US: कैलिफॉर्निया के स्कूल टेक्स्ट बुक में हिंदुत्व के नकारात्मक चित्रण से भारतीय-अमेरिकी समुदाय न

वॉशिंगटन
अमेरिका में रह रहे भारतीय-अमेरिकी समुदाय के लोगों ने कैलिफॉर्निया के प्रस्तावित स्कूली टेक्स्टबुक में हिंदुत्व और भारत के बारे में कथित तौर पर नकारात्मक लिखे जाने पर नाराजगी जाहिर की है।

अमेरिका के हिंदू एजुकेशन फाउंडेशन के डायरेक्टर शांताराम नेक्कर ने कहा, 'हिंदू-अमेरिकी समुदाय के दशकों तक जागरुकता अभियान चलाए जाने के बावजूद स्कूली किताबों खासकर हगटन मिफलिन हारकोर्ट, मैकग्रॉ-हिल, डिस्कवरी और नैशनल जिऑग्रफिक की किताबों में भारतीय सभ्यता के बारे में ऑरीएंटलिस्ट नरेटिव का इस्तेमाल जारी रखना निराशाजनक है।'

क्कर ने यह टिप्पणी सैक्रामेंटो में कैलिफोर्निया डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन (CDE) की तरफ से गुरुवार को आयोजित सार्वजनिक सुनवाई के दौरान की। दरअसल पिछले कई दशकों से भारतीय-अमेरिकी समुदाय स्कूली किताबों में हिंदुत्व के बारे में कई गलतियों और मिथकों को हटाने के लिए अभियान चला रहा है। वहीं कैलिफोर्निया राज्य का कहना है कि किताबें पूरी तरह डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन के फ्रेमवर्क पर आधारित हैं।

पिछले साल कई विवादों के बीच फ्रेमवर्क को संशोधित किया गया था। कुछ अकैडमिक्स और समूह किताबों में 'भारत' की जगह पर 'साउथ एशिया' लिखने की कोशिश किए जिस पर काफी विवाद हुआ था।

पिछले दो सालों से ज्यादा वक्त से डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन ने विद्वानों, छात्रों और कम्यूनिटी सदस्यों से प्राप्त इनपुट्स के आधार पर फ्रेमवर्क को कई बार अपडेट किया है। खासकर फ्रेमवर्क में योग और धर्म जैसी हिंदू संकल्पनाओं, महर्षि व्यास, बाल्मिकी और विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारतीय उपलब्धियों के जिक्र से जुड़े अपडेट किए गए।

अमेरिका के हिंदू समूहों का कहना है कि इनमें से कई बदलावों को टेक्स्टबुक के ड्रॉफ्ट्स में नहीं रखा गया है। सैन जोस के एक अभिभावक शरत जोशी ने कहा, 'कुछ प्रकाशक पहले की तरह हिंदुत्व को बदनाम करना जारी रखे हुए हैं। ये प्रकाशक फ्रेमवर्क में किए गए संशोधनों को नजरअंदाज कर रहे हैं जबकि संशोधित फ्रेमवर्क मौजूदा भारतीय सभ्यता को दूसरी सभ्यताओं और संस्कृतियों के अनुरुप पेश करने में मदद कर सकता है।' उन्होंने आगे कहा कि इसकी कई मिसालें हैं कि हिंदुत्व के नकारात्मक चित्रण से क्लासरूम में कई बार हिंदू बच्चों के साथ अपमानजनक व्यवहार हुआ। जिन प्रस्तावित किताबों पर विवाद हैं, उनके अगले साल की शुरुआत में स्कूलों में लागू होने की संभावना है।

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