फिलीस्तीनी राजदूत को हटाए जाने के बाद आतंकी हाफिज सईद के समर्थन में उतरा पाकिस्तान

नई दिल्ली:  फिलीस्तीनी राजदूत को हटाए जाने के बाद पाकिस्तान आतंकी और मुंबई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद के समर्थन में उतर आया है. वहीं, भारत के सख्त ऐतराज के बाद आतंकी हाफिज के साथ मंच साझा करने वाले अपने राजदूत को फिलिस्तीन ने पाकिस्तान से वापिस बुला लिया है.


फिलिस्तीन ने अपने राजूदत को पद से हटाया


फिलिस्तीन ने हाफिज को आतंकी मानते हुए आतंक के खिलाफ हिंदुस्तान की लड़ाई में अपनी प्रतिबद्धता भी जाहिर की है. जिससे पाकिस्तान की एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में फजीहत हुई है. भारत सरकार के कड़े विरोध पर कार्रवाई करते हुए फिलिस्तीन ने अपने राजूदत वालिद अबु अली को फौरन उनके पद से हटा दिया.


आतंक के खिलाफ लड़ाई में फिलिस्तीन हिंदुस्तान के साथ- फिलिस्तीन


फिलिस्तीन सरकार ने कहा है, ‘’मुंबई हमलों के गुनहगार के साथ हमारे राजदूत का मंच साझा करना एक गलती थी, लेकिन इस भूल को जायज नहीं ठहराया जा सकता. इसलिए हम तुरंत प्रभाव से अपने राजदूत को उनके पद से हटाते हैं. आतंक के खिलाफ लड़ाई में फिलिस्तीन हिंदुस्तान के साथ खड़ा है और हम ऐसे किसी शख्स का समर्थन नहीं करते जो हिंदुस्तान में आतंक फैलाते हैं.’’


अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कोई बंदिश नहीं- पाकिस्तान


जिस जमात-उद-दावा के चीफ हाफिज सईद संयुक्त राष्ट्र ने आतंकी घोषित कर रखा है. अब पाकिस्तान फिलिस्तीन की कार्रवाई के बाद उसी आतंकी के समर्थन में उतर आया है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है, ‘’फिलिस्तीन के समर्थन में पाकिस्तान में कई रैलियां आयोजित की गई थीं. रावलपिंडी की रैली में पचास से ज्यादा लोगों ने भाषण दिए जिसमें से हाफिज सईद भी एक था. यूएन के प्रतिबंध किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कोई बंदिश नहीं लगाता.’’


क्या है पूरा मामला?


दरअसल पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में 29 दिसंबर को दीफा-ए-पाकिस्तान संगठन ने फिलिस्तीन के समर्थन में एक रैली आयोजित की थी और उसी रैली में तत्कालीन फिलिस्तीनी राजदूत ने आतंकी हाफिज के साथ मंच साझा किया था. जिस पर भारत सरकार ने कड़ा ऐतराज दर्ज कराया था.


ये पूरा घटनाक्रम उस वक्त हुआ जब तमाम कूटनीति को दरकिनार करते हुए हिंदुस्तान ने अमेरिका के प्रस्ताव के खिलाफ यूएन में वोट किया था. वो प्रस्ताव जिसमें येरुशलम को इजरायल की राजधानी की मान्यता देने का जिक्र था. येरुशलम को लेकर फिलिस्तीन और इजरायल में पुरानी अदावत है और इस प्रस्ताव पर हिंदुस्तान अपने परंपरागत दोस्ता यानि इजरायन को नजरअंदाज़ कर फिलिस्तीन के समर्थन में खड़ा हुआ था. उसी का नतीजा है कि पाकिस्तान के मुकाबले फिलिस्तीन ने हिंदुस्तान पर भरोसा जताया.

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