सिमटते परिवार के कारण दूर हुआ दादा-दादी का प्यार, बच्चों में लग रही ऐसी लत

रायपुर। आधुनिक शिक्षा-दीक्षा के चक्कर में अब बच्चों का बचपन खोने लगा है। ढाई वर्ष की उम्र में एक तरफ जहां प्ले स्कूल से पढ़ाई शुरू हो गई है, वहीं बेहतर जिंदगी के लिए दिन भर की भौग-दौड़ ने बच्चों और अभिभावकों के बीच दूरी बढ़ गई है। ऐसे में दादा-दादी के प्यार के साथ नौनिहालों की खेलकूद की मस्ती खत्म हो गई है।

भविष्य संवारने के चक्कर में बच्चों के खास दोस्त इंटरनेट और मोबाइल बन गए हैं। मोबाइल की लत से पबजी के बाद टिक-टॉक का क्रेज बढ़ा है। बच्चे भावनात्मक रूप से रोबोट बनते जा रहे हैं। इससे कई बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान दिखने लगे हैं, जबकि एक समय कैरमबोर्ड, लुडो, लगड़ी, लुका-छुपी जैसे खेल अधिक प्रचलित में रहे।
शैक्षणिक संस्थानों में अलर्ट प्रोग्राम

पिछले कुछ सालों से स्कूल और कॉलेज के बच्चे ऑनलाइन गेम्स, सोशल मीडिया, पोर्न कॉन्टेंट, साइबर बुलिंग जैसे इंटरनेट इविल्स के शिकार हुए हैं। इसके चलते स्कूल-कॉलेज में साइबर एजुकेशन लागू किए जाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
वहीं साइबर एजुकेशन के महत्व और जरूरत को देखते हुए सीबीएसई और एनसीईआरटी समेत शहर के कई स्कूलों और संस्थाओं ने भी इस दिशा में कवायद शुरू कर दी है। संस्थाएं स्कूलों में स्पेशल साइबर अलर्ट स्कूल प्रोग्राम भी चला रही है।

खेल के बहाने आपत्तिजनक फोटो
साइबर एक्सपर्ट की मानें तो बच्चों में साइबर अडिक्शन पिछले तीन-चार सालों में ज्यादा बढ़ा है। ऐसे-ऐसे हिंसक गेम्स आ रहे हैं, जिन पर कोई रोक-टोक नहीं है। जैसे पबजी 16 प्लस गेम है, लेकिन हमारे यहां आठ से नौ साल के बच्चे भी खेल रहे हैं। इसी तरह सोशल मीडिया अडिक्शन भी बहुत बढ़ रहा है। इंस्टाग्राम बच्चों में बहुत पॉपुलर है। उसमें कई बार बच्चे आपत्तिजनक फोटोज भी शेयर कर देते हैं। अब टिक-टॉक अडिक्शन भी है। इसे सोशल मीडिया में चाइल्ड ऑनलाइन ग्रूमिंग कहते हैं।

पारंपरिक खेल हुए दूर
पिछले 10 वर्षों में देखें तो आधुनिक परंपरा इस कदर हावी हो गई है कि संस्कार से लेकर रोजमर्रा के कार्यों में शामिल हो गई है। इससे अब स्कूल की छुट्टियों में बच्चे ननिहाल नहीं जाते हैं। ननिहाल का वह आंगन, बाग-बगीचों में गुल्ली डंडा, लुका-छुपी समेत कैरम, लुडो आदि खेले खत्म हो गए हैं। इग्नू से साइकोलॉजी की पढ़ाई कर रही रबीना का कहना है कि पारंपरिक खेल के प्रति आज के युवाओं में रुझान कम है। इसके लिए हर परिजन को सबसे पहले बच्चों में पारंपरिक खेल के प्रति बढ़ावा देना होगा, तभी इस गंभीर रोग से छुटकारा मिल पाएगा।

एकाएक नहीं छूटेगी लत
कई जगह काउंसिलिंग के समय मोबाइल की लत को लेकर अभिभावक प्रश्न करते है, जिसमें उनका यही कहना रहता है कि बच्चा बगैर मोबाइल के न खाना खाता और न ही पढ़ाई करता है। इसके लिए डांटने पर उल्टा जवाब देता है। काउंसलर वर्षा वरवंडकर कहना है कि एकाएक मोबाइल की लत नहीं छूटेगी। उसके लिए धीरे-धीरे उसे रुटीन के कार्यों में लाना होगा।

उदाहरण के तौर पर बच्चे के साथ खेलें, गार्डन में जाएं। वहीं अधिक परेशानी होने पर पैरेंट्स पहले नोटिस नहीं करते और समस्या बढ़ने पर चिकित्सक के पास जाते हैं। खासकर साइको एजुकेशन, पैरेंटल काउंसिलिंग के जरिए बच्चों का इलाज कराना चाहिए, क्योंकि बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर और रोबोट की तरह हो जाते हैं। व्यक्तित्व विकास में कमी, खराब रिजल्ट, मोटापा, कमजोर नजर जैसी समस्याओं की देन इंटरनेट की लत है।

केस-एक

ढाई साल की बेटी सुमन मोबाइल पर कार्टून देखे बिना खाना नहीं खाती है। स्कूल से आने के बाद ही तुरंत मोबाइल के लिए जिद करती है। मना करने पर रोने लगती है।

केस-दो

15 वर्षीय वेद को मोबाइल का उपयोग करने के लिए बहुत मना किया जाता है, लेकिन कुछ न कुछ बहाना बताकर मोबाइल ले लेता है। आदत लगने से आंख में दर्द शुरू हो गया। डॉक्टर को दिखाने के बाद चश्मा लग गया है। अब डॉक्टर ने सख्ती से मोबाइल देखने पर मनाही लगा दी है।

पैरेंट्स के लिए सुझाव

– बच्चों को पर्सनल मोबाइल फोन न दें। यदि देना जरूरी ही है तो की-पैड वाले बेसिक फोन दें।

– बच्चों पर नजर रखें कि वह इंटरनेट या मोबाइल पर कितने घंटे बिताता है। उम्र के हिसाब से उसका स्क्रीन टाइम लिमिट करें।

– बच्चा कौन-कौन से एप्स इस्तेमाल कर रहा है, यह देखें। उसके फोन के पासवर्ड की जानकारी रखें।

– सामान्य यू ट्यूब या गूगल के बजाय बच्चों के लिए सुरक्षित यू ट्यूब फॉर किड और किडल ब्राउजर डाउनलोड करके दें।

– हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग मत कीजिए। अगर हर वक्त बच्चों के सिर पर मंडराते रहेंगे तो वे आपसे चीजें छिपाएंगे।

– बच्चों का भरोसा जीतें, ताकि वे अपनी दिक्कतें आपसे शेयर करें। अगर बच्चा बातें छिपा रहा है तो एक्सपर्ट की मदद लें।

– मां-बाप अक्सर टेक्नोलॉजी के मामले में बच्चों से कम जानते हैं, ऐसे में खुद भी नई टेक्नॉलजी सीखते रहें।

स्कूलों के लिए सुझाव

– बच्चों और पैरेंट्स से बात करने में न हिचकें।

– ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर समय-समय पर इंटरैक्टिव वर्कशॉप करें।

– स्कूल में काउंसलर या कोई ऐसी व्यवस्था की जाए, जहां बच्चे बिना डरे-सहमे समस्याएं शेयर कर सकें।

– स्कूल के कंप्यूटर सिस्टम पर सिक्योर एक्सेस ही प्रदान करें। गैर जरूरी पॉपअप्स ब्लॉक रखें।

– बच्चों को लाइफ-स्किल्स डेवलप करने के लिए प्रोत्साहित करें।

मौजूदा समय मार्केट में उपलब्ध खेल

पंडरी स्थित बच्चों के खेल की दुकान संभाल रही दुकानदार का कहना है कि पहले लुडो, कैरमबोर्ड, क्रिकेट, बैडमिंटन, बॉलीबॉल जैसी खेल सामग्री की मांग अधिक होती थी, लेकिन आज के दौर में मोबाइल पर विभिन्न तरह के एप के माध्यम से बच्चों में इलेक्ट्रॉनिक तरीके से संचालित खिलौने की मांग बढ़ गई है। हालांकि कई अभिभावक आज भी नए तरीके से तैयार पुराने खेल सामग्री को पसंद करते हैं, इसलिए पारंपरिक खेलों का स्वरूप बदला है, लेकिन खेलने की पद्धति पुरानी है।
 

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