INDvsWI: वेस्टइंडीज फिर बना तेज गेंदबाजों का पसंदीदा मेजबान, इस बार होंगे कड़े मुकाबले

नई दिल्ली: एक जमाना था जब वेस्टइंडीज के तेज गेंदबाजों से पूरी दुनिया थर्राती थी. 1970-80 के दशक में वेस्टइंडीज (West Indies) की तेज गेंदबाजी को ‘चिन म्यूजिक’ नाम दिया गया था. समय बदला. 1980 के दशक में विंडीज के दिग्गज तेज गेंदबाज रिटायर हुए. 1990 के दशक में तो स्थिति फिर भी ठीक रही. लेकिन 2000 के दशक में विंडीज का पेस अटैक काफी कमजोर हो गया. इसका असर सिर्फ उसकी टीम पर नहीं, बल्कि पिचों पर भी पड़ा. वेस्टइंडीज की पिचें पहले की तरह तेज नहीं रहीं. धीमी हो गईं या जानबूझकर कर दी गईं. नतीजा मैच अधिक ड्रॉ होने लगे और खेल बोरिंग हो गया. लेकिन अब वक्त बदल रहा है. 
भारत और विंडीज (India vs West Indies) की टीमें जब गुरुवार से टेस्ट मैच खेलने उतरेंगी तो क्रिकेटप्रेमी एक बार फिर तेज पिचों पर मैच होता देखेंगे. आखिर विंडीज में तेज, धीमी और फिर तेज पिच का समीकरण क्या है, यह आप आसानी से समझ सकते हैं. लेकिन इसके लिए आपको थोड़ा इतिहास की यात्रा करनी होगी. 
दरअसल, 1970 के दशक में वेस्टइंडीज के पास माइकल होल्डिंग, जोएल गार्नर, एंडी रॉबर्ट्स, मैल्कम मार्शल के रूप में तेज गेंदबाजों की खतरनाक चौकड़ी थी. छहफुटिया गेंदबाज अपनी रफ्तार और उछाल से दुनियाभर के बल्लेबाजों को डराते थे. सुनील गावस्कर के शब्दों में कहें तो बल्लेबाजों के विकेट बाद में गिरते थे, हौसले पहले टूट जाते थे. होल्डिंग, गार्नर, रॉबर्ट्स, मार्शल की जोड़ी 1980 के दशक में रिटायर हो गई. 
1990 के दशक में कर्टली एंब्रोस, कर्टनी वॉल्श, पैट्रिक पैटरसन, इयान बिशप ने मोर्चा संभाला. यह चौकड़ी खतरनाक तो नहीं, पर असरदार जरूर थी. इस बीच वेस्टइंडीज की बल्लेबाजी भी कमजोर होती गई. इन सबका नतीजा यह रहा कि विंडीज ने अपने घरेलू मैदान पर धीमी पिचें बनानी शुरू कर दीं. उसका इरादा यह था कि मैच ड्रॉ हों. हुआ भी यही. 2000 के दशक में वेस्टइंडीज में खेले गए 40% टेस्ट मैच ड्रॉ रहे. खेल बोरिंग हो गया. विंडीज के खेल का स्तर भी नीचे जाने लगा. 
विंडीज में क्रिकेट चलाने वालों ने यह गलती 2011 आते-आते पहचान ली. उन्होंने एक बार फिर तेज पिचें बनाने का फैसला लिया. नतीजा यह रहा कि वहां तेज गेंदबाजों की नई पौध आने लगी. शैनन गैब्रियल, जेसन होल्डर, केमार रोच, अल्जारी जोसेफ जैसे बेहतरीन गेंदबाज निकलने लगे. एक बात और. अब वेस्टइंडीज में ड्रॉ मैचों की संख्या भी घटने लगी है. पिछले तीन साल में विंडीज में खेले गए सिर्फ 20% टेस्ट मैच ड्रॉ हुए हैं. 
इसलिए इस बार यह उम्मीद की जा सकती है कि विंडीज में स्पोर्टिंग पिचें होंगी. ऐसी पिचें, जहां रन भी बनेंगे और तेज गेंदबाजों को इस पर अच्छी उछाल भी मिलेगी. विंडीज को धीमी विकेट से स्पोर्टिंग विकेट की ओर ले जाने का श्रेय कोच ओटिस गिब्सन को भी दिया जाता है. उन्होंने अपने क्रिकेट बोर्ड के अधिकारियों को इसके लिए मनाया. 
अब देखना यह है कि भारतीय तेज गेंदबाज इन विकेट का कितना फायदा उठाते हैं. यह भी देखना होगा कि भारतीय बल्लेबाज विंडीज के तेज गेंदबाजों का कितनी सहजता से सामना करते हैं. याद रखें कि वेस्टइंडीज ने 2019 में ही अपने घर पर खेली गई टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड को 2-1 से हराया था. इसलिए भारत-विंडीज सीरीज को पहले से एकतरफा मानने की भूल ना करें. और क्रिकेट की खूबी भी इसकी अनिश्चितता ही है.
 

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