सावन के दूसरे सोमवार बना अद्भुत संयोग: ऐसे करें शिव पूजन, देखते ही देखते हो जाएंगे अमीर

वेदों के अनुसार सम्पूर्ण संसार शिव से ही प्रकट हुआ है। शिव महापुराण में कहा गया है प्राणियों की आयु का निर्धारण करने हेतु शिव ने काल की कल्पना की। उसी से ही ब्रह्मा से लेकर अत्यन्त छोटे जीवों तक की आयुष्य का निर्धारण होता है। उस काल को व्यवस्थित करने हेतु महाकाल ने सप्तवारों की रचना की। इसी के चलते अपनी सर्वसौभाग्यदात्री शक्ति उमा हेतु द्वितीय वार अर्थात सोम की रचना की। सोम का अर्थ होता है उमा के सहित शिव। मात्र शिव की उपासना न करके साधक शक्ति की भी उपासना करता है। क्योंकि शक्ति रहित शिव के रहस्य को समझना असंभव है। अतः भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया। शास्त्रनुसार सोम का अर्थ चंद्रमा है और चंद्रमा भगवान शंकर के शीश पर मुकुटायमान होकर सुशोभित होता है।


शिव, श्रावण सोमवार व पुष्य नक्षत्र का आपस में गहरा नाता है। मान्यतानुसार अन्य दिनों की अपेक्षा सावन के महीने में शिव पूजन का कई गुणा अधिक लाभ मिलता है। इसी कारण शिव भक्तों में सावन के महीने को लेकर गजब का उत्साह रहता है। साल 2017 में श्रावण माह की खास बात यह है कि पूरे श्रावण में 5 सोमवार होंगे। पंच सोमवारीय श्रावण होने से इस वर्ष रोटक व्रत लग रहा है। मान्यतानुसार रोटक व्रत पूरा करने यानी पांचों सोमवार व्रत करने व शिव-पार्वती पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साल 2017 के श्रावण के पंच सोमवारीय में तीन सोमवार को सर्वार्थ सिद्ध योग है। साथ ही सोमवार दिनांक 24.07.17 को भी प्रातः 05:57 से प्रातः 7.45 तक सर्वार्थ सिद्ध योग बना रहा है। 


मुहूर्त का ज्योतिष शास्त्र में स्थान एवं जनसामान्य में इसकी महत्ता विशिष्ट है। वैदिक ज्योतिष के पंचांग खंड में अंग स्वरूप नक्षत्र का स्थान द्वितीय स्थान पर है। नक्षत्र सर्वाधिक गति से गमन करने वाले चंद्रमा की स्थिति के स्थान को इंगित करते हैं जो कि मन व धन के अधिष्ठाता हैं। हर नक्षत्र में चंद्रमा की उपस्थिति विभिन्ना प्रकार के कार्यों की प्रकृति व क्षेत्र को निर्धारण करती है। इनके अनुसार किए गए कार्यों में सफलता की मात्रा अधिकतम होने के कारण उन्हें मुहूर्त के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में 27 नक्षत्र माने गए हैं। इनमें पुष्य नक्षत्र 8 वें स्थान पर आता है। शास्त्रनुसार चूंकि यह नक्षत्र स्थायी होता है और इसीलिए इस नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु स्थाई तौर पर सुख-समृद्धि देती है।


शास्त्रों में पुष्य नक्षत्र को संतुष्टि एवं पुष्टिप्रदायक होने के कारण श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रनुसार पुष्य नक्षत्र का स्वामी शनि ग्रह होता है। इसे नक्षत्रों का राजा भी कहते हैं। ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को मंगल कर्ता, वृद्धि कर्ता और सुख-समृद्धि दाता कहा गया है। माना जाता है कि पुष्य नक्षत्र की साक्षी से किए गए कार्य सर्वथा सफल होते हैं। इसे व्यापारिक कार्यों के लिए तो यह विशेष लाभदायी माना गया है। पुष्य नक्षत्र में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह व उससे संबंधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। जब पुष्य नक्षत्र सोमवार, गुरुवार या रविवार को आता है, तो एक विशेष वार नक्षत्र योग निर्मित होता है। जिसका संधिकाल में सभी प्रकार का शुभफल सुनिश्चित हो जाता है।


विशेष: दिनांक 24.07.17 सावन का महीना, सोमवार का दिन, शनि का नक्षत्र पुष्य पर परमेश्वर शिव के पूजन का विशेष महत्व है। अतः सर्वार्थ सफलता हेतु किसी भी शिवलिंग पर दूध में तिल, गंगा जल, शहद और शर्करा मिलाकर रुद्री पाठ करते हुए अभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी और देखते ही देखते हो जाएंगे अमीर, देवी महालक्ष्मी आपके भंडार भर देंगी।

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