगार के अवसर हैं। साथ ही प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को विशेष रूप से वनों की कटाई, कम हवा और जल प्रदूषण और एक अधिक स्थिर जलवायु ग्रह को अमरीका की उचित हिस्सेदारी करने की जरूरत है, इसलिए हम संयुक्त राज्य अमेरिका से फिर से विवेकशील निर्णय की प्रतीक्षा करते हैं, जबकि अन्य देशों से अपेक्षा करते हैं कि वे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कारगर कदम उठाएं। कम से कम, हम इससे अपनी भावी पीढ़ी के लिए कुछ बेहतर दुनिया बचा सकते हैं।

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