जितना हल्ला उतना काम नहीं, स्मार्ट नहीं बन पाया जबलपुर शहर
जबलपुर। स्मार्ट सिटी के नाम पर बेहद छलावा हो रहा है। शहर स्मार्ट नहीं हो पा रहा है लेकिन स्मार्ट कानून जरुर जनता पर लादे जा रहे है। स्मार्ट सिटी के नाम पर एक क्षेत्र विशेष में कुछ काम जरुर दिख रहा है वो भी इतना गुणवत्तापूर्ण व आर्कषक नहीं है जिसे बानगी के रुप में पेश किया जा सके है। अलबत्ता स्मार्ट सिटी के नाम पर नगर निगम द्वारा टैक्स जरुर बढ़ा दिया गया है। सड़के चलने लायक है कि नहीं, पर्यावरण सुरक्षित है कि नहीं,
सड़को को चौड़ीकरण के नाम पर की गई तोड़फोड़ व्यवस्थित हो पाई कि नहीं, यह देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। स्मार्ट सिटी की सड़कों पर आवारा पशुओं की धमाचौकड़ी मची हुई है। हांका गैंग को फोन करों तो पहले पशु मालिकों को खबर हो जाती है, और हालत जस के तस बन जाते है। अब तो जबलपुर की पुलिस भी स्मार्ट चालान करने लगी है। सिग्नल की टाइमिंग सही नहीं है चौराहे पर यातायात पुलिस कर्मी मौजूद रहे या न रहे पर चालान करने वाले चौराहों पर वसूली चालू आहे। सौदा हो गया तो ठीक नहीं तो ई-चालान तो तैयार है ही। ई-चालान करने में नगर निगम आई.टी.एम.एस. स्मार्ट सिटी जबलपुर द्वारा भी जोर-शोर से ई-चालान किये जा रहे है।
सैकड़ों वृक्ष कटे एक भी नहीं लगे……….
केन्द्र सरकार ने आज से पांच साल पहले जबलपुर शहर को स्मार्ट सिटी योजना में शामिल किया था। इसके बाद कछुआ गति से काम शुरु हुआ और चलता रहा। विकास के नाम पर जबरदस्त विनाश किया गया। अकेले राइट टाउन क्षेत्र में सड़कें चौड़ी करके लाईट लगा दी गई और वॉल पैंट करके आकर्षक बनाने की कोशिश की गई। सत्कार होटल से लेकर होमसांइस कॉलेज से लगे सैकड़ों वृक्ष काट दिये गये। लेकिन एक भी वृक्ष नहीं लगाया गया, जबकि नियम यह है कि एक वृक्ष काटने पर १० वृक्ष लगाने होंगे। स्मार्ट सिटी के नाम पर अनाप-शनाप खर्च किया गया और अंतत: इसका भार लोगों पर टैक्स के रुप में आयेगा। आवार जानवर इस स्मार्ट सिटी की सड़कों पर जमघट लगाये रहते है। बसों की अवैध पार्विंâग लोगों को परेशान करती। स्मार्ट इलाके में ट्रैfिफक कंट्रोल का कोई सिस्टम नहीं इसके बावजूद पुलिस ई-चालान करने में लगी हुई है। आज भी जबलपुर किसी कस्बा से कम नजर नहीं आता।
इसीलिए व्यापारियों ने किया था विरोध………
स्मार्ट सिटी में शामिल रानीताल चौराहे से लेकर बल्देवबाग तक के व्यापारियों ने बोर्ड लगा रखा था। अनियोजित विकास में सहभागी नहीं होगें, हमें नहीं चाहिए ऐसा विकास इस आशय के बोर्ड दुकानों के सामने लगा रखे थे। खुद भाजापा के नेता स्मार्ट सिटी के नाम पर चल रही बंदरबाट का विरोध कर चुके है। स्मार्ट सिटी में २४ घंटे विद्युत आपूर्ति, २४ घंटे जल आपूर्ति, बेहतर स्वास्थ्य सेवायें और सुगम यातायात के वादे किये गये थे लेकिन इनमें से एक भी वादा पूरा नहीं किया गया। स्मार्ट सिटी में लगे हजारों रुपये करोड़ों की मैंचिंग ग्रांट का एक हिस्सा राज्य सरकार और दूसरा हिस्सा नगर निगम को देना है। लिहाजा इसकी भरपाई जनता से ही होगी।
क्या यहीं है स्मार्ट सिटी………
सड़कों पर आवारा जानवरों की चहल कदमी बीच चौराहों पर पड़ाव बेतरतीब यातायात, बेतरतीब पार्विंâग और ठप्प सफाई व्यवस्था क्या यहीं स्मार्ट सिटी है। अकेले ई-चालान करने से शहर स्मार्ट नहीं होगा, व्यवस्थायें बनानी होगी लोगों में उसकी आदत डालनी होगी। निज पर शासन फिर अनुशासन करना होगा। स्मार्ट शहर की योजना के तहत बनाई गई मल्टी लेवल पार्किग महज शो-पीस बनी हुई है पैसों और जगह की बर्बादी हो गई लेकिन हालात ढाक के तीन पात ही है।