सावन की नागपंचमी पर करें ये पूजन, सात पीढिय़ों की रक्षा करेंगे नाग देवता

सावन मास के कृष्ण एवं शुक्ल दोनों पक्षों की पंचमी को व्रत करने का विधान है। बंगाल और राजस्थान में कृष्ण पक्ष की पंचमीं यानि 14 जुलाई को और शुक्ल पक्ष की पंचमीं का व्रत 27 जुलाई को होगा। व्रत करने वाला प्राणी चतुर्थी यानि एक दिन पहले एक समय भोजन करे तथा अगले दिन उपवास रखे, गरुड पुराण के अनुसार व्रती अपने घर के मुख्य द्वार के दोनों ओर गोबर से फनियर नागों के चित्र बनाए तथा आटे अथवा मिट्टी के सांप बनाकर उन्हें विभिन्न रंगों से सजाए, उनका विधिवत सफेद कमल से पूजन करे। पंचम तिथि का स्वामी नाग माना जाता है इसलिए धूप, दीप, कच्चा दूध, खीर, भीगे हुए बाजरे घी व नेवैद्य आदि से नाग देवता का पूजन करे। गेंहू, भूने हुए चने और जौं का प्रसाद नागों को चढ़ाएं तथा आप भी इन्हीं चीजों का भोजन करें और प्रसाद के रूप में बांटे।


‘ओम कुरुकुल्ये हुं पट स्वाहा’ मंत्र का जाप और नाग स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। नागों को भोजन कराने के उद्देश्य से ब्राह्मणों और सन्यासियों को भोजन करवाएं। मंदिर में जाकर दूध से नागदेवता को स्नान कराए तथा सांपों के बिल के बाहर उन्हें मीठा दूध पिलाने के लिए रखें। संभव हो तो सपेरों को सांप के लिए दूध तथा पैसे भी दें।


पौराणिक कथा
मान्यता के अनुसार एक किसान के दो बेटे तथा एक पुत्री थी, एक दिन हल चलाते समय उसने सांप के 3 बच्चों को हल से रौंदकर मार डाला, नागिन बच्चों के दुख में बहुत दुखी हुई, उस ने बदला लेने के लिए रात को जाकर किसान की पत्नी और उसके दोनों बेटों को डस लिया तथा अगले दिन वह उसकी बेटी को डंसने गई तो किसान की बेटी ने उसे मीठा दूध पिलाया तथा अपने माता-पिता को माफ करने के लिए प्रार्थना की। नागमाता प्रसन्न हुई तथा उसने सभी को जीवन दान दिया। बेटी ने हर साल नागमंचमीं के दिन पूजा करने का वायदा किया। कहा जाता है कि जो नागदेवता की पंचमी को पूजा करता है उसकी सात पीढिय़ों की रक्षा नागदेवता करते हैं।

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