हरियाणा विस चुनावः कम हुआ मतदान, सियासत की विरासत के लिए ‘घरानों’ का कड़ा इम्तिहान
हरियाणा के राजनीतिक घरानों के लिए मौजूदा सियासी हालातों में ये चुनाव एक कड़े इम्तिहान से कम नहीं है। अपने वजूद के लिए इन घरानों को न केवल इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करना होगा, बल्कि सम्मानजनक जीत दर्ज कर अपना दमखम भी साबित करना है। हरियाणा के इस चुनावी रण में भाजपा ने भी प्रदेश के राजनीतिक घरानों की घेराबंदी जबरदस्त ढंग से की थी। इनके हलकों में भाजपा दिग्गजों की हुंकार के साथ जहां परिवारवाद के मसले पर इन घरानों को निशाने पर रखा गया, वहीं इनके दुर्ग में सेंधमारी के लिए खूब जोर आजमाइश की गई।
खासकर, हरियाणा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रैलियों का शेड्यूल ही पूरी तरह कूटनीतिक ढंग से बनाया गया था। भाजपा के ये मुख्य स्टार प्रचार पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ में भी गरजे और चौटाला परिवार के इलाके में भी। पूर्व सीएम भजन लाल, पूर्व सीएम बंसीलाल के क्षेत्र के साथ-साथ अहीरवाल बेल्ट में भी पीएम मोदी ने अपने चिरपरिचित अंदाज में सियासी घरानों को घेरते हुए हरियाणा के मतदाताओं की नब्ज को पकड़ने का प्रयास किया।
मोदी ने हर इलाके में मतदाताओं को प्रभावित करने वाले मुद्दों को मंच से प्रभावशाली ढंग से उछाला और प्रदेश की जनता को यह बताने का प्रयास किया कि अब वक्त बदल चुका है, प्रदेश की जनता अबहरियाणा की राजनीति सिर्फ कुछ घरानों तक ही सीमित नहीं रखना चाहती। उधर, रही-सही कसर गृहमंत्री अमित शाह समेत भाजपा के अन्य स्टार प्रचारकों ने पूरी कर दी। इन नेताओं के निशाने पर भी हरियाणा में परिवारवाद की राजनीति ही रही।
भाजपा के इस आक्रामक चुनाव प्रचार और घेराबंदी के बावजूद इन घरानों के लिए सियासत की विरासत बढ़ती रहे, इसके लिए इन घरानों को बेहतरहीन प्रदर्शन की दरकार है। विधानसभा की इस चुनावी जंग में यदि देखें, तो इन घरानों ने जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। इन घरानों के सदस्य जिस सीट से खड़े थे, वहां इन प्रत्याशियों की ओर से जी-तोड़ मेहनत भी की गई। अब देखना यह है कि आने वाले नतीजे इन सियासी घरानों के लिए कितने सुखद रहते हैं।
हुड्डा की चौधर और कांग्रेस की मजबूती का सवाल
देश की पहली संविधान सभा के सदस्य और संयुक्त पंजाब में मंत्री रहे रणबीर सिंह हुड्डा के बेटे पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस बार फिर चुनाव लड़ा है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा दो बार लगातार हरियाणा के मुख्यमंत्री (2005-14) भी रह चुके हैं। 2014 का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में ही लड़ा गया था। मगर प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा और कांग्रेस 15 सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस सदन में मुख्य विपक्षी दल भी न बन सकी थी। इस बार अक्टूबर 2019 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस की कमान भूपेंद्र हुड्डा को सौंपी गई।
मगर इससे पहले इसी साल मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके तीन बार केसांसद बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने किस्मत आजमाई थी। लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि दोनों पिता-पुत्र लोकसभा चुनाव हार गए। बावजूद इसके कांग्रेस ने विधानसभा की जंग में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही आगे बढ़ाते हुए चुनावी कमान सौंपी। हुड्डा ने फिर अपनी परंपरागत सीट गढ़ी-सांपला-किलोई से चुनाव लड़ा और उनके बेटे दीपेंद्र ने पिता को जितवाने की जिम्मेवारी अपने कंधों पर ली।
उधर, टिकट वितरण के दौरान ही भूपेंद्र सिंह के धुर विरोधी पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर ने हुड्डा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए चुनाव जैसे नाजुक वक्त पर पार्टी छोड़ दी और खुलेआम विरोधियों संग जा मिले। अब चूंकि चुनाव में कांग्रेस की कमान हुड्डा के हाथ हैं, पार्टी में खुलकर बगावत भी हुई, लोकसभा चुनाव पिता-पुत्र दोनों हारे, उसके बावजूद भूपेंद्र सिंह फिर मैदान में हैं, ऐसी स्थिति में हुड्डा परिवार की ‘चौधर’ और प्रदेश में कांग्रेस की मजबूती भूपेंद्र सिंह और उनके उन समर्थक प्रत्याशियों का जीतना बेहद जरूरी बनता है, जिन्हें उन्होंने ‘अड़कर’ टिकट दिलवाया है।
चौटाला कुनबे के लिए ‘वर्चस्व’की लड़ाई
देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल का परिवार इस बार टूटकर चुनाव लड़ा। देवीलाल के दोनों पौत्र व पूर्व सीएम ओमप्रकाश चौटाला के दोनों बेटों अभय चौटाला और अजय चौटाला दोनों की राहें इस चुनाव में अलग थी। अभय इंडियन नेशनल लोकदल से चुनाव लड़ रहे थे, तो इनेलो से अलग हुई अजय चौटाला की जननायक जनता पार्टी की टिकट पर उनके बेटे दुष्यंत चौटाला व पत्नी नैना सिंह चौटाला इस बार चुनाव मैदान में थी।
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल रहे इनेलो के लिए इस बार डगर आसान नहीं है और अभय चौटाला, दुष्यंत चौटाला व नैना सिंह चौटाला के लिए यह चुनाव बड़ी प्रतिष्ठा का भी सवाल है, क्योंकि यही चुनाव इनेलो और जजपा के बीच ‘वर्चस्व’ और चौटाला कुनबे का भविष्य तय करेगा।
इनके अलावा ताऊ देवीलाल का एक और पौत्र आदित्य चौटाला भी इनेलो और जजपा से अलग राह पकड़कर इस बार भाजपा की टिकट से मैदान में है। अब देखना यह है कि चौटाला परिवार के इन सदस्यों में से कौन अपने घराने की सियासी विरासत को बढ़ाते हुए विधानसभा की दहलीज तक पहुंचता है।
पूर्व सीएम भजन व बंसीलाल घराने की प्रतिष्ठा दांव पर
इसी तरह पूर्व सीएम भजनलाल व पूर्व सीएम बंसीलाल के घराने की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले भजनलाल के दोनों बेटे कुलदीप बिश्नोई व चंद्रमोहन बिश्नोई मैदान में है। पुत्रवधु रेणुका बिश्नोई ने इस बार चुनाव नहीं लड़ा। जबकि लोकसभा चुनाव हारने के बाद पौत्र भव्य बिश्नोई नई पारी के लिए सही समय व प्लेटफार्म का इंतजार कर रहे हैं।
ऐसे में कुलदीप और बिश्नोई की जीत अपने सियासी घराने की प्रतिष्ठा और भविष्य से जुड़ी है। इसी तरह पूर्व सीएम बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी, उनके बेटे रणबीर महेंद्र व दामाद सोमबीर सिंह भी इस चुनावी रण में है। बंसीलाल घराने की यह पीढ़ी घराने की सियासी विरासत को आगे बढ़ाने में जुटी हुई है।
हालांकि बंसीलाल की पौत्री पूर्व सांसद श्रुति चौाधरी इस साल लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं। मगर परिवार की सियासत को आगे बढ़ाने के लिए अब किरण, रणबीर और सोमबीर को जीतना जरूरी होगा।
ये घरानों भी जीत की आस पर टिके
अहीरवाल बेल्ट से विधायक रहे राव अभय सिंह की सियासी विरासत उनके बेटे कैप्टन अजय यादव आगे बढ़ा रहे हैं। हरियाणा के पूर्व मंत्री रहे कैप्टन अजय यादव ने इस बार लोकसभा चुनाव लड़ा था, मगर हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद उन्होंने इस बार विधानसभा चुनाव से किनारा कर अपनी अगली पीढ़ी अपने बेटे राव चिरंजीव यादव (लालू प्रसाद यादव के दामाद) को लांच किया है।
चिरंजीव पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए घराने की सियासत को आगे बढ़ाने केलिए चिरंजीव का जीतना जरूरी है। इसी तरह किसानाें का मसीहा रहे सर छोटू राम के नाती राज्यसभा सदस्य चौधरी बीरेंद्र सिंह उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे है।
उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी यानी अपने बेटे पूर्व आईएएस बृजेंद्र सिंह को लोकसभा चुनाव जितवाकर सांसद बना दिया है और अब उनकी पत्नी प्रेमलता फिर से मैदान में हैं। प्रेमलता का मुकाबला बेहद कड़ा है, लिहाजा उन्हें भी जीत की प्रबल आस है।