जीतेजी नर्क या स्वर्ग 

धर्म और ईश्वर पर आस्था रखने वाले के लिए तो स्वर्ग और नर्क का विशेष महत्व होता है। इसलिए सामान्यजन के मन में सवाल आता है कि किस काम को करने से धरती पर ही नर्क या स्वर्ग बन जाता है? इस सवाल पर यही कहा जा सकता है कि जिस स्थान पर दूसरों के साथ छल-कपट का व्यवहार किया जाता हो। जहाँ पर दूसरों को गिराने की योजनाएं बनाई जाती हों और जहाँ पर दूसरों की उन्नति से ईर्ष्या की जाती हो, वह स्थान सही मायने में धरती का नर्क ही है। ऐसे स्थान पर रहने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता है और उसके संपर्क में आने वाले को भी सदा कष्ट सहना पड़ता है। नर्क अर्थात वह वातावरण जिसका निर्माण हमारी दुष्प्रवृत्तियों व हमारे दुर्गुणों द्वारा होता है। इसके विपरीत स्वर्ग अर्थात वह स्थान जिसका निर्माण हमारी सद्वृत्तियों व हमारे सद आचरणों द्वारा किया जाता है। यदि उसी धरती को स्वर्ग बनाना है तो ऐसे तमाम कर्मों से किनारा कर लिया जाए, स्वयं देखेंगे कि खुशियां चारों ओर फैल रही हैं इसे स्वर्ग माना गया है। अंतत: मृत्यु उपरांत हम कहाँ जाएंगे यह महत्वपूर्ण नहीं है, अपितु हम जीते जी नर्क में या स्वर्ग में कहाँ जा रहे हैं यह महत्वपूर्ण होता है। 

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