उतना पर को संतुष्ट करने के लिए आपको चिंता में डूबना पड़ता है –  अजितसागर महाराज

भोपाल। आचार्य विद्यासागर के शिष्य मुनिश्री अजितसागर ऐलक दयासागर महाराज, विवेकानंदसागर महाराज के सानिध्य में सर्वोदय सम्यग्ज्ञान विद्या शिक्षण शिविर राजधानी के विभिन्न जैन मंदिरों में लग रहा है। पंचायत कमेटी ट्रस्ट के प्रवक्ता अंशुल जैन ने बताया दस दिवसीय शिक्षण शिविर में शिविरार्थि धार्मिक शिक्षण के साथ-साथ प्रतिदिन की जीवनशैली को ऊँचा करने तथा भारतीय पुरातत्व संस्कृति और संस्कारों की रक्षा के लिए विशेष प्रशिक्षित विद्वानों द्वारा शिक्षा ले रहे हैं। पुराने शहर के मुख्य चौक जिनालय के साथ-साथ शहर के अनेक मंदिरों में हर आयु वर्ग के शिविरार्थियों को सांगानेर, राजस्थान के विशेष प्रशिक्षित विद्वान एवं आचार्य श्री विद्यासागर महाराज की संघस्त ब्रम्हचारिणी दीदीयाँ प्रशिक्षण देर रही हैं। 
आज आशीष वचन में मुनिश्री अजितसागर महाराज ने कहा जितना दृव्यक्षेत्र काल को आप प्रशस्त करना चाहते हो उसके कोटि-कोटि होना निज के परिणामों को प्रशस्त करना होगा। आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए आत्मा को ध्यान की अग्नि में ले ही जाना पड़ेगा।  
ऐलक विवेकानंद सागर महाराज ने कहा भावों से बंद है और भावों से मोक्ष है। भेष बदलकर व्यक्ति कुछ भी कर सकता है, अगर भाव बदल गये तो अच्छे भावों से नर से नारायण और बुरे भावों से नर से नारकीय भी बन सकता है। परिणाम तो संभल जायेंगे और परिणामों को संभालने पर पर्याय भी स्वमेव संभल जायेगी। कुछ संभाल सको या न संभाल सको पर अपने भावों को संभालकर रखना। साधु पुरूष अपने राई के समान छोटे दोष को पर्वत के समान विशाल समझकर छोड़ने का पुरूषार्थ करते है। पापी पर की निंदा करता है और पुण्यात्मा स्व की निंदा करता है। निरंजन पद प्राप्त करना है तो पर निंदा से बचो और निज की निंदा करो। 
जितना चिंता का विषय आपके निज का निज में नहीं है, उतना पर को संतुष्ट करने के लिए आपको चिंता में डूबना पड़ता है। 

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