यहां आज भी फूल-पत्ते खाने को मजबूर हैं लोग, प्रभारी मंत्री ने कलेेेेक्टर से मांगा जवाब

आजादी के 70 साल बाद भी इस जगह के लोग जिंदा रहने के लिए फूल-पत्ते खाने को मजबूर हैं. सरकार की उदासीनता और जिम्मेदारों की लापरवाही के चलते यह लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के आदिवासी विकासखंड करहल की.

रोटी नहीं घास और फूल खाते हैं बच्चे
आपको यकीन ना हो लेकिन यह सच है कि इस क्षेत्र के बच्चे रोटी की जगह घास और जंगली फूल खाने को मजबूर हैं. कराहल तहसील मुख्यालय की इंद्रा आवास कांलोनी सहित आसपास की कई बस्तियों के हालात एक जैसे हैं. यहां महिलाएं परिवार का पेट भरने के लिए घास, फूल और पत्तियों को पानी और नमक के साथ पकाती हैं.

कराहल में आदिवासी आबादी

ना बीपीएल कार्ड ना मजदूरी
इस इलाके में लोगों के बीपीएल कार्ड नहीं बनाए गए हैं. जिन कुछ लोगों के कार्ड थे उनके नाम भी प्रशासनिक अमले ने खाद्य सुरक्षा गारंटी के सर्वे के नाम पर सूची से हटा दिए हैं. मनरेगा के तहत भी क्षेत्र में कोई काम नहीं चलने से लोगों को मजदूरी भी नहीं मिल रही है.

कलेक्टर को नहीं पता हालात
इस बारे में जब श्योपुर कलेक्टर अभिजीत अग्रवाल से चर्चा की गई तो उन्होंने मामले से अभिज्ञता जताते हुए इसे दिखवाने की बात कही. बीपीएल कार्ड के बारे में उन्होंने कहा कि ग्राम उदय,भारत उदय योजना में खाद्य सुरक्षा गारंटी के तहत सर्वे किया जा रहा है. रोजगार की बात पर उन्होंने कहा कि जिले में बड़े पैमाने पर तालाबों की खुदाई और गहरीकरण का काम शुरू कर रहे हैं. कराहल में भी काम शुरू कराएंगे और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराएंगे.

जिले की प्रभारी मंत्री ललिता यादव को जब इस बारे में बताया गया तो उन्होंने मामले को संज्ञान में लेते हुए तत्काल जिला कलेक्टर से मामले में जवाब मांगा है. कलेक्टर ने एसडीएम को मौके पर भेज कर जांच करने के आदेश दिए हैं. जांच के बाद अगर कराहल के लोग बीपीएल कार्ड के पात्र पाए जाते हैं तो उनका नाम तुरंत सूची में जोड़ा जाएगा.

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