भगवान शिव के प्रकोप से बचना है तो पूजा के समय रखें इन बातों का ध्यान

सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा का विधान है। भगवान शंकर अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। भगवान शिव ही आदि अौर अनंत हैं जो पूरे ब्रह्मांड के कण-कण में विद्यमान हैं। भोलेनाथ एक लोटा जल अर्पित करने से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। जिस पर भगवान शिव की कृपा हो जाती है उसके हर कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवलिंग पर भांग-धतूरा, दूध, चंदन आदि चीजें अर्पित की जाती है। लेकिन शास्‍त्रों में कुछ ऐसी चीजों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें शिवलिंग पर अर्पित नहीं किया जाता। इन चीजों के अर्पण से व्यक्ति को भगवान शिव के प्रकोप का सामना करना पड़ता है। 

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शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पर कभी भी शंख से जल अर्पित नहीं करना चाहिए। श‌िव पुराण के अनुसार भगवान श‌िव ने शंखचूर नाम के असुर का वध क‌िया था। इसल‌िए शंख श‌िव जी की पूजा में वर्ज‌ित है।


शिवलिंग और शिवपूजन में तुलसी पत्ते का प्रयोग भी निषेध है। एक कथा के अनुसार वृंदा का छल से पतिव्रत भंग करके भोलेनाथ ने उसके पति दैत्यों के राजा जालंधर का वध कर दिया था। जिसके कारण वृंदा तुलसी का पौधा बन गई थी अौर श‌िव की पूजा में इस पत्ते को चढ़ाने की मनाही है।


भोलेनाथ को तिल या तिल से निर्मित वस्तुएं नहीं चढ़ाई जाती। कहा जाता है कि तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ है। इसलिए इसे भोलेनाथ पर अर्पित नहीं करते। 


हम खाने में अौर अन्य धार्मिक कार्यों के लिए हल्दी का प्रयोग करते हैं लेकिन शिवपूजा के समय इसका उपयोग नहीं किया जाता। जबकि शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का सूचक है इसलिए उन पर हल्दी का अर्पण वर्जित है।


भोलेनाथ को कनेर और कमल के पुष्प प्रिय लगते हैं। उन्हें लाल रंग के फूल प्रिय नहीं लगते, इसके अतिरिक्त शिवलिंग पर केतकी एवं केवड़े के पुष्प अर्पित नहीं किए जाते।


भगवान शिव को खंड़ित अक्षत नहीं चढ़ाने चाहिए। खंड़ित चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसल‌िए यह भोलेनाथ को नहीं चढ़ाएं जाते।


भोलेनाथ को कुमकुम भी अर्पित नहीं किया जाता। कुमकुम सौभाग्य का प्रतीक है अौर भगवान शिव वैरागी हैं। 

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