मनुष्य जीवन में हम केवल इस देवता का कर सकते हैं दर्शन

एक इंटरव्यू में मौजूद उम्मीदवारों से एक कॉमन सवाल पूछा गया कि सृष्टि में ऐसा कौन है जो सब पर समान दृष्टि रखता है? पूरी दुनिया हर दिन उसका इंतज़ार करती है? इस सवाल ने हर किसी को भ्रमित कर दिया। सभी अपनी-अपनी नजर इधर-उधर दौड़ाने लगे और सोच-विचार में लग गए। सबने सोचकर अलग-अलग जवाब दिए। लेकिन कोई भी एक कॉमन जवाब तक नहीं पहुंच पा रहा था। तब एक किसान के प्रतियोगी बेटे ने इशारे में कहा कि सूर्य की दृष्टि सब पर समान रूप से पड़ती है। वह किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करता है। हम हर दिन उसका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। उसका जवाब बिल्कुल सही था।
वेदों में मित्र शब्द सूर्य के लिए आया है। वह सबका मित्र है और पूरी दुनिया को समान रूप से आलोकित करता है- चाहे वह सजीव हो या निर्जीव, भला हो या बुरा, अमीर हो या गरीब, स्त्री हो या पुरुष, पशु हो या पक्षी। ईसा मसीह ने भी अपने गिरि-प्रवचन (सर्मन ऑन द माउंट) में सूर्य की विशेषता को संपूर्ण जीव-जगत के प्रति परमात्मा के असीम प्रेम का परिचायक माना है तथा हमें उसी की तरह होने की प्रेरणा दी है। सूर्य समबुद्धिता का प्रतीक है। यह समबुद्धिता ही जब मैत्री में निष्पन्न होती है तो बाहरी परिस्थितियों से अप्रतिबद्ध, अनुकूलताओं-प्रतिकूलताओं से निरपेक्ष होने के कारण ध्रुव एवं अटल, निर्ग्रंथ और अबाध होती है। गीता में कहा गया है कि जो सबके प्रति एवं सर्वत्र समबुद्ध है, वह ‌समस्त प्राणियों के हित में सदा संलग्न रहता है, सबका मित्र होता है।
अगर समग्रता में हम किसी बिंदु विचार करें तो जवाब भी सार्वभौमिक होगा। सार्वभौम दृष्टि में ही आत्मज्ञान की अनिवार्य भूमिका छिपी होती है। भगवान महावीर सत्य की साक्षात अनुभूति में मैत्री की अनिवार्यता की घोषणा करते हैं। सत्य के संधान में बीत-राग दृष्टि आवश्यक है। यह दृष्टि मैत्री-भावना में ही संभव है। इसलिए कहा जाता है कि बनना हो तो सूर्य जैसा बनो, जो समानता का सबसे बड़ा प्रतीक है।

हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रारंभ से ही कहा है कि जब तक हम अपने को दूसरों में और दूसरों को अपने में नहीं देख पाते, चैतन्य की विराट सत्ता का साक्षात्कार नहीं कर सकते। देखने की विराट क्रिया अगर अकेला कोई इस सृष्टि में करता है तो वह सूर्य है। सबसे बड़ा सच यही है कि हम सबसे ज्यादा प्रतीक्षा सूर्य की ही करते हैं। सूर्य अकेला ऐसा देवता है जो रोज सशरीर हमारे सामने उपस्थित होता है और हम उसके दर्शन करते हैं। उसके आने से सृष्टि प्रकाशमान होती है और दुनिया का कामकाज शुरू होता है। यह श्रम की सार्थकता को भी परिभाषित करता है।
 

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