जाधव केसः ICJ में पाक को चित करने वाले साल्वे की भारत में वाहवाही

नई दिल्ली/हेग
इंटरनैशल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में कुलभूषण जाधव मामले में पाकिस्तान को मिली मात में भारत की तरफ से पक्ष रखने वाले दिग्गज वकील हरीश साल्वे की चारों तरफ वाहवाही हो रही है। साल्वे ने 90 मिनट तक दिए अपने तर्कों से न केवल कोर्ट को सहमत कराया, बल्कि पाकिस्तान की बोलती बंद कर दी। साल्वे की जोरदार दलीलों के सामने पाकिस्तान चारों खाने चित हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और तमाम दूसरे नेताओं ने साल्वे की प्रशंसा की है। बता दें कि ICJ ने अपने आदेश में पाकिस्तान को अंतिम निर्णय आने तक जाधव को फांसी नहीं देने को कहा है। कोर्ट ने जाधव तक राजनयिक पहुंच देने का भी आदेश दिया। वहीं दूसरी तरफ जाधव के मुकाबले 90 के बजाय केवल 30 मिनट में अपनी दलीलें खत्म करने वाले पाकिस्तानी के वकील क्यूसी खावर कुरैसी की उनके मुल्क में खिंचाई हो रही है।

ICJ के 11 जजों की पीठ ने जैसे ही एकमत से जाधव की फांसी की सजा पर रोक का फैसला दिया गया, प्रधानमंत्री मोदी ने तत्काल विदेश मंत्री स्वराज को फोन कर उन्हें धन्यवाद दिया और पूर्व नौसैनिक अधिकारी की पैरवी पुख्ता तरीके से करने के लिये साल्वे के प्रयासों की सराहना की। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने लोगों को इस फैसले की जानकारी देने के लिये ट्विटर का सहारा लिया। उन्होंने 'बड़ी राहत' का जिक्र करते हुये कहा कि जाधव को फांसी की सजा से बचाने के लिये 'कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी जाएगी'। उन्होंने ट्वीट किया, 'ICJ का आदेश कुलभूषण जाधव के परिवार और भारत के लोगों के लिये बड़ी राहत के तौर पर आया।' सुषमा ने एक अन्य ट्वीट में लिखा, 'हम ICJ के सामने भारत का पक्ष इतने प्रभावी तरीके से रखने के लिये हरीश साल्वे के शुक्रगुजार हैं। मैं राष्ट्र को भरोसा दिलाती हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम जाधव को बचाने के लिये कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे।'

इस मामले में भारत की तरफ से पैरवी के लिये महज एक रुपये फीस लेने वाले वरिष्ठ वकील साल्वे ने कहा कि मामले में जिरह करने के दौरान उन्हें सकारात्मक उर्जा और न्यायधीशों से जुड़ाव महसूस हो रहा था। उन्होंने कहा, '40 वर्षों से वकालत कर रहे एक वकील के तौर पर आपको यह महसूस हो जाता है कि न्यायधीशों की प्रतिक्रिया कैसी है। जब मैं मामले में जिरह कर रहा था तो मुझे सकारात्मक उर्जा महसूस हो रही थी। मुझे महसूस हुआ कि न्यायाधीश जुड़ रहे थे। मुझे संतुष्टि मिल रही थी। जब दूसरा पक्ष जिरह कर रहा था तो मुझे वैसा जुड़ाव नहीं लग रहा था।'

साल्वे ने लंदन में एक समाचार चैनल को बताया, 'यह एक जटिल मुद्दा था। हमनें कड़ी मेहनत की और प्रथम दृष्टया हमारे सभी बिंदु स्वीकार्य किए गए।' कोर्ट में साल्वे ने सुनवाई के दौरान वैश्विक अदालत में लड़े गए मौत की सजा एवं विएना संधि से संबंधित तीन पुराने मामलों का हवाला दिया। ये तीन मामले – मैक्सिको बनाम अमेरिका, जर्मनी बनाम अमेरिका और पराग्वे बनाम अमेरिका हैं।

मैक्सिको बनाम अमेरिका
मैक्सिको बनाम अमेरिका (2003) में मैक्सिको अमेरिका में अपने 54 नागरिकों को मिली मौत की सजा के संबंध में विएना संधि के कथित उल्लंघन से जुड़े विवाद को लेकर अमेरिका को ICJ में ले गया। मैक्सिको ने अदालत से सुनिश्चित करने को कहा कि अमेरिका अदालत का आदेश आने तक उसके किसी भी नागरिक को फांसी ना दे या उनकी तारीख तय ना करे। कोर्ट ने फैसला दिया कि उसका न्याय क्षेत्र केवल यह स्थापित करने तक सीमित है कि अमेरिका ने विएना संधि के पैराग्राफ एक के अनुच्छेद 36 के तहत सूचीबद्ध अपने दायित्वों का उल्लंघन किया है या नहीं और साथ ही कहा कि वह 'आपराधिक अपीलीय अदालत' के तौर पर काम नहीं करता। हालांकि अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ICJ का आदेश तब तक बाध्यकारी नहीं है जब तक अमेरिकी कांग्रेस इसके कार्यान्वयन के लिए कानून लागू नहीं करती या संधि खुद में 'स्व कार्यान्वित' नहीं होती।

जर्मनी बनाम अमेरिका
दूसरा मामला 1982 में सशस्त्र लूटपाट और हत्या के संदेह में ऐरिजोना राज्य में जर्मन नागरिक वाल्टर लाग्रैंड और उसके भाई कार्ल की गिरफ्तारी से संबंधित है। 1999 में जर्मनी ने दोनों आरोपियों को विएना संधि द्वारा सुनिश्चित किए जाने के बावजूद दूतावास तक पहुंच के बारे में कथित रूप से जानकारी ना देने के लिए अमेरिका के खिलाफ कार्यवाही शुरू की। दोनों भाइयों की फांसी से एक दिन पहले अपील दायर की गई। हालांकि मामला शुरू होने से पहले ही कार्ल को फांसी दे दी गई और जर्मनी ने मांग की कि अमेरिका उसके परिवार को मुआवजा दे तथा कार्यवाही लंबित होने तक वाल्टर की फांसी रोक दे। इसके अगले दिन ICJ ने अपने आदेश में अमेरिका से सुनिश्चित करने को कहा कि वाल्टर को कार्यवाही के दौरान फांसी ना दी जाए। फैसले के बाद एरिजोना के एक गैस चेंबर में उसकी मौत की सजा की तामील कर दी गई।

पराग्वे बनाम अमेरिका
तीसरे मामले में पराग्वे यह आरोप लगाते हुए अमेरिका को ICJ में ले गया कि 1998 में अमेरिकी राज्य वर्जिनिया ने उसके नागरिक फ्रांसिस्को ब्रिअर्ड को उसकी गिरफ्तारी के बाद मदद के लिए पराग्वे के महावाणिज्य दूतावास से संपर्क करने के अधिकार की सूचना ना देकर विएना संधि का उल्लंघन किया। ICJ ने पराग्वे द्वारा शुरू की गई कार्यवाही में अंतिम फैसला आने तक अमेरिका से ब्रिअर्ड की फांसी को रोकने के लिए 'अपने पास मौजूद सभी उपाय करने' को कहा। लेकिन ब्रिअर्ड को फैसले के पांच दिन बाद 14 अप्रैल को फांसी दे दी गई। पराग्वे ने बाद में मामला वापस ले लिया था।

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