नारायण नगर जैन मंदिर परिसर में नवीन मानस्तम्भ का लोकार्पण

भोपाल। श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर नारायण नगर में आज आचार्य विशुद्ध सागर महाराज के सानिध्य में मंदिर परिसर में नव निर्माणाधीन मानस्तम्भ का लोकार्पण हुआ। जिनालय में प्रात: मूल नायक भगवान पार्श्वनाथ की अति मनोहारी पदमासन प्रतिमा का भक्ति भाव से श्रद्धालुओं ने कलशाभिषेक किया। तत्पश्चात सम्पूर्ण विश्व में शांति सदद्भाव परस्पर वात्सल्य की कामना को लेकर आचार्य श्री के मुखार बिन्द से शांतिधारा की गई। विधि-विधान से धार्मिक अनुष्ठानों के साथ संगीतमय स्वर लहरियों के साथ भगवान पार्श्वनाथ की पूजा अर्चना कर अष्ट दृव्यों से अर्घ्य समर्पित किये। 
    आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज ने आशीष वचन में कहा जो किसी से अपेक्षा न करे, दूसरों की उपेक्षा को समताभाव से सहन कर ले, वहीं साधु स्वभावी सज्जन पुरूष है, जिसकी साधु बनने की सामर्थ्य नहीं है उसे संतोष धारण करना चाहिए। जो जगत के भोगों की उपेक्षा कर देता है वही साधक ध्यान की सिद्धी कर सकता है। लोक में सम्मान प्राप्त करना है तो किसी से अपेक्षा नहीं करना, क्योंकि अपेक्षायें, आकांक्षायें सबसे बड़ा दु:ख का कारण है। आकांक्षा अन्तरंग के आनन्द को समाप्त कर देती है। आनन्द प्राप्त करना है तो तप करते हुए भी किसी प्रकार की आकांक्षा नहीं करना। आचार्य श्री के संदेश को सुनकर उपस्थित श्रद्धालुओं ने समाधि का नियम लिया। समाधि समाधि-मरण का ही नाम नहीं हैं प्राणी मात्र के अंदर समत्व के भाव का नाम समाधि है। आचार्य श्री ने कहा सभी 24 घण्टे में से कुछ पल भले ही एक मिनिट निकालो, उस एक मिनिट में संसार के सभी प्राणियों, जीवों के प्रति समता का भाव रखते हुए उनके कल्याण की प्रार्थना प्रभु से करो। प्राणी मात्र के कल्याण की प्रार्थना करते हुए अपने शत्रुओं से क्षमा मांगो, यही सच्ची समाधी है। 
आचार्य श्री ने आगे कहा कि अच्छे बुरे में सुख-दु:ख में समान भाव को होना ’समता‘ है। शत्रु-मित्र में समानता का भाव आना ही समत्वभाव है और समत्वभाव ही संतों की पहचान है। समत्वभाव ही समाधि है, कषायों और देह को कृश करते हुए समताभाव के साथ देह से राग छोड़कर प्राणों का विसर्जन करने वाला ही समाधि मरण को प्राप्त हो सकता है।  
बाहर के लोगों से क्षमा मांगने में जितना समय देते हो, अगर भीतर से क्षमा मांग ली तो क्षमा के सागर हो जाओगे। हृदय के पटल पर विवेक रूपी ज्ञान का पोछा लगा लो, जिससे अंतरंग की स्वच्छता छलकेगी। सबसे बड़ा विवेकवान वही है जो चित्त में आई हुई बात पर तुरंत निर्णय करता है। धर्मसभा में आचार्य श्री विरोग सागर महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन, समाज के श्रेष्ठीजनों द्वारा किया गया पंकज इंजीनियर परिवार द्वारा आचार्य श्री का पादप्रच्छालन, मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेश जैन द्वारा आचार्य श्री के कर-कमलों में शास्त्र भेंट किये। 
इस अवसर पर समाज के प्रमुख बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय चौधरी एडवोकेट, ज्ञानचंद जैन, प्रदीप नौहरकला, मंदिर समिति के अध्यक्ष राजेश जैन, पार्षद सोनू भाभा, सुधीर जैन, सुनील जैनाविन, डॉ अशोक जैन, महेश सिंघई, राकेश सिंघई, पी.सी. जैन, विनोद जैन मंडीदीप, आकाश, एन.के. जैन, अशोक बड़कुल, प्रदीप सहित अनेक धर्मावलंबी उपस्थित थे। 
प्रवक्ता अंशुल जैन ने बताया आज 21 मई को आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज संघस्त 22 मुनिराजों के साथ आज राजधानी से पदविहार कर विदाई ली, उपस्थित श्रद्धालुओं की आचार्य श्री के मंगल विहार के समय नम आँखें हो गई, भाव-विहल होकर श्रद्धालुओं ने आचार्य श्री के चरण पखारे और आरती उतारकर विदाई की। आचार्य श्री रात्रि विश्राम आज मण्डीदीप रोड पर ज्ञानगंगा अकादमी में होगा, प्रात: मण्डीदीप के जैन समाज द्वारा आचार्य श्री अगुवानी की जायेगी, आचार्य श्री आशीष वचन पटेल नगर जैन मंदिर मण्डीदीप में होंगे। आचार्य संघ का विहार मुल्ताई की ओर चल रहा है। 

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