आज आधी रात से खाली हो जाएगा अनुसूचित जाति आयोग, कौन करेगा सुनवाई?
दिल्ली में मौजूद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के दफ़्तर में अगर नज़र आता है तो ख़तों का अंबार. वो ख़त जिनमें बंद हैं उम्मीदें. इन उम्मीदों को पढ़ने के लिए न तो चेयरमैन हैं और न सदस्य.
दरअसल आज आधी रात से यानि 3 मार्च की रात के बाद इस आयोग में सुनवाई के लिए कोई सदस्य ही नहीं बचेगा. इस आयोग में दो सदस्य ही बचे थे, जिनका कार्यकाल 3 मार्च 2017 तक ही था. यूपी और पंजाब चुनावों में दलितों के वोट तो मांगे गए पर आयोग में उनकी फ़रियाद सुनने वाले ही नहीं हैं.
दिसंबर 2016 में कांट्रेक्ट के तहत बचे-खुचे 18 कर्मचारी भी हटा दिए गए. चेयरमैन न होने से उनका कांट्रेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया. इसलिए अब न नए केसों की फाइलें बनती हैं और न लेटर टाइप होते हैं.
आयोग के सदस्य ईश्वर सिंह बताते हैं कि उन्होंने एक-एक दिन में 50-50 केसों की सुनवाई की है. सारी ताक़त चेयरमैन के हाथ में होती है. उनके बिना समन और वारंट जारी नहीं हो सकते और न टूर प्रोग्राम बन सकते हैं. अब 4 मार्च से आयोग पूरी तरह खाली हो जाएगा. हालांकि चेयरमैन और सदस्यों के न होने की हालत में केस नौकरशाह देख सकते हैं.
आयोग के पूर्व चेयरमैन पीएल पूनिया का आरोप है कि दलितों केसों के समाधान में सरकार की दिलचस्पी नहीं है, वरना एक चेयरमैन का कार्यकाल खत्म होते ही दूसरे की नियुक्ति हो जाती. पूनिया के मुताबिक इस समय आयोग में दलितों से जुड़े करीब 20 हजार केस पेंडिंग हैं.
हालांकि, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावर चंद गहलौत इसकी वजह पांच राज्यों के चुनाव को बताते हैं. उनका कहना है, ‘‘इसी वजह से नियुक्तियां रुकी हुई थीं. आचार संहिता में किसी आयोग के चेयरमैन और सदस्यों का चुनाव नहीं हो सकता. इसी माह आयोग के सभी पद भर दिए जाएंगे.’’
हालांकि संवैधानिक पदों को खाली रखने को संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप सही नहीं मानते. मगर वह कहते हैं, ‘‘मेरे हिसाब से ऐसा करना दंडात्मक भी नहीं है.’’
सुप्रीम कोर्ट के वकील पद्मश्री ब्रह्मदत्त कहते हैं संवैधानिक पद खाली नहीं छोड़े जा सकते. उनका कहना है कि अच्छा होगा कि जल्द से जल्द सरकार इन पदों को भर दे ताकि फ़रियादियों में न्याय की उम्मीद जगे. जब पद ही खाली रहेंगे तो उत्पीड़न के शिकार लोग कहां जाएंगे.