आधार को खत्म नहीं करने जा रहे हैं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली  .  निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को 9 जजों की संवैधानिक बेंच पर सुनवाई हुई। इस दौरान तमाम दलीलें पेश की गईं। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी की कि वह आधार को खत्म नहीं करने जा रही है। महाराष्ट्र सरकार ने दलील दी कि अदालतें निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं कर सकती है, सिर्फ संसद ही ऐसा कर सकती है। निजता के अधिकार विधायी अधिकार हैं, ये मौलिक अधिकार नहीं हैं। संसद चाहे तो संविधान में इसके लिए बदलाव कर सकती है। निजता को अन्य विधायी कानून के तहत संरक्षित किया गया है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने ये दलीलें पेश कीं। वहीं यूआईडीएआई (Unique Identification Authority Of India) की ओर से अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आधार में जो डाटा लिया गया है उसका इस्तेमाल कर अगर सरकार सर्विलांस भी करना चाहे तो असंभव है, आधार ऐक्ट कहता है डेटा पूरी तरह से सुरक्षित है। 

महाराष्ट्र सरकार की ओर से वकील सीएम सुंदरम की दलील

सिर्फ संसद को ये अधिकार है कि वह संविधान के अनुच्छेद में बदलाव कर सकती है और मौलिक अधिकार में निजता के अधिकार का प्रावधान रख सकती है। अगर संसद समझती है कि समय की यह मांग है तो वह ऐसा कर सकती है। संविधान निर्माताओं ने भी निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के दायरे से बाहर रखा है और इसका उद्देश्य साफ है। उन्होंने कहा कि मेरा निजता का अधिकार अन्य तरह के अधिकार के जरिये संरक्षित है जैसे प्रॉपर्टी का अधिकार आदि। जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि ये तमाम अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में है।

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