बीफ है या नहीं सिर्फ कुछ मिनटों में बताएगी ये मशीन

बीफ को लेकर आए दिन हो रही घटनाओं के चलते महाराष्ट्र पुलिस एक ऐसी मशीन खरीदने की योजना बना रही है जिससे बीफ के मीट का आसनी से पता चल सकेगा। इस मशीन से 'एलिसा' यानि की 'इंजायम लिंक्ड इम्मुयनोसोरबेंट एसे' टेस्ट के जरिए बीफ के मीट की शिनाख्त हो सकेगी। विभिन्न उद्योगों में गुणवत्ता नियंत्रण जांच और कार्यस्थल पर दवा परीक्षण के साथ-साथ एड्स और हेपेटाइटिस की परखने के लिए इस तकनीक का ही इस्तेमाल किया जाता रहा है। 
 
एलिसा टेस्ट के जरिए करीब आधे घंटे में बीफ की पहचान हो जाएगी जबिक डीएनए टेस्ट के जरिए इसे पहचानने में कई दिनों से लेकर हफ्तें तक लग जाते थे। महाराष्ट्र सरकार का मानना है कि बीफ के शक के चलते हो रही घटनाओं पर इससे पार पाई जा सकेगी और इस टेस्ट से फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) पर भी काम का ज्यादा दवाब नहीं होगा। क्योंकि एफएसएल विभाग पुलिस द्वारा दिए गए डीएनए सेंपल पर ही बीफ की जांच करता था। लेकिन इस टेस्ट के जरिए जांच किए गए नेगेटिव सेंपल को एफएसएल को नहीं भेजा जाएगा।  

टेस्ट की प्रक्रिया को समझाते हुए एक जांचकर्ता ने बताया कि माइक्रोट्रेटर प्लेट एक छोटी ट्यूब है जो कि गाय के एंटीबॉडीस से जड़ित है। ये एंटीबॉडिस प्रोटीन है जो रोगजनकों को बेअसर करने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा इस्तेमाल किये जाते हैं। इसके बाद वैज्ञानिक पुलिस द्वारा दिए गए बीफ के सेंपल से एंटीजन को निकालते हैं। 

एंटीजन और एंटीबॉडीस में एक सम्मलित प्रतिक्रिया होती है

ये एंटीजंस एक ऑर्गेनिस्म में प्रतिरक्षा प्रक्रिया उत्पन्न करते हैं जो एंटीबॉडीस को बनाने में सहायक होते हैं। इसके बाद इन एंटीजंस को माइक्रोट्रेटर प्लेट में रखा जाता है जहां पहले से ही गाय के एंटीबॉडिस लगे होते हैं फिर एंटीजन और एंटीबॉडीस में एक सम्मलित प्रतिक्रिया होती है। ये होने के बाद इसमें इंजायम्स और सब्सट्रेट को मिलाया जाता है और फिर 15 से 20 तक के लिए इस मिश्रण को गर्म करने के लिए छोड़ दिया जाता है।

आखिरकार ऊष्मायन अवधि के बाद बीफ के होने का पता चल जाता है अगर इस दौरान मिश्रण का रंग जरा भी नहीं बदलता तो इसका मतलब है कि एंटीजन और एंटीबॉडिस के बीच कोई रिएक्शन नहीं हुआ है और फिर इस बात का खुलासा हो जाता है कि दोनों सेंपल एक ही मीट के नहीं हैं। अगर इस रिएक्शन के दौरान इस मिश्रण का रंग पीला हो जाता तो साफ है कि दोनों सेंपल एक ही मीट के हैं। 

क्या है एलिसा टेस्ट
एलिसा टेस्ट एक पैथोलॉजी स्क्रीनिंग टेस्ट है जिसमें सेंपल पॉसिटिव पाए जाने पर फॉरेसिंक साइंस लेबोरेटरी के डीएनए विभाग को परिणाम की पुष्टि करने के लिए पहुंचाए जाते हैं। डीएनए टेस्ट के बाद फाइनल रिपोर्ट पुलिस को सौंपी जाती है। ये रिपोर्ट आनुवांशिक पैटर्न पर आधारित होती है जो कोर्ट में सबूत के तौर पर मान्य होती है। हालांकि एलिसा एक स्क्रिनिंग टेस्ट है लेकिन इससे पुलिस और फॉरेंसिक विभाग दोनों का ही काफी समय बचता है। 

महाराष्ट्र का एफएसएल विभाग हैदराबाद के प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी जयंत भानुशाली से इस 'बीफ डिटेक्शन किट्स' को लेने जा रहा है। बता दें कि भानुशाली के पास पहले से ही भेंस मीट डिटेक्शन किट है। वहीं, एफएसएल विभाग के अधिकारी ने कहा कि जैसे ही ये किट हमारे पास पहुंचती है हम इसके जरिए काम करना शुरू कर देंगे। बताया जा रहा है कि इस किट को मिलने में करीब दो से तीन महीने का समय लगेगा

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