मप्र में बिना प्लानिंग बाघों की सुरक्षा

5 साल से ज्यादा समय से मंजूर नहीं टाइगर कंजर्वेशन प्लान, बफर जोन के डेवलपमेंट पर पड़ रहा असर
फील्ड डायरेक्टर ने भी माना- वन्यप्राणियों के लिए अनुकूल संसाधन विकसित करना हो रहा मुश्किल

भोपाल । बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में पिछले पांच साल से बाघों की सुरक्षा भगवान भरोसे है। यहां सुरक्षा से लेकर उनके रहवास के लिए संसाधन उपलब्ध कराने और उसे लंबे समय तक बनाए रखने के लिए जरूरी प्लानिंग यानि टाइगर कंजर्वेशन प्लान (टीसीपी) भी स्वीकृत नहीं है। इसके बिना वनों का विकास और वन्यप्राणियों के लिए अनुकूल संसाधन विकसित करना मुश्किल हो रहा है। यही कारण है, पिछले दिनों वन में लगी आग पर लगातार 4 दिनों तक भी काबू नहीं पाया जा सका। आग फैलकर कोर एरिया तक पहुंच गई थी। इससे वनस्पतियों और वन्यप्राणियों के रहवास को नुकसान पहुंचा। इसके अलावा आए दिन बाघों के बीच संघर्ष में उनकी मौत की खबरें आती रहती हैं। पिछले ही साल आपसी संघर्ष में 7 बाघों की मौत हो चुकी है। वर्तमान में बांधवगढ़ में 124 बाघ हैं।

बफर एरिया पर पड़ रहा असर
टीसीपी स्वीकृत नहीं होने का सबसे ज्यादा नुकसान टाइगर रिजर्व के बफर एरिया में होने वाले काम पर पड़ रहा है। यहां कूप कटाई नहीं हो पा रही। असल में, कूप कटाई से बारिश के बाद जंगल का ज्यादा विस्तार होता है। घने जंगल में हिरण और चीतल समेत दूसरे शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ती है। उनके लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध होता है। इससे बाघों के लिए आहार की उपलब्धता बनी रहती है। इससे टेरिटोरियल फाइट की आशंका कम हो जाती है। पांच साल से बफर एरिया में ऐसे काम नहीं होने से जंगल का विस्तार प्रभावित हुआ है।

कूप कटाई का काम प्रभावित
टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर विसेंट रहीम के मुताबिक बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की टीसीपी के लिए कुछ बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया था। बताया गया था कि कैसे संशोधित किया जाए। टीसीपी के कारण बफर में कूप कटाई का काम प्रभावित हुआ है।

टीसीपी नहीं होने का नुकसान
जानकार बताते हैं, टाइगर रिजर्व का टीसीपी अप्रूव नहीं हो, तो नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) से राशि स्वीकृत होने में मुश्किल होती है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व मेंं पांच साल से टीसीपी अप्रूव नहीं होने का असर बाघों की सुरक्षा और उनके विकास के साथ ही जंगल की सुरक्षा पर पड़ रहा है।

कर्मचारियों के मनोबल पर भी असर
टीसीपी के तहत टाइगर रिजर्व की सुरक्षा और संवर्धन में लगे कर्मचारियों को ज्यादा समय तक जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करने के एवज में कर्मचारी भत्ता व पार्क अलाउंस मिलता है। टीसीपी के कारण कर्मचारियों को भत्तों में नुकसान हो रहा है। इसका असर उनके मनोबल पर पड़ता है। नतीजा, टाइगर रिजर्व की सुरक्षा व विकास प्रभावित होता है। कर्मचारियों के विरोध के बाद बजट का इंतजाम कर सुविधा उपलब्ध करवाई गई।

क्या है टीसीपी
टाइगर कंजर्वेशन प्लान (टीसीपी) में जंगल की भौगोलिक परिस्थितियों और जंगल की बसाहट समेत अन्य विषयों को ध्यान में रखकर जंगल के विस्तार और विकास की योजना बनाई जाती है। इसमें योजना अनुसार समय-समय पर काम किया जाता है। टीसीपी के अनुसार एनटीसीए से आर्थिक मदद मिलना में आसानी होती है।

ये होता है फायदा
टाइगर रिजर्व का टीसीपी होता तो जंगल का विस्तार बेहतर होता। जंगल में वनस्पतियों व घास का संरक्षण होने से शाकाहारी वन्यप्राणियों को आहार सुलभ होगा। वन्यप्राणियों की संख्या बढ़ेगी। इससे बाघ को आहार के लिए टेरिटरी नहीं छोडऩा पड़ेगा।

टीसीपी नहीं होने का नुकसान
टीसीपी नहीं होने का नुकसान कुछ दिन पहले ही दिखा। 28 मार्च को खितौली बफर एरिया मेंं आग लगी, तो समय पर काबू नहीं पाया जा सका। इसके पीछे संसाधनों की कमी की भी बात आई। जानकार बताते हैं, पांच साल से टीसीपी नहीं होने टाइगर रिजर्व के समुचित विकास के लिहाज से अन्य दूसरे भी नुकसान हैं।

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