अनाथ आश्रम से हॉल ऑफ फेम अवार्ड तक पहुंची लीजा  

आईसीसी के हॉल ऑफ फेम अवार्ड से सम्मानित ऑस्ट्रेलिया की पूर्व महिला ऑलराउंडर लीजा स्टालेकर ने पुणे के अनाथ आश्रम से यहां तक का सफर तय किया है। 
लीजा का जन्म भारत में हुआ। उन्हें पुणे के किसी अनाथ आश्रम में छोड़ दिया गया। उस समय स्टालेकर परिवार ने तीन सप्ताह की उस छोटी सी बच्ची को गोद ले लिया। इस बात उन्होंने 2013 में खेल को अलविदा कहने के बाद सार्वजनिक की थी। वह एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय में 1000 रन बनाने और 100 विकेट लेने वाली पहली महिला क्रिकेटर हैं। इतना ही नहीं साल 2007-10 में करीब तीन साल तक 934 दिन तक वह विश्व की नंबर महिला ऑलराउंडर भी रही हैं। 
स्टालेकर ऑफ फेम में शामिल होने वाली ऑस्ट्रेलिया की ओर से 27वीं और पांचवीं महिला क्रिकेटर हैं। उनसे पहले बेलिंडा क्लार्क, बेटी विलसन, केरन रॉल्टन और कैथरीन फिटपैट्रिक को भी यह अवार्ड मिला था। उन्होंने 2013 में अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को अलविदा कह दिया था। उन्होंने 30.65 के औसत से 2728 रन बनाए इसके साथ ही 24.97 के औसत से 146 विकेट भी लिए हैं। वह महिला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 2000 रन और 100 विकेट लेने वाली पांच महिला क्रिकेटरों में भी शामिल हैं। स्टालेकर ऑस्ट्रेलिया की चार विश्व कप विजेता टीम का भी हिस्सा रही हैं। 
खेल ने बदली जिंदगी : सारिका
भारतीय महिला खो-खो टीम की पूर्व कप्तान सारिका काले ने कहा है कि खेल से उनकी जिंदगी बदल गयी है। प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार के लिये चयनित सारिका ने कहा है कि जीवन में एक समय ऐसा भी गुजरा है जब उन्हें दिन भर में एक बार ही खाना मिल पाता था। वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार में खेल अधिकारी पद पर कार्यरत काले को 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। दक्षिण एशियाई खेल 2016 में स्वर्ण पदक विजेता भारतीय टीम की कप्तान रही काले ने कहा, ‘‘मुझे भले ही इस साल अर्जुन पुरस्कार के लिये चुना गया है पर मैं उन दिनों को नहीं भूल सकती जब जब मुझे दिन में केवल एक बार भोजन मिल पाता था। ’’ 
उन्होंने कहा, ‘‘अपने परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण मैं खेल में आयी।’’ काले ने कहा, ‘‘उन समय मुझे खाने के लिये दिन में केवल एक बार मिलता था। मुझे तभी खास भोजन मिलता था जब मैं शिविर में जाती थी या किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये जाती थी। ’’
काले ने कहा कि कई परेशानियों के बावजूद उनके परिवार ने उनका साथ दिया और उन्हें कभी विभिन्न टूर्नामेंटों में भाग लेने से नहीं रोका। उन्होंने कहा, ‘‘खेलों में ग्रामीण और शहरी माहौल का अंतर यह होता है कि ग्रामीण लोगों को आपकी सफलता देर में समझ में आती है भले ही वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो।’’ वहीं सारिका 2016 में अपने परिवार की वित्तीय समस्याओं के कारण परेशान थी। उसने यहां तक कि खेल छोड़ने का फैसला कर लिया था पर बाद में वह मैदान पर लौट आयी और यहीं से उसके जीतन में बदलाव आया। 
 

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