क्रोध भैरव की आराधना करने से दूर होती हैं सारी परेशानियां

सनातन धर्म में भगवान भैरव की पूजा काफी लाभकारी मानी जाती है। कहा जाता है बाबा भैरव शिव शंकर के अंशावतार हैं। जिस कारण ये भी अधिक पूजनीय हैं। मगर बहुत से लोग हैं, जिन्हें आज भी ये नहीं पता कि इनकी पूजा कब करनी चाहिए तथा इनकी पूजा से कैसा फल प्राप्त होता है। बल्कि कुछ तो ऐसे लोग हैं जो इसी बात को लेकर असमंजस में रहते हैं कि उनके किस रूप की आराधना करनी चाहिए। दरअसल बहुत हिंदू धर्म के कुछ शास्त्रों में कुल 52 भैरवों का जिक्र मिलता है। जिनमें से मुख्य रूप से 8 भैरव हैं जो हैं-1.असितांग भैरव, 2. रुद्र या रूरू भैरव, 3. चण्ड भैरव, 4. क्रोध भैरव, 5. उन्मत्त भैरव, 6. कपाली भैरव, 7. भीषण भैरव और 8. संहार भैरव। इसके अलावा आदि शंकराचार्य ने भी प्रपंच-सार तंत्र शास्त्र अष्ठ-भैैरवों के नाम लिख हैं, तंत्र शास्त्र में भी इनका विस्तार किया गया है। तो वहीं सप्तविंशति रहस्य में 7 भैरवों के नाम वर्णित हैं, इसी ग्रंथ में एक जगह 10 वीर भैरवों का वर्णन पढ़ने को मिलता है तथा बटुक-भैरवों का उल्लेख भी इसी में मिलता हैै। रुद्रायमल तंत्र में 64 भैरवों के नामों का उल्लेख है। हम आपको आज बताने जा रहे हैं भगवान क्रोध भैरव के बारे में-

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार क्रोध भगवान भैरव के इस रूप का रंग नीला होता है। कहा जाता है कि जिस तरह से शिव जी त्रिनेत्र हैं, ठीक वैसे ही ये भी त्रिनेत्र वाले हैं। तो वहीं भगवान विष्णु की तरह इनके वाहन गरुड़ देव हैं। इन्हें दक्षिण एवं पश्चिम दिशा के स्वामी माना जाती है। इनका नक्षत्र हैं रोहिणी तथा रत्न मोती है। इनकी पत्नी वैष्णवी कहलाती हैं, इनका मुख्य मंदिर तमिलनाडु के थिरुविसन्नलूर में स्थित है। कहा जाता है इनकी पूजा करने से जातक को अपनी सभी तरह की मुसीबतें व परेशानियां से राहत मिलती है।

ज्योतिष व धार्मिक शास्त्रों में इनसे जुड़े कई उपाय व मंत्र दिए गए हैं, यहां जानें इनका ध्यान मंत्र-

उद्यद्भास्कररूपनिभन्त्रिनयनं रक्ताङ्ग रागाम्बुजं
भस्माद्यं वरदं कपालमभयं शूलन्दधानं करे ।
नीलग्रीवमुदारभूषणशतं शन्तेशु मूढोज्ज्वलं
बन्धूकारुण वास अस्तमभयं देवं सदा भावयेत् ॥ 4 ॥
 

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