वीर सावरकर का अपमान, परिवार विशेष का बखान

अजमेर । अजमेर उत्तर के भाजपा विधायक व पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा है कि वीर सावरकर की वीरता पर सवालिया निशान लगाने वाली कांग्रेस सरकार और उसके नेता पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का इतिहास पढ़ें। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं का केवल एक परिवार का गुणगान और क्रांतिकारियों व वीरों का अपमान करने का रवैया बन गया है, जो उनकी मानसिकता को जाहिर करता है। क्रांतिकारियों और वीरों के अपमान की बदौलत ही आज कांग्रेस की पूरे देश में दुर्गति हो गई है। इसके बाद भी कांग्रेस और उसके नेता सबक सीखने को तैयार नहीं हैं।
उन्होंने वीर सावरकर जयंती की पूर्व संध्या पर सोमवार को जारी बयान में कहा कि राजस्थान की कांग्रेस सरकार देश की क्राति के दैदिप्यमान सूर्य वीर सावरकर को अपमानित और आजादी के आंदोलन में उनकी क्रांतिककारी भूमिका को निकारने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही उनकी जीवनी से छेड़छाड़ कर रही है। यही नहीं, वीर सावरकर द्वारा काल कोठरियों में भुगती गई शारीरिक और मानसिक यातनाओं को भी नकारा जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में 29 अप्रैल और 6 मई को लोकसभा चुनाव होने के बाद 12 मई को शिक्षा राज्यमंत्री गोविंदसिंह डोटासरा का बयान आया कि नए शिक्षा सत्र से पाठ्यक्रमों में बदलाव होगा। इसके लिए बाकायदा चार माह पुरानी सरकार ने गठन के बाद ही तैयारी शुरू कर दी थी, लेकिन लोकसभा चुनावों में जनविरोध की आशंका के चलते मतदान होने के बाद अपनी मंशा जाहिर की। 
देवनानी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार द्वारा स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में वीर क्रांतिकारियों की जीवनी और आजादी के आंदोलन से जुड़े उनके प्रसंगों को कम कर केवल कांग्रेस में परिवार विशेष से जुड़े रहे लोगों की जीवनी को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस सरकार को इस बात का डर है कि यदि क्रांतिकारियों को ज्यादा महत्व मिल गया, तो परिवार विशेष का महत्व कम हो जाएगा। वीर सावरकर की जीवनी को कम करने का प्रयास भी इसी का नतीजा है।
कक्षा दस की पुस्तक में बदलाव 
कांग्रेस सरकार ने बिना किसी विशेषज्ञ कमेटी के गठन के गुपचुप रूप से मनमाने तरीके से वीर सावरकर से जुड़ा पाठ बदला है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की सबसे महत्वपूर्ण कक्षा 10 के सामाजिक विज्ञान विषय की भाग 3 के एक भाग में परिवर्तन किया है। अध्याय तीन-अंग्रेजी साम्राज्य का प्रतिकार व संघर्ष में बदलाव किया है। इसमें विनायक दामोदर सावरकर से जुड़े हिस्से को बदला गया है। 
 यह किया बदलाव 
-जेल के कष्टों से परेशान होकर सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के पास चार बार दया याचिकाएं भेजीं। इसमें पहली दया याचिका 3 अगस्त, 1910 और दूसरी 1911 में भेजी गई थी। इनमें सरकार के कहे अनुसार काम करने और खुद को पुर्तगाल का बेटा बताया था। आगे लिखा है कि तीसरी दया याचिका 1917 और चौथी 1918 में दी गई। पाठ में उल्लेखित किया है कि ब्रिटिश सरकार ने याचिकाएं स्वीकार करते हुए सावरकर को 1921 में सेल्यूलर जेल से रिहा कर दिया था। उन्हें रत्नागिरी की जेल में रखा गया था। यहां से छूटने के बाद सावरकर हिंदू महासभा के सदस्य बन गए और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम चलाते रहे। पाठ में लिखा गया है कि सावरकर ने ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया। इसमें जोड़ा गया है कि सावरकर ने 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। यह भी लिखा गया है कि गांधीजी की हत्या के बाद उन पर गोडसे का सहयोग करने के मामले में मुकदमा चला था। इसके साथ ही पाठ में योजनाबद्ध रूप से सावरकर को बदनाम करने के लिए यहां तक लिखा गया है कि उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार का साथ दिया था। 
यह अंश हटाए
-वीर सावरकर एक महान देशभक्त, महान क्रांतिकारी एवं महान संगठनवादी थे। 
-उन्होंने आजीवन देश की स्वतंत्रता के लिए त्याग एवं तप किया। उसकी प्रशंसा शब्दों में नहीं की जा सकती है।
-सावरकर को जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया था अर्थात वे वीर सावरकर कहे जाते थे। 
-नाम के आगे से वीर शब्द भी हटाया गया
भाजपा सरकार ने पहली बार जोड़ा था सावरकर का पाठ
देवनानी ने कहा कि उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार में अपने कार्यकाल के दौरान दो सौ से अधिक वीर-वीरांगनाओं को स्कूली शिक्षा पाठ्यक्रम में शामिल किया था। पाठ्यक्रमों में व्यापक परिवर्तन कर राष्ट्रवाद से जुड़े विषयों को प्रमुखता से स्थान दिया। तब अकबर महान है जैसे संदर्भों को हटाकर महाराणा प्रताप महान है जैसे संदर्भ शामिल किए गए थे। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर प्रमाण सहित पाठ्यक्रम में बताया गया कि हल्दीघाटी की लड़ाई महाराणा प्रताप ने ही जीती थी। 
उन्होंने कहा कि इसमें पहली बार स्वातंत्रर्य वीर विनायक दामोदर सावरकर के महान देशभक्त चरित्र और संघर्ष से विद्यार्थियों को परिचित कराते हुए इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था। इतिहास के पाठ्यक्रम में क्रांति के दैदिप्यमान सूर्य सावरकर को वीर, महान देशभक्त और महान क्रांतिकारी बताया था। तब सेल्यूलर जेल में उन्हें दी गई यातनाओं को सामने रखकर स्थापित किया गया था कि कैसे भारत के महान क्रांतिकारियों पर अंग्रेजी राज में अत्याचार हुए थे। वीर सावरकर को बहुत ही छोटी काल कोठरियों में रखा गया। उनसे चक्की पिसवाई जाती थी और घाणी में बैल की जगह उन्हें जोता जाता था।  
 बदलाव में कौन जुड़े रहे
देवनानी ने आरोप लगाया गया है कि दिल्ली से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शिक्षा राज्यमंत्री गोविंदसिंह डोटासरा को नई सरकार गठन के तत्काल बाद जनवरी, 2019 में यह निर्देश दिए थे। पाठ्यक्रम में बदलाव राजीव गांधी स्टडी सर्किल नाम के एक संगठन की टीम ने किया है। इसमें कांग्रेस विचार प्रकोष्ठ से जुड़े विश्वविद्यालयों के शिक्षक भी जुड़े हैं।
महात्मा गांधी व इंदिरा ने भी की थी सावरकर की तारीफ
देवनानी ने कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि वीर सारवकर वीर थे, वीर हैं और वीर रहेंगे। उनकी वीरता को कोई भी नकार नहीं सकता है। उन्होंने इतिहास के पन्नों का उदाहरण देते हुए कहा कि वर्ष 1921 में महात्मा गांधी ने वीर सावरकर को बहादुर, चतुर और देशभक्त बताते हुए कहा था कि वीर सावरकर ने ही उनसे पहले अंग्रेजों की उद्दण्डता को पहचाना था। इसी प्रकार 1966 में इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर के बलिदान, देशभक्ति और साहस को सराहते हुए कहा था कि वीर सावरकर महान क्रांतिकारी थे, जिनके जीवन से लोग प्रेरणा लेते हैं। यही नहीं, केंद्र सरकार ने 1970 में वीर सावरकर पर डाक टिकट जारी किया था। इंदिरा गांधी ने मुंबई में निर्माणाधीन वीर सावरकर स्मारक के लिए उस वक्त अपनी तरफ से 11 हजार रूपए सहयोग राशि दी थी। वर्ष 1983 में केंद्र सरकार ने वीर सावरकर पर फिल्म बनाने की अनुमति भी दी थी।
तथ्यों के साथ छेड़छाड़
देवनानी ने कहा कि एक तरफ तो महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर की खुलकर तारीफ की थी, वहीं दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी कांग्रेस और उसके नेता वीर सावरकर के त्याग, बलिकान और देशभक्ति को मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पाठ्यक्रम में तोडफोड़ की जा रही है, वह पूरी तरह अनुचित है। पाठ्यक्रम में बदलाव के लिए वीर सावरकर द्वारा अंग्रेजों को लिखे गए पत्रों को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। हकीकत तो यह है कि वीर सावरकर ने रणनीति के तहत अंग्रेजों को पत्र लिखे थे, न कि दया याचिकाएं दायर की थीं। वीर सावरकर ने अंग्रेजों को लिखे पत्रों में एक बार भी माफी या क्षमा जैसे शब्दों का जिक्र तक नहीं किया था। 
देवनानी ने प्रदेशवासियों को दीं शुभकामनाएं
वीर सावरकर की जयंती 28 मई को देशभर में मनाई जाएगी। इस मौके पर देवनानी ने प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि वीर सावरकर का जीवन त्याग, तपस्या और बलिदान से भरा रहा है। हम सभी को उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए प्रदेश और देश के विकास व उत्थान में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए।  
 

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