लोकसभा चुनाव में फिर पिछड़ी कांग्रेस, उठेंगे राहुल के नेतृत्व पर सवाल

नई दिल्ली । लोकसभा चुनाव के नतीजे एक तरफ भाजपा को नई ऊंचाई पहुंचाते दिखाई दे रहे हैं, तो कांग्रेस 5 साल बाद भी वहीं खड़ी दिख रही है, जहां 2014 में थी। अब तक सामने आए रुझानों के मुताबिक देश की सबसे पुरानी पार्टी महज 52 सीटों पर ही आगे चल रही है। यह संख्या बीते आम चुनाव में कांग्रेस को मिली 44 सीटों के काफी करीब है।
इतनी कम संख्या में उसे नेता प्रतिपक्ष का पद भी नहीं मिल सका था। कांग्रेस के लिए एक फिर ऐसी ही स्थिति पैदा हो सकती है। उल्लेखनीय है कि लोकसभा में नेता विपक्ष का पद हासिल करने के लिए विपक्षी दल को न्यूनतम 10 फीसदी सीटें हासिल करनी जरूरी होती है। कभी पूरे देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस का लगातार दो लोकसभा चुनावों में 50 के करीब सीटें लाना एक तरह से इतिहास के पलटने जैसा है। 1980 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महज 2 सीटें ही मिली थीं, लेकिन 2014 में उसे 282 और अब रुझानों में 294 सीटें मिलती दिख रही हैं। ऐसे में कांग्रेस का राष्ट्रीय राजनीति में एक तरह से नेपथ्य में जाना विपक्ष के अस्तित्व का सिमटना है।
कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार को पार्टी की धुरी माना जाता रहा है। लेकिन, अमेठी में राहुल गांधी रुझानों में पिछड़ रहे हैं और यदि यह नतीजों में तब्दील होते हैं तो कांग्रेस में उनकी लीडरशिप को लेकर भी सवाल उठेंगे। गुना से लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया, मुंबई दक्षिण से प्रत्याशी मिलिंद देवड़ा, जोधपुर से वैभव गहलोत के पिछड़ने से राहुल की युवा टीम के लिहाज से भी बुरी खबर है। ऐसे में कांग्रेस में एक बार फिर से नेतृत्व को लेकर असंतोष के स्वर उभर सकते हैं। कांग्रेस ने इस चुनाव से ठीक पहले प्रियंका गांधी को महासचिव बनाया था और उन्हें पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाया था। इसके अलावा पश्चिम यूपी की जिम्मेदारी ज्योदिरादित्य को दी गई थी। दोनों ही क्षेत्रों में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है। पार्टी को सूबे में महज रायबरेली की सीट मिलती दिख रही है। इस परंपरागत सीट पर सोनिया गांधी आगे चल रही हैं। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या कांग्रेस का प्रियंका कार्ड बेअसर रहा। 

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