एहतियात ना बरतने पर सेहत को नुकसान पहुंचाएगा हीमोफीलिया

नई दिल्ली । रक्त का ठीक से थक्का ना बनने की वजह से हीमोफीलिया नामक एक दुर्लभ अनुवांशिक रक्त स्त्राव विकार हो जाता। जिसके कारण चोट लगने पर व्यक्ति आसानी से पीड़ित होता है और लंबे समय तक खून बहता रहता है। रक्तस्राव को रोकने के लिए आवश्यक क्लोटिंग फैक्टर्स नामक प्रोटीन के अनुपस्थित होने की वजह से ऐसा होता है। रक्त में मौजूद क्लोटिंग फैक्टर्स की मात्रा स्थिति की तीव्रता निर्भर करती है। करीब 2 लाख ऐसे मामलों के साथ भारत हीमोफीलिया के रोगियों की संख्या में विश्व में दूसरे स्थान पर आता है। आमतौर पर यह हालत विरासत में मिलती है और हर 5000 पुरुषों में से एक इस विकार के साथ पैदा होता है। फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ के के अग्रवाल के अनुसार महिलाएं हीमोफीलिया की वाहक होते हैं। यह विकार तब तक जानलेवा नहीं होता जब तक किसी महत्वपूर्ण अंग में रक्त स्त्राव ना हो। गंभीर रूप से कमजोर करने वाले इस प्रकार का कोई ज्ञात इलाज नहीं है। उन्होंने बताया कि बच्चे व मां की में जीन के एक नए उत्परिवर्तन की वजह से लगभग एक तिहाई नए मामले सामने आते हैं। उन मामलों में जहां मां वाहक होती है और पिता में विकार नहीं होता तब लड़कों में हीमोफीलिया होने का 50 फीसदी अंदेशा होता है। वहीं लड़कियों की वाहक होने का 50 फीसदी खतरा रहता है। गंभीर सिरदर्द, बार- बार उल्टी, गर्दन में दर्द, धुंधली निगाह, अत्यधिक नीद और एक चोट से लगातार खून बहने से लक्षण दिखाई दे ऐसी स्थिति में डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
अग्रवाल ने बताया कि हीमोफीलिया के प्राथमिक उपचार को फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी कहते हैं। इस थेरेपी में कमी वाले फैक्टर को क्लॉटिंग फैक्टर 8 (हीमोफीलिया ए के लिए) या क्लॉटिंग फैक्टर 9 (हीमोफीलिया बी के लिए) की सांद्रता से रिप्लेस किया जाता है। इसे सीधा रक्त में एक नस के माध्यम से रोगी में इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है। इस विकार से बचने के लिए सुझाव देते हुए डॉ अग्रवाल ने बताया कि पर्याप्त शारीरिक गतिविधि, दांत और मसूड़ों की अच्छी तरह से सफाई, रक्त संक्रमण के लिए नियमित रूप से परीक्षण, ब्लड थिनिंग दवा जैसे वार्फरिन और हेपरिन एवं एस्पिरन और इबुप्रोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर दवाओं से भी बचना चाहिए।

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