38 विधायकोंं के क्षेत्र में हारी उनकी पार्टी
सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी पंजाब की 13 संसदीय सीटों में आठ जीतकर बेशक इतरा रही हो, लेकिन आंकड़े कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैैं। दो साल दो महीने पहले कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में 77 सीटें लेकर दो तिहाई बहुमत में आई कांग्रेस के 24 विधायक इस बार पिछड़ गए हैं। यह अलग बात है कि कुछ अन्य सीटों पर कांग्रेस आगे रही है।
अगर सभी पार्टियों के विधायकों की बात करें तो 38 विधायक अपनी अपनी सीटों से अपनी पार्टी के संसदीय प्रत्याशी को जितवाने में नाकाम रहे। फिरोजपुर और गुरदासपुर में कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान है। गुरदासपुर की नौ विधानसभा सीटों में से इस समय कांग्रेस के सात विधायक हैं जिनमें से पांच अपनी सीटें हार गए।
इसी तरह से फिरोजपुर संसदीय सीट कांग्रेस पार्टी के छह विधायक दो साल पहले ही चुनकर विधानसभा में पहुंचे थे लेकिन जब उन्हें अपनी पार्टी के शेर सिंह घुबाया को जितवाने के लिए काम करना पड़ा तो सभी ठुस हो गए। शिरोमणि अकाली दल के सुखबीर बादल ने संसदीय सीट की सभी नौ विधानसभा सीटों पर कब्जा कर लिया। इससे पहले इस संसदीय सीट की तीन विधानसभा सीटें शिअद-भाजपा के पास थीं और पार्टी इन्हें अपने पास रखने में कामयाब रही है।
इसी तरह पार्टी को होशियारपुर सीट पर भी अच्छी खासी क्षति उठानी पड़ी है। इस सीट पर चार विधायकों ने अपनी सीट गंवा दी, जिनमें तीन कांग्रेस के हैं। मुकेरियां, दसूहा और होशियारपुर के विधायक अपनी सीटें नहीं बचा सके। इसके अलावा आनंदपुर साहिब, संगरूर, बठिंडा व जालंधर में दो-दो और लुधियाना व फरीदकोट में एक-एक विधायक की सीट नहीं बच सकी।
कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी को नुकसान सबसे ज्यादा हुआ है। पार्टी को बठिंडा, फरीदकोट और लुधियाना में नुकसान हुआ है। 2017 में पार्टी ने 20 सीटें जीतीं थी, जबकि उसकी सहयोगी लोक इंसाफ पार्टी ने दो जीतीं थीं। इस बार आप के 12 विधायक हार गए, जबकि लोक इंसाफ पार्टी ने अपनी सीटें दो से बढ़ाकर चार कर लीं। शिरोमणि अकाली दल और भाजपा को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ है। 2017 में 18 विधायक जीते थे जिनमें से इस बार दो विधायक अपनी सीट का वोट बैंक नहीं बचा सके।