“आओ, सुनें-गुनें कहानी” का सफल  आयोजन

भोपाल । आरंभ फाउंडेशन द्वारा जवाहर बाल भवन, भोपाल के रचनात्मक लेखन विभाग के तत्वाधान में "आओ, सुनें-गुनें कहानी" कार्यक्रम का सफल  आयोजन हुआ।  इस अभिनव प्रयोग में प्रमुख बाल साहित्यकारों और बालक-बालिकाओं ने भाग लिया और अपनी अपनी बाल कहानियां सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया, साथ ही कहानियों से अच्छी शिक्षाएं भी पाईं। कार्यक्रम में  इंदौर से आईं साहित्यकार सुषमा व्यास ने बच्चों को अपनी बाल कहानी "हरियाला जीवन "सुनाते हुए कहा कि किस तरह मोनू अपने आईपैड की जगह अपने दादा के गांव में प्राकृतिक वातावरण में पहुंचा और उसने अपनी सोशल साइट्स और गेम खेलने की आदत को बदला। मीना गौड़ ने "इंटरनेट" कहानी सुनाकर खतरनाक ऑनलाइन गेम्स के  दुष्परिणामों से सचेत किया और सकारात्मक प्रभाव पर रुचिकर कहानी सुनायी।
आरंभ फाउंडेशन की अध्यक्ष, अनुपमा अनुश्री ने अपनी बाल कहानी "सोशल मीडिया चक्रव्यूह" मेरे लाइक्स, तेरे लाइक्स से कम कैसे"  के  द्वारा बच्चों को बताया कि आत्ममुग्धता के इस आधुनिक दौर में बच्चे न किसी को सुन रहे हैं, न ही कुछ पढ़ रहे हैं, न कुछ सीख रहे हैं बस खुद को ही लाइक कर रहे हैं, तो किस तरह आदित्य को सोशल मीडिया और गेम की लत लगी और फिर कैसे उसे दादा-दादी की सिखाई बातों ने अवसाद, परेशानी और निराशा  से बचाया और उसने लाइक-कमैंट्स के चक्रव्यूह को अपने आत्मविश्वास से भेदन किया और पहले की तरह शतरंज, बैडमिंटन ,क्रिकेट से नाता जोड़ा। वह वॉइस कैप्टन भी बन गया, पढ़ाई में अच्छे अंक प्राप्त करके। उसके फिर से गार्डनिंग करने से उसकी घर की बगिया भी खिलखिला उठी। वंदना पुणतांबेकर ने बच्चों को कहानी "दुखद सेल्फी" सुनाते हुए कहा; कि कभी कभी मोबाइल में कैमरा होना भी एक मुसीबत से कम नहीं है , कि किस तरह से काव्या ने नया मोबाइल पाते ही अलग अलग तरीके से ,अलग अलग अंदाज में ढेरों सेल्फीज़ लेना शुरू किया और एक दिन वह एक खतरनाक जगह पर से गिरते गिरते बची, और उसकी अच्छी सेल्फी, दुखद सेल्फी बन गई। तब उसे होश आया कि किसी भी चीज के प्रति इतना पागलपन ठीक नहीं है।
सुधा दुबे ने जंगल के बच्चों पर पशु पक्षियों पर मोबाइल के आ जाने से कैसा प्रभाव पड़ता है ,इसका रोचक वर्णन अपनी कहानी "जंगल में अमंगल" के द्वारा बताया। मधुलिका सक्सेना ने अपनी कहानी में किस तरह सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को नेक कार्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है इसका चित्रण किया।  जवाहर बाल भवन के निदेशक डॉ उमाशंकर नगाइच ने जवाहर बाल भवन के संचालक डॉ. उमाशंकर नगायच ने अपने प्रेरक उद्बोधन में बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि सृजनात्मक लेखन नहीं होगा तो अन्य सृजनात्मक विधाओं जैसे नाटक, नृत्य, गीत-संगीत, कविता, आदि के प्रदर्शन में कमी आइयेगी। साहित्य की सभी विधाओं का स्तर घटेगा और कमज़ोर होँगी। आज आधुनिक युग में लोगों को मोबाइल ने पंगु बना दिया है। मोबाइल आने के बाद लोग लिखना भूल गए हैं। सृजनात्मक लेखन प्रभाग के प्रभारी अरविन्द शर्मा द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया।

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