SC में जजों ने पढ़ी कुरान, कहा- तीन तलाक का जिक्र नहीं

नई दिल्ली। तीन तलाक पर सुनवाई के पांचवें दिन बुधवार को एक ऐसा वक्त आया, जब संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीश कुरान की आयतें पढ़ने लगे। जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकील वी गिरि ने कहा कि कुरान के चैप्टर 2 की आयत संख्या 230 में एक बार में तीन तलाक की बात कही गई है। इस पर पांचों न्यायाधीशों ने सामने रखी कुरान उठाकर पढ़ना शुरूकर दिया। कुरान का वह अंग्रेजी अनुवाद था।

कोर्ट ने संबंधित आयत पढ़ने के बाद वकील से कहा, "वे जो बात कह रहे हैं, वह तो इसमें नहीं है। इसमें कही गई बात का वह मतलब नहीं निकलता, जो वे बता रहे हैं। यहां एक बार में तीन तलाक की बात नहीं कही गई है।" तीन तलाक पर संविधान पीठ में चल रही सुनवाई का गुरुवार को आखिरी दिन है।

दो सुन्नत तलाक के बाद तीन तलाक का प्रावधान

जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि वकील गिरि द्वारा उल्लेखित आयत पहले दो बार के सुन्नत तलाक हो चुकने के बाद तीसरे तलाक की बात करती है। सुन्नत तलाक, तलाक अहसन और तलाक हसन है। यहां तलाक-उल-बिद्दत की बात नहीं है।

60 साल में क्यों नहीं बनाया कानून?

इससे पहले सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा एजी मुकुल रोहतगी से कहा, "सरकार 60 साल में मुस्लिम विवाह व तलाक का कानून क्यों नहीं बना सकी? इस पर रोहतगी ने कहा, "तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। न ही यह बहुसंख्यक समाज विरुद्ध अल्पसंख्यक का संघर्ष है, यह मुस्लिम समाज की अंदरुनी लड़ाई है। मुस्लिम पुरुषों व अधिकारों से वंचित महिलाओं का संघर्ष है। यह समानता व लैंगिक न्याय तथा न्यायिक समीक्षा का मुद्दा है। सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे से भाग नहीं सकती।

सुप्रीम कोर्ट व एजी में जिरह

कोर्ट : आपने कहा कि यदि कोर्ट तीन तलाक को खारिज कर दे तो आप एक कानून बनाओगे, लेकिन सरकार ने 60 साल तक कानून क्यों नहीं बनाया?

एजी : एक सेकुलर कोर्ट की कसौटी जब भी ऐसा कोई मसला आए तो कानून का इंतजार किए बिना सुधार करना है। मुझे जो भी करना होगा, मैं करूंगा, लेकिन सवाल यह है कि कोर्ट क्या करेगी? मैंने सरकार के निर्देश पर जवाब दिया है। संसद की ओर से नहीं बोल सकता। शीर्ष अदालत मूलभूत अधिकारों की संरक्षक है और उसे देखना है कि कहीं इन अधिकारों का उल्लंघन तो नहीं हो रहा।

कोर्ट : हिंदू समाज की कुरीतियों पर भी विचार करना होगा।

एजी : सती, देवदासी, शिशु बलि, अस्पृश्यता जैसी प्रथाओं को खत्म किया गया है।

कोर्ट : क्या इन प्रथाओं को कोर्ट ने खत्म किया है? इन्हें कानून बनाकर खत्म किया गया है।

एजी : तो फिर कोर्ट विशाखा (महिला सुरक्षा) जैसी गाइडलाइन क्यों बनाती है?

कोर्ट भी दे सकता है आदेशः

तीन तलाक का विरोध कर रही वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि जिस मुद्दे पर सरकार को कानून बनाने का हक है, उस पर कोर्ट को भी अनुच्छेद 32 के तहत आदेश देने का अधिकार है। संविधान में बराबरी का हक देने वाला मौलिक अधिकार किसी भी शर्त के आधीन नहीं है।

1400 साल पुरानी परंपरा नहीं, उत्पीड़न है तलाक

बहस में हिस्सा लेते हुए रोहतगी ने बोर्ड के कपिल सिब्बल व अन्य वकीलों को जवाब देते हुए कहा कि यह 1400 साल पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि उत्पीड़न है। बोर्ड के वकील लगातार तीन तलाक का बचाव कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब यह पाप है तो धर्म का अभिन्न हिस्सा कैसे हो सकता है?

पर्सनल लॉ बोर्ड से कोर्ट ने यह पूछा

-निकाह की सहमति देने से पहले क्या महिला निकाहनामे में यह प्रावधान जोड़ने को कह सकती है कि यह शादी तीन तलाक से नहीं टूटेगी?

-क्या पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए यह संभव है कि वह इस बारे में कदम उठाए?

-क्या बोर्ड की सलाह निकाह कराने वाले काजी मानेंगे?बोर्ड के वकील के जवाब-पर्सनल लॉ बोर्ड की सलाह काजियों पर बंधनकारी नहीं है।

-बोर्ड ने 14 अप्रैल को लखनऊ सम्मेलन में प्रस्ताव पारित कर समुदाय से कहा कि एक बार में तीन तलाक कहकर शादी तोड़ने वालों का बहिष्कार करे।

-बोर्ड पहले ही कह चुका है कि तीन तलाक पाप व अवांछित है, लेकिन यह स्वीकार्य परंपरा है।

-समाज को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपने स्तर पर सुधार के लिए वक्त चाहिए।ऐसे चली सुनवाई, आज अंतिम दिन

-तीन तलाक मामले में सुनवाई का बुधवार को पांचवां दिन था। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए छह दिन तय किए हैं।

-पहले तीन दिन उनके लिए थे जो तीन तलाक को चुनौती दे रहे हैं।-बाद के तीन दिन उनके लिए जो इसका बचाव कर रहे हैं।

-पीठ द्वारा तय सवालों पर बहस के लिए दोनों को दो-दो दिन और प्रतिवाद के लिए एक-एक दिन दिया गया है।

-मामले में कुल 30 पक्षकार हैं।

Leave a Reply