अज्ञान ही सारे पापों की जड़ : पं. शास्त्री 

इन्दौर । अहंकार का अंधकार हमारे ज्ञान रूपी प्रकाश को ढंक लेता है। यह अज्ञान ही सारे पापों की जड़ है। भागवत मोक्ष की ऐसी कथा है जो हर युग में शाश्वत और प्रासंगिक है। ईश्वर की लीलाएं अलौकिक होती है, उन्हें आप और हम नहीं समझ सकतें। सुख और दुख जीवन के क्रम है, इन्हें बदलना भगवान के सिवाय किसी और के बूते की बात नहीं हो सकती। दुख का सामना धैर्य और संयम से करना चाहिए। 
ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. नारायण शास्त्री के, जो उन्होंने आज मां अम्बिका नगर, विजय नगर स्थित मेट्रो टाॅवर के पीछे मंदिर परिसर में चल रहे भागवत ज्ञानयज्ञ में उपस्थित भक्तों को कपिलोपाख्यान एवं धु्रव चरित्र प्रसंगों की व्याख्या के दौरान संबोधित करते हुए व्यक्त किए। प्रारंभ में व्यासपीठ का पूजन महिपाल यादव, बंटी भार्गव, लियूष यादव, महिपाल यादव आदि ने किया। विधायक रमेश मेंदोला, आकाश विजयवर्गीय एवं पार्षद मुन्नालाल यादव सहित अनेक जनप्रतिनिधियों ने भी कथा श्रवण का पुण्य लाभ उठाया। संयोजक बंटी भार्गव ने बताया कि भागवत ज्ञानयज्ञ का यह आयोजन शुक्रवार 19 अप्रैल तक प्रतिदिन  सुबह 11 से दोपहर 2 बजे तक मंदिर प्रांगण मां अम्बिका नगर पर होगा। कथा में सोमवार  15 अप्रैल को जड़भरत एवं प्रहलाद चरित्र, 16  को बलि-वामन प्रसंग, श्रीराम एवं कृष्ण जन्मोत्सव, 17 को बाल लीलाएं, गोवर्धन पूजा एवं छप्पन भोग, 18 को महारास लीला, रूक्मणी विवाह,  तथा 19 अप्रैल शुक्रवार को सुदामा चरित्र एवं यज्ञ-हवन के साथ पूर्णाहुति होगी।  
महाराजश्री ने कहा कि  केवल बाहरी वस्त्रों से संतों के लक्षण नहीं जाने जा सकते। संत वही होते हैं जो चित्त से शांत रहकर संसार के कल्याण का ही चिंतन करते हैं। हम भगवान की आरती करते हैं लेकिन भक्ति के स्थान पर भोग रूपी संपत्ति मांगते हैं – सुख-संपत्ति घर आवे… परमात्मा से सुख-संपत्ति मांगना गलत नहीं है लेकिन अपने आपको संतुष्ट रखना भी जरूरी है। हमारी कामनाएं जैसे-जैसे बढ़ती जाती हैं, हम भक्ति से दूर होकर भोग की ओर प्रवृत्त होने लगते हैं। बालक धु्रव की भक्ति निष्काम थी। भक्ति में स्वार्थ नहीं होना चाहिए। पाखंड और प्रदर्शन से युक्त भक्ति सार्थक नहीं हो सकती।

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