इन्दौर से नरेन्द्र मोदी? यदि वाराणसी से प्रियंका गांधी…!
इन्दौर । मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी इंदौर के लिए बीजेपी हाईकमान और समन्वय समिति में गहन विचार-विमर्श मंथन चिंतन जारी है बीजेपी के चाणक्य की जिद के चलते इंदौर लोकसभा सीट की उम्मीदवारी लटक गई वहीं वाराणसी से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी की अटकलों ने निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व सैनिक तेज बहादुर के साथ नरेंद्र मोदी की राजनीतिक "नूरां-कुश्ती" को "नाक-आउट" गेम बना दिया है। सोचने पर मजबूर हो गये बीजेपी के सिपहसालार, एक तरफ सोशल साइट्स के कारण बीजेपी की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से गिर रहा वहीं दूसरी और उनकी तमाम घोषणाएं एवं वादे तथा राजनीतिक पैतंरेबाजियां "बेक-फायर" कर रहे, अंतरिम बजट की इनकम टैक्स रेंज से लगाकर मैं भी चौकीदार कैम्पेन और पुलवामा तथा उसके बाद सर्जिकल स्ट्राइक तक राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के लिए "बूमरैंग साबित हो रहे है, वहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के ओएसडी के यहां इनकम टैक्स के छापों ने मध्य प्रदेश में बीजेपी की ही इमेज खराब की।
मध्य प्रदेश की भोपाल एवं इंदौर दोनों ही सीटें बीजेपी के लिए "सुपर-सेफ" है इसलिए बड़ी गंभीरता से नरेंद्र मोदी के लिए इन सीटों पर विचार-विमर्श चिंतन जारी है, बीजेपी कोर कमेटी ही नहीं संघ का भी दबाव है वाराणसी से प्रियंका की उम्मीदवारी के बाद नरेंद्र मोदी के लिए यदि "हलचल" की स्थिति बनती है तो सेफ सीट ढूंढी जाए, संघ और बीजेपी हाईकमान की नजर में ये सीटें ही है, इसके पीछे कई कारण भी है एक तो यदि मध्य प्रदेश से नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी होती है तो उसका सीधा सीधा असर मध्य प्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भी पड़ेगा जहां कुछ समय पहले ही विधानसभा चुनाव में मामूली अंतर से बीजेपी सरकार बनाने से वंचित रह गई वही इन प्रदेशों के कार्यकर्ताओं में छाई हताशा तुरंत ही दूर होने की संभावना बनेगी, तो नरेंद्र मोदी वाराणसी के साथ मध्य प्रदेश की भी किसी सीट पर आ सकते हैं यदि प्रियंका वाराणसी आती है तो।
भोपाल की संभावना इसलिए कम रहेगी कि वहां कांग्रेस अपने "चाणक्य" की उम्मीदवारी घोषित कर चुकी है और यदि भोपाल से नरेंद्र मोदी लड़ते हैं तो दिग्विजय सिंह हार के भी "राजा" बन जाएंगे वैसे अभी भी वे "राजा साहब" तो है ही उनका कद कांग्रेस में और ऊंचा उठ जाएगा, तो बस इंदौर जहां गत 30 वर्षों से सुमित्रा महाजन सांसद है और कांग्रेस के तकरीबन हर दिग्गज को परास्त कर कांग्रेस को ही गर्त में ढकेल चुकी है, इस बार फिर काग्रेंस ने अपने "हारे हुए घोड़े" पर ही दांव लगाया है पकंज संघवी को अपना उम्मीदवार घोषित किया है जो कि सुमित्रा महाजन से ही लोकसभा चुनाव 1998 में तकरीबन पचास हजार वोटों से पराजित हो चुके हैं। बीजेपी से सुमित्रा महाजन की पुनः उम्मीदवारी वैसे तो निश्चित थी पर स्थानीय बीजेपी में उमड़ आयी कांग्रेसी संस्कृति के चलते और स्थानीयो की बीजेपी में "ऊपर तक चली जमावट" के कारण खटाई में आ गई, अंततः उन्हें 75 की केटेगरी एवं अपनी उम्मीदवारी पर हाईकमान की बनती सशंय वाली स्थिति बताते अपने चुनाव न लड़ने का ऐलान सार्वजनिक रूप से प्रेस के सामने करना पड़ गया लेकिन बावजूद उसके इंदौर के लिए कोई "योग्य" उम्मीदवार बीजेपी अभी तक नहीं दे पाई ऐसे में वाराणसी से प्रियंका गांधी की उम्मीदवारी की अटकल आने लगी तो इंदौर को बीजेपी आलाकमान ने संभावना स्वरूप होल्ड पर रख दिया और यदि अब प्रियंका वाराणसी उम्मीदवार होती है तो नरेंद्र मोदी इंदौर से उम्मीदवार भी होंगे।
इंदौर तीन बार सर्व-स्वच्छ शहर का खिताब ले नरेंद्र मोदी के स्वच्छता के सपने को मूर्त रूप दे पूरे देश में चर्चित हो चुका है वहीं सघं का नागपुर के बाद इंदौर ही "सेकंड हेड क्वार्टर" के रूप में प्रतिष्ठित भी है तथा बीजेपी का तकरीबन हर शीर्ष नेता यहां की "जमीन" से जुड़ा हुआ हैं साथ ही यहां कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो बीजेपी के किसी भी उम्मीदवार को टक्कर दे सके तो नरेंद्र मोदी तो "सुपर-फेस" होंगे।
वैसे सुमित्रा महाजन भी नहीं चाहेगी कि इंदौर की चाबी उनसे वह पाए जो उनके मन को ना भाए, सुमित्रा महाजन के इंकार के बाद जो नाम उभर कर आया उस पर बरसों से बीजेपी के ही स्थानीय खेमों में तकरार चल रही है "कभी वे इक्कीस तो कभी ये" वाली स्थिति बनती रहती है और अब जब सुमित्रा महाजन नहीं लड़ रही तो वह कम से कम यह तो जरूर चाहेगी कि कोई ऐसा उम्मीदवार हो जिससे उनकी तकरार ना हो और इसके लिए वो अपनी 30 सालों की "सांसदी" का पूरा अनुभव और रिश्तो का उपयोग करने में भी पीछे नहीं रहेगी और इसी के चलते शायद नरेन्द्र मोदी की दूसरी सीट की संभावना स्वरूप इन्दौर को होल्ड पर रखा गया है तो इंतजार करिए देश का अगला प्रधानमंत्री शायद इंदौर से हो सकता है ।
वैसे भी नरेंद्र मोदी अचंभित फैसलों की घोषणा करने वाले के रूप में ख्यात है इंदौर से भी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के साथ देश को फिर अचंभित कर सकते हैं।
तो यदि वाराणसी से निर्दलीय पूर्व सैनिक तेजबहादुर के अलावा काग्रेंस की प्रियंका गांधी भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में आती है तो बीजेपी के नीति निर्धारक इन्दौर से भी नरेन्द्र मोदी का पर्चा भरवां देगें नहीं तो अभी भी टॉप पर सुमित्रा महाजन ही है उनको ही पुनः चुनाव लडने हेतु मनाने की कोशिश की जाएगी।