जरूरत से ज्यादा दवाएं लिखीं तो डॉक्टरों की खैर नहीं, जानिए क्यों?

अनावश्यक दवाएं खाने से मरीजों को शारीरिक एवं आर्थिक नुकसान होता है। लेकिन अब ज्यादा दवाएं लिखने वाले डॉक्टर भी मुश्किल में पड़ सकते हैं। केंद्र सरकार ने दवाओं के इस्तेमाल को विनियमित करने के लिए एक ई प्लेटफार्म बनाने का निर्णय लिया है। इस प्लेटफार्म पर मरीज को दी गई हर दवा का ब्योरा डॉक्टर के नाम सहित दर्ज होगा। इसे डॉक्टरों के प्रिस्क्प्सिन का ऑडिट करने की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है।

केंद्रीव स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवाओं की बिक्री को विनियमित करने के लिए अपनी वेबसाइट पर एक परामर्श पत्र जारी किया है। इस पर एक महीने के भीतर विभिन्न पक्षों से प्रतिक्रिया मांगी गई है। परामर्श पत्र में कहा गया है कि दवाओं की सीमित इस्तेमाल और गुणवत्ता सुनिश्चित करने, एंटीबायोटिक दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल रोकने तथा ऑनलाइन दवाओं की बिक्री को विनियमित करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है।

ई प्लेटफार्म में से जुड़ना होगा

मसौदे के अनुसार सभी दवा विक्रेताओं, वितरकों एवं निर्माताओं को ई प्लेटफार्म में अपना पंजीकरण कराना होगा। ई प्लेटफार्म मूलत एक पोर्टल होगा। यह पोर्टल सरकार के नियंत्रण में रहेगा। दवा निर्माता कंपनी से लेकर केमिस्ट तक को दवा की बिक्री इसी पोर्टल पर लॉग इन करके करनी होगी। इसी पोर्टल से बिक्री की रशीद कटेगी। इसमें दवा की बिक्री का पूरा ब्योरा देना होगा। कौन सी दवा किस मात्रा में किसको बेची गई, सब लिखना होगा। केमिस्ट के लिए यह भी अनिवार्य होगा कि वह दवा लिखने वाले डॉक्टर का भी नाम और रजिस्ट्रेशन नंबर भी लिखे। इस प्रकार जितनी भी दवाएं केमिस्ट बेचेगा उसका रिकॉर्ड इस पोर्टल पर मौजूद रहेगा।

स्वास्थ्य मंत्रालय रखेगा नजर

ई प्लेटफार्म के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय बाकायदा एक विभाग का गठन करेगा, जो इन आंकड़ों की निगरानी करेगा। इससे नकली दवाओं की बिक्री नहीं हो सकेगी। अनावश्यक दवाएं लिखने वाले डॉक्टरों का ब्योरा एकत्र हो जाएगा। इस पोर्टल के बनने के बाद सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि लोग अपनी मर्जी से या बिना डॉक्टर की पर्ची के भी दवा नहीं खरीद पाएंगे। क्योंकि डॉक्टर का नाम और रजिस्ट्रेशन नंबर डाले बगैर बिक्री की पर्ची नहीं कटेगी। सरकारी, गैर सरकारी अस्पतालों, डिस्पेंसरियों एवं क्लिनिकों के डॉक्टर भी इस ई प्लेटफार्म के दायरे में आएंगे।

ऑनलाइन बिक्री पर शुल्क

मसौदे में कहा गया है कि ई प्लेटफार्म के संचालन व्यय के लिए दवा विक्रेताओं से ही राशि जुटाई जाएगी। ऑनलाइन दवाओं की बिक्री पर एक फीसदी राशि शुल्क के रूप में चुकानी होगी। जो प्रति लेनदेन अधिकतम दो सौ रुपये तक होगी।

स्मार्ट फोन से भी चलेगा पोर्टल

मसौदे में कहा गया कि ई फ्लेटफार्म स्मार्टफोन पर भी चल सकेगा। यानी जहां इंटरनेट कनेक्शन नहीं है, या कंप्यूटर की सुविधा नहीं है, वहां स्मार्टफोन से यह कार्य किया जा सकेगा।

86 फीसदी दवाएं व्यर्थ

एक अध्ययन के मुताबिक मरीज जरूरत के मुकाबले 86 फीसदी अधिक दवाएं खाते हैं। इससे उन्हें साइड इफेक्ट होने के साथ-साथ आर्थिक नुकसान होता है। एंटीबायोटिक की अधिक मात्रा लेने से उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता पैदा जाती है।

विशेषज्ञ की टिप्पणी

डॉ. सी. एम. गुलाटी ने कहा कि देश में पांच लाख केमिस्ट हैं, उनमें से 95 फीसदी के पास कंप्यूटर नहीं है। दूसरे, खाली डॉक्टर का नाम दर्ज करने से नहीं होगा। बल्कि पर्ची स्कैन करके डाली जानी चाहिए। ऐसी व्यवस्था ब्रिटेन में है, लेकिन वहां डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन का सारा डाटाबेस ऑनलाइन है। लेकिन हमारे यहां अभी यह तैयार नहीं है। दूसरे, डॉक्टरों का पंजीकरण राज्यों में एवं केंद्र में दोनों जगह होता है। कई डॉक्टर दोनों जगह पंजीकृत हैं। इसलिए जब तक पंजीकरण के आंकड़ों को सुदृढ़ नहीं किया जाएगा, यह सिस्टम ठीक से नहीं चल पाएगा।

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