कौन से ग्रह बाधक बनते है संतान सुख में? जानें उचित समाधान

वेदों के अनुसार आत्मा को अजर-अमर कहा गया है। गीता में भी कहा गया है कि, जिस प्रकार मनुष्य फटे हुए जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण कर लेता है। ठीक उसी प्रकार यह जीवात्मा पुराने जीर्ण शरीर को त्यागकर नई देह को धारण कर लेती है। हमारे यहां पुनर्जन्म का सिद्धांत है। हर जीवात्मा अपने पूर्व कर्मों के अनुसार निश्चित मां-बाप के यहां जन्म लेती है और जन्म लेते समय आकाश में ग्रहों और नक्षत्रों की जो स्थिति होती है उस आकाशीय नक्शे के अनुसार व्यक्ति का जीवन निर्धारण होता है। जिसे ज्योतिष शास्त्र जन्मांग या कुंडली का नाम देता है।


एक कुशल ज्योतिषी व्यक्ति के जन्मांग से ज्योतिष के द्वारा उसके भूत, भविष्य, प्रकृति और चरित्र को जान लेता है। जन्मांग व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का दर्पण होता है। कुंडली के बाहर भाव जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से संबंधित रहते हैं लेकिन मैं यहां केवल पंचम भाव से संबंधित संतान क्षेत्र को ही पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं।

बुद्धि प्रबंधात्मजमंत्र विद्या विनेयगर्भ स्थितिनीति संस्था:।
सुताभिधाने भवने नराणां होरागमज्ञै: परिचिन्तनीयम्।।


जातकाभरणम्
बुद्धि, प्रबंध, संतान, मंत्र (गुप्त विचार), गर्भ की स्थिति, नीति आदि शुभाशुभ विचार पंचम भाव से करना चाहिए। पंचम भाव की राशि एवं पंचमेश, पंचमेश किस राशि एवं स्थान में बैठा है तथा उसके साथ कौन-कौन से ग्रह स्थित हैं। पंचम भाव पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है, पुत्र कारक गुरु, नवम भाव तथा नवमेश की स्थिति, नवम भाव पंचम से पंचम होता है।


अत: यह पोते का स्थान भी कहलाता है। पंचम भाव के स्वामी पर किन-किन भावेशों की दृष्टि है, पंचमेश कारक है या अकारक, सौम्य ग्रह है या दृष्ट ग्रह तथा पंचम भाव से संबंधित दशा, अंतर्दशा और प्रत्यंतदशा आदि।

संतानधिपते: पञ्चषष्ठरि: फस्थिवेखले।
पुत्रोभावो भवेत्तस्य यदि जातो न जीवति।।

 

पंचमेश से 5/6/10 में यदि केवल पापग्रह हो तो उसको संतान नहीं होती, हो भी तो जीवित नहीं रहती हैं।

मंदस्य वर्गे सुतभाव संस्थे निशाकरस्थेऽपि च वीक्षितेऽमिन्।
दिवाकरेणोशनसा नरस्क पुनर्भवासंभव सूनुलब्धे:।।

 

पंचम भाव में शनि के वर्ग हों तथा उसमें चंद्रमा बैठा हो और रवि अथवा शुक्र से दृष्ट हो तो उसको पौनर्भ व (विधवा स्त्री से विवाह करके उत्पन्न) पुत्र होता है।

नवांशका: पंचम भाव संस्था यावन्मितै : पापखगै:द्रदृष्टा:।
नश्यंति गर्भ: खलु तत्प्रमाणाश्चे दीक्षितं नो शुभखेचरेंद्रे :।।

 

पंचम भाव नवमांश पर जितने पापग्रह की दृष्टि हो उतने गर्भ नष्ट होते हैं किन्तु यदि उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो।

भूनंदनों नंदनभावयातो जातं च जातं तनयं निहन्ति।
दृष्टे यदा चित्र शिखण्डिजेन भृगो: सुतेन प्रथमोपन्नम्।।

 

पंचम भाव में केवल मंगल का योग हो तो संतान बार-बार होकर मर जाती है। यदि गुरु या शुक्र की दृष्टि हो तो केवल एक संतति नष्ट होती है और अन्य संतति जीवित रहती है। बंध्या योग, काक बंध्या योग, विषय कन्या योग, मृतवत्सा योग, संतित बाधा योग एवं गर्भपात योग स्त्रियों की कुंडली में होकर उन्हें संतान सुख से वंचित कर देते हैं। इस प्रकार के कुछ योग निम्रलिखित हैं :


लगन और चंद्र लगन से पंचम एवं नवम स्थान से पापग्रहों के बैठने से तथा उस पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो। लगन, पंचम, नवम तथा पुत्रकारक गुरु पर पाप प्रभाव हो लगन से पंचम स्थान में तीन पाप ग्रहों और उन पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो। आठवें स्थान में शनि या सूर्य स्वक्षेत्री हो। तीसरे स्थान पर स्वामी तीसरे ही स्थान में पांचवें या बारहवें में हो और पंचम भाव का स्वामी छठे स्थान में चला गया हो।


जिस महिला जातक की कुंडली में लगन में मंगल एवं शनि इकट्ठे बैठे हों। लगन में मकर या कुम्भ राशि हो। मेष या वृश्चिक हो और उसमें चंद्रमा स्थित हो तथा उस पर पापग्रहों की दृष्टि हो।


पांचवें या सातवें स्थान में सूर्य एवं राहू एक साथ हों। पांचवें भाव का स्वामी बारहवें स्थान में व बारहवें स्थान का स्वामी पांचवें भाव में बैठा हो और इनमें से कोई भी पाप ग्रह की पूर्ण दृष्टि में हो।


आठवें स्थान में शुभ ग्रह स्थित हो साथ ही पांचवें तथा ग्यारहवें घर में पापग्रह हों। सप्तम स्थान में मंगल-शनि का योग हो और पांचवें स्थान का स्वामी त्रिक स्थान में बैठा हो।


पंचम स्थान में मेष या वृश्चिक राशि हो और उसमें राहू की उपस्थिति हो या राहू पर मंगल की दृष्टि हो। शनि यदि पंचम भाव में स्थित हो और चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि में हो और पंचम भाव का स्वामी राहू के साथ स्थित हो।


मंगल दूसरे भाव में, शनि तीसरे भाव में तथा गुरु नवम या पंचम भाव में हो तो पुत्र संतान का अभाव होता है। यदि गुरु-राहू की युति हो। पंचम भाव का स्वामी कमजोर हो एवं लग्न का स्वामी मंगल के साथ स्थित हो अथवा लगन में राहू हो, गुरु साथ में हो और पांचवें भाव का स्वामी त्रिक स्थान में चला गया हो।


पंचम भाव में मिथुन या कन्या राशि हो और बंधु मंगल के नवमांश में मंगल के साथ ही बैठ गया हो और राहू तथा गुलिक लगन में स्थित हो। आदि-आदि कई योगों का वर्णन ज्योतिष ग्रंथों में मिलता है जो संतति सुख हानि करता है तथा कुंडली मिलान करते समय सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए इन्हें विचार में लाना अति आवश्यक होता है।


पति या पत्नी में से किसी एक की कुंडली में संतानहीनता योग होता है तो दाम्पत्य जीवन नीरस हो जाता है। अनुभव में यह भी नहीं पाया गया है कि संतानहीनता योग वाली महिला की शादी संतति योग वाले पुरुष के साथ की जाए अथवा संतानहीन योग वाले पुरुष की शादी संतित योगा वाली महिला के साथ की जाए और इस प्रकार का कुयोग दूर हो जाए लेकिन यह कुयोग नहीं कटता और जीवन भर संतान का अभाव बना रहता है। ऐसी स्थिति में ईश कृपा, देव कृपा या संत कृपा ही इस कुयोग को काट सकती है। निम्र उपाय भी संतान सुख देने में सहायक होते हैं।


षष्ठी देवी का जप पूजन एवं स्त्रोत पाठ आदि का अनुष्ठान पुत्रहीन व्यक्ति को सुयोग पुत्र संतान देने में सहायक होता है।


संतान गोपाल मंत्र- ॐ क्लीं  ॐ क्लीं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि ने तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ का जप एवं संतान गोपाल स्रोत का नियमित पाठ भी संतति सुख प्रदान करने वाला होता है।


इसके अतिरिक्त भगवान शिव की आराधना एवं जप, पूजा, अनुष्ठान, कन्या दान, गौदान एवं अन्य यंत्र-तंत्र तथा औषधियां अपनाने से भी संतति सुख प्राप्त किया जा सकता है।


गुरु, माता-पिता, ब्राह्मण, गाय आदि की सेवा, पुण्य, दान, यज्ञ आदि संतानहीनता को मिटाने वाले होते हैं।


नवरात्रि में सर्ववाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:। मनुष्यों मत्प्रसादेन भवि यति न संशय:।।


इस मंत्र से दुर्गा सप्तशती का नवचंडी या शतचंडी पाठ का अनुष्ठान भी संतान सुख देता है। 

Leave a Reply