देवी राधा और श्रीकृष्ण के विवाह का रहस्य, वो तो कोई और ही थी

राधा-कृष्ण का प्रेम ऐसा है, जिसके बारे में हमारे समाज में बहुत सम्मान के साथ ही बहुत-सी कथाएं भी देखने को मिलती हैं। यह और बात है कि कान्हा के इस देश में प्यार को समझने में समाज ने बहुत वक्त लगा दिया! आज भी यह सवाल उठता रहता है कि क्या राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था? क्या राधा का विवाह किसी और के साथ हुआ था? कोई कहता है कि हमने सुना है कि कान्हा राधा की शादी हो जाने के बाद भी उनसे मिलने उनके ससुराल गए थे? इन सवालों के प्रति उत्सुकता उतनी ही प्यारी है, जितना राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रति हमारा प्रेम…
देवी राधा के बारे में मान्यता है कि वह माता लक्ष्मी का अवतार थीं। वह अयोनिजा थीं। इसका अर्थ होता है कि उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था बल्कि वह स्वयं प्रकट हुईं थी। उनकी माता गर्भवती तो थीं लेकिन योगमाया के चमत्कार से उनके गर्भ में वायु ही थी। ताकि साधारण मनुष्यों के बीच आदिशक्ति के जन्म को सहज दिखाया जा सके। सोचनेवाली बात यह है कि जो पूरी सृष्टि की जन्मदाता है, उसे कौन जन्म दे सकता है!
देवी राधा और श्रीकृष्ण के विवाह को लेकर हमारे समाज में कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। कोई कहता है कि राधा और कृष्ण का विवाह स्वयं ब्रह्माजी ने कराया था। तो कोई कहता है कि राधा का विवाह रायाण से हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीराधा और श्रीकृष्ण के विवाह के बारे में बताया गया है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, यह बात सही है कि कान्हा के रूप में जन्में स्वयं श्रीहरि विष्णु और राधा के रूप में जन्मी देवी लक्ष्मी का विवाह स्वयं ब्रह्माजी ने संपन्न कराया था। इस विवाह में ब्रह्माजी ने पुरोहित की भूमिका निभाई थी।
अगर राधा-कृष्ण के विवाह की बात सच है तो रायाण के साथ किसका विवाह हुआ था? यह सवाल उठना स्वाभाविक है। लेकिन राधा के साथ रायाण का विवाह होना भी सच्ची घटना ही है। बस वह राधा कोई और थी! रायाण के साथ जिस राधा का विवाह संपन्न हुआ वह असली राधा नहीं बल्कि राधा जी की छाया थीं। असली राधा तो रायाण से विवाह के पूर्व ही बैकुंठ लोक जा चुकी थीं। अपनी छाया को अपने माता-पिता के पास छोड़कर।
अब हमारे मन में यह सवाल उठना भी सहज ही है कि आखिर राधाजी क्यों अपनी छाया को छोड़कर चली गईं? दरअसल, जिस राधा के साथ श्रीकृष्ण का विवाह हुआ, वह कान्हा से विवाह के बंधन में बंधकर फिर से अपने लोक वापस चली गईं। उनके इस रूप का पृथ्वी पर कार्य संपन्न हो चुका था। किन्तु माता-पिता के पास भी तो किसी को छोड़ना था ताकि वह अपने सामाजिक दायित्वों की पूर्ति कर सकें। इसलिए वह अपनी छाया को छोड़कर बैकुंठ लौट गईं।
 

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