यात्रा के दौरान भीड़ की वजह से अगर पेशाब नहीं जा पाए तो रेलवे देगा हर्जाना

भारतीय रेल को एक प्रभावित व्यक्ति को हर्जाने के तौर पर 30 हजार रुपये देने का आदेश दिया गया है। दरअसल एक ट्रेन में बिना टिकट चढ़ी भीड़ को रोक पाने में नाकाम रहने की वजह से उस व्यक्ति को काफी तकलीफ से गुजरना पड़ा। तकलीफ भी ऐसी कि पीड़ित व्यक्ति घंटों तक पेशाब किए बिना ट्रेन में खड़ा रहा। मामले में पीड़ित ने उपभोक्ता अदालत का सहारा लिया जिसके बाद उसे हुई परेशानी के बदले में 30 हजार रुपये जुर्माना अदा करने का आदेश दिया गया।
 
एक उपभोक्ता अदालत ने भारतीय रेलवे से कहा है कि को देव कांत बग्गा को घंटों तक पेशाब नहीं जा सकने के कारण हुई परेशानी के लिए हर्जाना दे। भारत सरकार के कानून मंत्रालय में डिप्टी कानूनी सलाहकार देव कांत साल 2009 में अपने परिवार के साथ अमृतसर से दिल्ली जा रहे थे।

इसके लिए उन्होंने रिजर्वेशन करवाया था। वो बताते हैं, "लुधियाना के पास एक स्टेशन में बिना टिकट के बड़ी भीड़ डिब्बे में आ गई। मेरा सफर रात भर का था। इस दौरान बाथरूम जाना, हाथ धोने जाना होता है।

2010 में देव कांत ने उपभोक्ता अदालत से की थी शिकायत

भीड़ इतनी थी कि बाथरूम की तरफ जाना मुश्किल हो रहा था।" वो कहते हैं, "डिब्बे में नीचे, चलने के रास्ते पर सभी जगह पर लोग भरे हुए थे। उसमें कुछ औरतें थीं जो बच्चे के साथ फर्श पर लेटी हुई थीं। कई औरतें बाथरूम के सामने भी लेट गई थीं इसकी वजह से हम पेशाब तक नहीं जा सकते थे। मैं और मेरे परिवार के लोगों को कई घंटों तक पेशाब रोक कर बैठे रहना पड़ा।"

देव कांत बताते हैं कि उन्होंने टीटीई को इस बारे में बताया, लेकिन उन्होंने कहा कि वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। 2010 में देव कांत ने रेल मंत्रालय में इसकी शिकायत की थी। बाद में उन्होंने उपभोक्ता अदालत का रुख किया।

वो कहते हैं, "भाग्य की बात है कि मेरे पास एक कैमरा था तो मैंने कुछ तस्वीरें लीं और वीडियो बनाया।" वो कहते हैं, "मंत्रालय ने माना कि बिना उचित कागज के लोग डिब्बे में चढ़े थे, लेकिव उन्होंने कहा कि लोगों को अंबाला में उतार दिया गया था, लेकिन मैं जानता था कि वो लोग तो दिल्ली तक आए थे।"

कोर्ट ने रेलवे को दिया 30 हजार हर्जाने का आदेश

इस सिलसिले में कोर्ट ने रेलवे को दो साल पहले ही 30 हजार रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया था, लेकिन रेलवे ने इसका विरोध करते हुए अपील दायर की थी। देव कांत कहते हैं, "रेलवे से पैसा पाना मेरा उद्देश्य नहीं है, जिसकी ड्यूटी थी उसे कोई नोटिस नहीं भेजा गया, किसी को चेतावनी नहीं दी गई। हमारी व्यवस्था में किसी की जिम्मेदारी ही तय नहीं है।"

हमारे देश में विडंबना है कि, "इस छोटे से अधिकार के लिए भी हमें दर-बदर ठोकरें खानी पड़ती हैं।" वो कहते हैं, "मैं तो कानूनी बैकग्राउंड से हूं तो मैंने सब्र रखा, लेकिन आम आदमी तो टूट जाता है।" बीबीसी ने भारतीय रेल से भी इस बारे में बात करने की कोशिश की। रेलवे के प्रवक्ता का कहना है कि वो फिलहाल इस विषय पर टिप्पणी नहीं कर सकते।

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