अज्ञान और मोह की कुंभकर्णी नींद से मुक्ति दिलाते हैं गुरू 

इन्दौर । गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त नहीं करना भी एक दोष है। गुरू का स्थान कई मामलों में भगवान से भी बड़ा माना गया है। भगवान ब्रम्हा, विष्णु, महेश हो सकते हैं लेकिन मुक्ति तो गुरू ही दिला सकते हैं। अज्ञान और मोह की कुंभकर्णी निद्रा से गुरू ही मुक्त करा सकते हैं। अपने आत्म तत्व को प्रकाशित कर सच्चिदानंद स्वरूप का बोध कराने वाले ही गुरू हो सकते हैं। गुरू के प्रति शत प्रतिशत श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए।
ये दिव्य विचार हैं श्रीश्री माता आनंदमयी पीठ के अध्यक्ष स्वामी केदारनाथ महाराज के, जो उन्होंने आज ए.बी. रोड, एमजीएम मेडिकल कॉलेज के पास स्थित मां आनंदमयी आश्रम पर चल रहे मातृ जन्म महोत्सव के दौरान  सत्संग सत्र में व्यक्त किए। सत्संग सभा में गुजरात के स्वामी जगदीश्वरानंद, उज्जैन के स्वामी परमानंद, स्वामी दिव्यानंद भारती, अमरकंटक से आए स्वामी मुक्तानंद एवं कैथल- हरियाणा से आए महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद महाराज ने भी अपने प्रेरक विचार रखे। अतिथि संतों का स्वागत टीसी राय, नरेंद्र माखीजा, जे.पी. फडिया, अशोक बवेजा, गोपालदास आदि ने किया। सत्संग का शुभारंभ स्वामी हंसानंद द्वारा ‘ मन लागा यार मेरा फकीरी में‘ भजन से हुआ। मंच का संचालन ब्रम्हचारी कृष्णानंद ने किया। इसके पूर्व सुबह महामंत्र संकीर्तन, परिक्रमा एवं मंगला आरती के बाद ध्यान योग में देश भर से आए सैंकड़ों साधकों ने भाग लिया। श्री अमरनाथ ओेंकारेश्वर महादेव की रूद्राभिषेक पूजा-आरती एवं मातृ चालीसा के बाद सत्संग सत्र में मातृवाणी पाठ स्वामी केदारनाथ महाराज के सानिध्य में हुआ। अपरान्ह मंे सत्संग के दूसरे सत्र में भी योग, वेदांत एवं मातृ महिमा पर संतों ने प्रेरक विचार रखे। सांय 7.30 से 9 बजे तक आरती, संकीर्तन एवं 15 मिनट के लिए  मौन रखा गया। 
:: संतों के प्रवचन :: 
उज्जैन से आए स्वामी दिव्यानंद भारती ने कहा कि भगवान, शास्त्रों और गुरू की वाणी पर विश्वास रखने वालों का कल्याण अवश्य होता है।  कलियुग में गुरू शिष्य के रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। अंधकार से प्रकाश और असत्य से सत्य की ओर ले जाने वाला ही गुरू होता है। उज्जैन के ही स्वामी परमानंद ने कहा कि गुरू की महत्ता हर युग में शाश्वत और प्रासंगिक है। धर्म की स्थापना से लेकर संस्कारों के रोपण में भी गुरू का महत्वपूर्ण योगदान आदिकाल से होता आया है। कैथल से आए आदर्श महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद ने कहा कि ईश्वर, गुरू और आत्मा को अलग-अलग समझना जरूरी है। सकल ब्रम्हाण्ड की रचना करने वाला ईश्वर ही है। बिना पैर के जो चल सके, बिना आंखों के जो देख सके और बिना कानों के जो सुन सके, वही ईश्वर हो सकता है। सृष्टि को मायावी कहा गया है। बुद्धि सत्य का पक्ष करती है। बुद्धि सत्य को स्वीकार करने वाली होती है। संसार का अस्तित्व सत्य नहीं माना गया है। गुरू तमोगुण से मुक्ति दिलाते हैं। आत्मा के लिए कहा गया है कि आत्मा ही परमात्मा है। जन्म के माता-पिता तो हमें ऐसा शरीर देते हैं जो मुक्ति नहीं दिला सकता लेकिन गुरू के सान्निध्य में हमें ऐसा स्वरूप मिल जाता है जो मुक्ति भी दिला सकता है, बशर्ते हममें पात्रता हो। गुजरात से आए संत जगदीश्वरानंद ने कहा कि ज्ञान और भक्ति के योग से ही मुक्ति मिल सकती है। मां आनंदमयी की सभी लीलाएं प्रकाशित नहीं हुई हैं, जो हुई हैं उनमें से एक प्रतिशत भी हम अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो कल्याण सुनिश्चित है। भारत भूमि में जन्म मिलना सबसे बड़ा उपहार है। और, इस जन्म में सत्संग में भाग लेने का अवसर भी हमारा सौभाग्य है। मनुष्य योनि में जन्म लेने के लिए देवता भी आकांक्षी रहते हैं। भगवान को जानने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है, वे हमारे अंदर ही हैं। गृहस्थ होते हुए भी भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। हम अपने घर के लोगों की सेवा भगवान मान कर करें, यहीं हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य और धर्म होना चाहिए। अमरकंटक से आए स्वामी मुक्तानंद ने कहा कि जब तक हम अपने दोषों को नहीं देखेंगे, तब तक उन्हें दूर कैसे करेंगे। अपनी कमजोरियां देखना या सुनना सबसे अधिक चुभने वाली बात होती है। मन, वचन और कर्म से उपासना किए बिना हमारी पूजा सार्थक नहीं मानी जा सकती। गुरू की वाणी आत्मा को पवित्र कर पूर्णता की अनुभूति कराती है। अध्यक्षीय आशीर्वचन में स्वामी केदारनाथ ने मातृवाणी की व्याख्या करते हुए कहा कि गुरू, ईष्ट और मंत्र ये तीनांे एक साथ रहते हैं । गुरू को पा लिया तो समझो ईष्ट और मंत्र भी मिल गए। गुरू के बिना हमारी साधना परिपूर्ण और सार्थक नहीं हो सकती। हमारे दोष बताने के लिए भगवान नहीं आएंगे, गुरू ही हमें अपनी कमियां बता कर हमारा मार्गदर्शन करेंगे।
:: आज के कार्यक्रम :: 
महोत्सव में मंगलवार 21 मई को सुबह 5.30 से 6 बजे तक महामंत्र संकीर्तन, परिक्रमा एवं मंगला आरती, 6.15 से 7 बजे तक ध्यान योग, 8 से 10 बजे तक श्री वैष्णोदेवी, हनुमानजी एवं भैरवजी का रूद्राभिषेक पूजा-आरती एवं मातृ चालीसा के बाद 10 से 12 बजे तक मातृवाणी पाठ एवं सत्संग सत्र होगा। अपरान्ह 4.30 से 7 बजे तक सत्संग का दूसरा सत्र होगा। सांय 7.30 से 9 बजे तक आरती, संकीर्तन एवं 8.45 से 9 बजे तक मौन का आयोजन होगा। 
 

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