मध्‍य प्रदेश विधानसभा उपचुनावों की घमासान से पहले BJP में अब कहां हैं सिंधिया

ग्वालियर. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में इन दिनों बीजेपी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को लेकर लगाए गए उस पोस्टर के काफी चर्चे हैं जिसमें पूछा जा रहा है कहां गायब हैं सिंधिया? लापता सिंधिया के ये पोस्टर बेशक सियासत का हिस्सा हैं लेकिन सवाल जायज भी है कि वाकई बीजेपी में अब कहां हैं सिंधिया और एमपी की 24 सीटों के उपचुनाव हो जाने के बाद कहां होंगे?
24 में से ग्वालियर चंबल की 16 सीटें जिताने की नैतिक जिम्मेदारी सिंधिया के कंधों पर है जिसमें से 14 सीटें तो सीधे तौर पर सिंधिया समर्थक पूर्व विधायकों से जुड़ी हैं. बाकी मध्य, मालवा, बुंदेलखंड की पांच सीटें अलग. चुनाव के पहले चुनौती ये कि इनमें से कितने पूर्व विधायकों को सिंधिया मंत्री पद की शपथ दिलवा पाते हैं. फिर उन्हें चुनाव मैदान तक पहुंचाने की चुनौती अलग है. उम्मीदवार बनाए गए तो इनमें से 80 फीसद को जिताना भी है. सिंधिया के लिए बड़ा इम्तिहान बीजेपी के साथ जनता को ये बताना भी है कि वो शिवराज के मुकाबले के जननेता हैं. भीड़ उनके चेहरे पर भी जुटती है. क्या सिंधिया के ये इम्तिहान चुनाव के बाद भी खत्म हो पाएंगे?
राजनीति कयासों पर चलती है. लिहाजा इनकार नहीं किया जा सकता कि सिंधिया समर्थकों की वजह से बीजेपी में अगर बगावत बढ़ती है, तो बागी फिर मैदान में आएंगे और ये बागी चुनाव जीत गए तो तय है कि बीजेपी से हाथ भी मिलाएंगे. उस सूरत में सिंधिया क्या अपना रुतबा कायम रख पाएंगे. सवाल ये भी है कि बीजेपी वक्त देखकर दूल्हा किसी को भी बनाए. दामाद नहीं बनाती. चौधरी राकेश सिंह, प्रेमचंद गुड्डू , रामलखन सिंह, हरिवल्लभ शुक्ला, फूल सिंह बरैया, बालेंदू शुक्ला, लक्ष्मण सिंह…लंबी फेहरिस्त हैं ऐसे नामों की जो दूल्हा बनकर गए थे और बाराती बनकर कांग्रेस में लौट आए. तो 24 सीटों के उपचुनाव पर टिकी सिंधिया की सियासत क्या उनका ही सियासी भविष्य तय कर देगी और सवाल ये भी कि क्या अग्निपथ पर चल पड़े हैं सिंधिया?
दरअसल, इस वक्त बीजेपी एक तरह से चिंतामुक्त है. उसे पता है कि उपचुनाव जिताने की उससे ज्यादा चिंता सिंधिया को है. आलम ये है कि बीजेपी जानती है कि यदि सिंधिया बहुमत के आंकड़े के आगे भी निकलवा देते हैं और उसके बाद भी यदि दस सीटों पर उम्मीदवार हार जाते हैं तो भी सिंधिया वैसे ताकतवर नहीं रह जाएंगे, जैसे अभी खुद को वे और उनके समर्थक प्रोजेक्ट कर रहे हैं. यानी बीजेपी के इस वक्त दोनों हाथों में लड्डू हैं. वो बखूबी ये जानती है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद सिंधिया के रास्ते उसी लड़की की तरह बंद हो गए हैं, जो प्रेमी के साथ घर से लड़-झगड़ कर भाग आती है. हां, यदि ये चुनाव सिंधिया अपने जलवे से जिता लाते हैं, तब जरूर ग्वालियर चंबल की सियासत नई करवट लेगी. तब नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा , जयभान सिंह पवैया जैसे नेताओं को भी न चाहते हुए सिंधिया के लिए बाहें भी फैलानी होंगी और उनके निर्णयों के साथ सहमति भी रखना होगा. वैसे ये अभी बहुत दूर की कौड़ी है.
 

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