कमजोर हो रहा है हिमालय का शिवालिक क्षेत्र, उत्तराखंड में 4 महीने तक खनन पर रोक

नैनीताल
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य में चल रही हर तरह की खनन गतिविधियों पर चार महीनों के लिए 'पूर्ण रूप से बैन' लगाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को इस मामले में एक उच्च स्तरीय कमिटी बनाने का निर्देश भी दिया है।

कोर्ट ने कहा कि समिति उत्तराखंड में चल रही हर तरह की खनन गतिविधियों का अध्ययन करे और बताए कि क्या राज्य में खनन की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। समिति पर्यावरण हितों को ध्यान में रखते हुए अगले 50 साल के लिए खनन गतिविधियों का ब्लूप्रिंट भी तैयार करेगी। ये निर्देश कोर्ट ने बागेश्वर जिले में चल रहे अवैध खनन के मामले में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

हाईकोर्ट की बेंच ने कहा,'उच्च स्तरीय समिति अगले चार महीने में एक अंतरिम रिपोर्ट सौंपकर बताएगी कि राज्य में चल रही खनन गतिविधियां जारी रह सकती हैं या नहीं। तब तक के लिए जंगलों और नदियों के पास वाले इलाकों समेत पूरे राज्य में खनन पर पूरी तरह से बैन रहेगा।' जस्टिस राजीव शर्मा और सुधांशु धूलिया की बेंच का यह आदेश खनन माफिया द्वारा वन विभाग के अधिकारी की हत्या के एक दिन बाद आया है। अधिकारी की हत्या से उत्तराखंड में सनसनी फैल गई थी।


बेंच ने कहा,'हिमालय का शिवालिक क्षेत्र लगातार होने वाली खनन गतिविधियों की वजह से कमजोर होता जा रहा है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह इन पर ध्यान दे ताकि राज्य में किसी भी तरह का अवैध खनन न हो। यह राज्य सरकार की मनमानी का नतीजा है कि संवेदनशील इलाकों में खनन हो रहा है। खनन कानून के प्रावधानों के मुताबिक ही होना चाहिए। उच्च स्तरीय समिति इस बारे में जब तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप देती, राज्य सरकार कोई नया खनन लाइसेंस जारी नहीं कर सकती और न ही कोई लाइसेंस रिन्यू कर सकती है।'

हाई कोर्ट ने सुनवाई में कहा,'विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं के लिए इंसान और उसके काम खुद जिम्मेदार हैं।' कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा इस मामले में कड़ा रवैया अपनाया जाए और अवैध खनन में लिप्त लोगों के खिलाफ तुरंत एफआईआर से कानूनी कार्रवाई की जाए। याचिकाकर्ता नवीन चंद्र पंत ने दावा किया था कि खनन गतिविधियां स्कूलों और रिहायशी इलाकों के गंभीर खतरा पैदा कर रही हैं। याचिका में कहा गया था रिहायशी घरों से महज 20 मीटर की दूर पर खनन किया जा रहा था।

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