NMC बिल के विरोध में सड़कों पर उतरे डॉक्टर, कल एम्स, सफदरजंग अस्पताल में हड़ताल

नई दिल्ली: लोकसभा में पास हुए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Council Bill)विधेयक 2019 के खिलाफ देशभर के डॉक्टर्स सड़क पर उतर आए हैं. इस बिल के खिलाफ, देशभर में 31 जुलाई को डॉक्टर्स हड़ताल पर रहे. 1 अगस्त को दिल्ली के एम्स और सफदरजंग अस्पतालों के डॉक्टर्स ने हडताल पर जाने का फैसला किया है जिससे गुरूवार को राजधानी के मरीजों की दिक्कतें बढ सकती है. 

बुधवार को भी देशभर के निजी और सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर हडताल पर थे जिसका असर राजधानी दिल्ली में नहीं दिखा लेकिन देश के बाकि हिस्सों में मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ी. 

बता दें NMC बिल सोमवार, 29 जुलाई को लोकसभा में पारित किया गया. सरकार ने इस फैसले को दूरदर्शी सुधारों में से एक बताया है लेकिन इस बिल के विरोध में डॉक्टर्स सडकों पर उतर आए है. गुरुवार (1 अगस्त) को एनएमसी बिल राज्यसभा में पेश होगा. इसे लेकर डॉक्टरों को रोष और बढ गया है. 

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने बिल के विरोध में देशव्यापी हड़ताल में अब राजधानी दिल्ली के रेसिडेंट डॉक्टर्स भी शामिल हो गए हैं. बुधवार की सुबह 6 बजे से शुरू हुई हड़ताल गुरूवार को भी जारी रहेगी. हालांकि बुधवार की हड़ताल का खास असर नहीं दिखा। 

एक अगस्त को सुबह आठ बजे से कुछ सरकारी अस्पतालों की एसोसिएशन के डॉक्टर्स की स्ट्राइक शुरू होगी। इसके लिए एम्स के डायरेक्टर को एक पत्र भी लिखा गया है। एम्स अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर 1 दिन की हडताल पर रहेंगें. 

सफदरजंग के मरीजों के लिए मुसीबत ज्यादा बढ़ने वाली है. सफदरजंग असपताल के डॉक्टर्स गुरूवार से अनिश्चितकालीन हडताल पर रहेगे. दिल्ली सबसे ज्यादा प्रभावित होगी। इमरजेंसी से लेकर ओपीडी तक सेवाएं बाधित रह सकती हैं. 

डॉक्टरों की मांग है कि बिल को जिस तरह लोकसभा में पास किया गया है उसी तरह राज्यसभा में पेश ना किया जाए। इसमें डॉक्टरों की मांग के अनुसार संशोधन करके इसे राज्यसभा में पेश किया जाए। ऐसा नहीं होता है तो गुरुवार से सभी अस्पतालों में हड़ताल की जाएगी. 

क्या है एनएमसी बिल
1- एनएमसी बिल के सेक्शन 32 में 3.5 लाख नॉन मेडिकल शख्स को लाइसेंस देकर सभी प्रकार की दवाइयां लिखने और इलाज करने का कानूनी अधिकार दिया जा रहा है. 6 महीने का एक ब्रिज कोर्स करने के बाद देश के आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टर भी एमबीबीएस डॉक्टर की तरह एलोपैथी दवाएं लिख सकेंगे.
2- मेडिकल कोर्स यानी ग्रेजुएशन के बाद भी प्रैक्टिस करने के लिए एक और एग्जाम देना होगा. ये एग्जाम कंप्ल्सरी होगी. इसे पास करने के बाद ही प्रैक्टिस और पोस्ट ग्रेजुएशन की इजाजत मिलेगी. अभी एग्जिट टेस्ट सिर्फ विदेश से मेडिकल पढ़कर आने वाले छात्र देते हैं.
3- एनएमसी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की 40 फीसदी सीटों की फीस भी तय करेगी. बाकी 60 फीसदी सीटों की फीस तय करने का अधिकार कॉलेजों का होगा.4- मेडिकल संस्थानों में एडमिशन के लिए सिर्फ एक परीक्षा NEET (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेस टेस्ट) ली जाएगी.

बिल के विरोध की क्या है वजह ?
1- भारत में अब तक मेडिकल शिक्षा, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से जुड़े काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जिम्मेदारी थी, लेकिन बिल पास होने के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ले लेगा.
2- बिल के सेक्शन 32 के तहत, करीब 3.5 लाख गैर-मेडिकल लोगों को लाइसेंस देकर सभी प्रकार की दवाइयां लिखने और इलाज करने का लाइसेंस मिलेगा.
3- डॉक्टर्स NEET से पहले NEXT को अनिवार्य किए जाने के भी खिलाफ हैं. डॉक्टरों का कहना है कि इससे आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की मेडिकल सेक्टर में आने की संभावना कम हो सकती है.

बाकी अहम बातें 
-ये बिल नीति आयोग ने बनाया है. बिल पर 2015 से काम शुरु किया था। आरोप यह है कि इस बिल को ब्यूरोक्रेटस ने बनाया है जो मेडिकल जगत की बारीकियों से अंजान हैं। 
सरकार का पहला एतराज ये था कि एक ही संस्था के पास मेडिकल एजुकेशन और डॉक्टरों की प्रैक्टिस – दो बड़े काम नहीं होने चाहिए। 

-नीति आयोग को ऐतराज ये था कि ज्यादातर सदस्य चुनाव से आते हैं जिसमें डॉक्टरों की लॉबी सक्रिय भूमिका में रहती है लिहाज़ा योग्य और प्रशिक्षित व्यक्ति बाहर ही रह जाते हैं। 
-2016 में स्वास्थ्य को लेकर बनी स्टैंडिंग कमेटी ने लिखा कि एमसीआई का सारा फोकस कालेजों को लाइसेंस देने पर है। एजुकेशन में फैले भ्रष्टाचार और पढ़ाई की बेहतरी पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। 
-अब इसका चेयरपर्सन का नाम केंद्र सरकार सुझाएगी – वो 4 साल के लिए चुना जाएगा। दोबारा नहीं बन पाएगा। पहले डॉक्टर ही इसका अध्यक्ष होता था।  

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