इन तीन शुभ मुहूर्त में मनाएं धनतेरस का पर्व, आपको मिलेगी अपार सफ़लता जानिए, कौन सा मुहूर्त है शुभ

धांत्रयोदशी से दीपावली के पर्व का होता है शुभारंभ। मान्यता के दृष्टि से अगर हम बात करें, तो कार्तिक मास की अमावस्या तिथि से पूर्व दो दिन के पहले ही हर वर्ष द्वादशी कि तिथि के दिन धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता हैं।

पौराणिक मान्यताओं के दृष्टिकोण से इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। जिसके कारण इस दिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा ।
दीपावली के 2 दिन के उपरांत यानी धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा होती है। अब ये तो इस त्यौहार को मनाने की बात हो गई, क्या आप जानते है? भगवान धन्वंतरि है कौन । अगर नहीं तो हम आपको बताएंगे इनके बारे में, कहा जाता है भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई। वे समुद्र से अमृत का कलश लेकर उत्पन्न हुए थे। जिस अमृत के लिए देवों और असुरों में संग्राम हुआ था। हालांकि धन्वंतरि वैद्य एवं आयुर्वेद के जनक के रूप में भी जाने जाते है, उन्होंने विश्व कि तमाम वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे गुण एवं प्रभाव के बारे में जानकारियां हासिल की और प्रकट भी किया । धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब मात्र धन्वंतरि संहिता ही मिल पाती है, जो समस्त आयुर्वेद का मूल स्वरूप एवं ग्रंथ है। कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसापूर्व हुए थे। धनतेरस के दिन उनका जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु, और यश एवं तेज ,कीर्ति के आराध्य देवता के रूप में पूजे जाते हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता इत्यादि में इनका उल्लेख मिलता हैं। धन्वंतरि के नाम से और भी कई सारे आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरी था। भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु के अंशांश अवतार के रूप में माना जाता है ।

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पौराणिक समय से ही मान्यता हैं, की केवल हमारे धरा पर गंगा का पूर्ण वाश कलयुग के अंत तक विराजमान रहेगा, और ये भी मान्यता है, कि गंगा में स्नान करने से आत्मा को शुद्धि एवं शांति प्राप्त होती है,और हमारे अनिष्ठ कर्मों एवं पापों से मुक्ति प्रदान होती है, कहा जाता हैं,की धनतेरस के दिन गंगा स्नान करने से हमारे भौतिक शरीर को पवित्रता प्रदान होती है । इस दिन भगवान धन्वंतरि की पंचोपचार पद्धति से पूजा करें।

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पंचोपचार पद्धति में हम सबसे प्रथम कार्य पंचदेव पूजन करते हैं। जिसमें पांच देवताओं की पूजन की जाती है। प्रथम श्री गणेश जी की पूजा उसके बाद भोलेनाथ जी की फिर माता दुर्गा एवं विष्णु और सूर्यदेव की विशेष पूजा की जाती हैं।

सबसे पहले हम भगवान धन्वंतरि का चित्र रखें, जिसमें वो अपने हाथों में अमृत कलश लिए हो ।
उसके तत्पश्चात उस चित्र को धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आरती से उनकी विशिष्ठ पूजा करें, जिससे आपको उचित फल एवं सुख शांति समृद्धि प्राप्त होगी ।

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि जी की पूजा करने से आरोग्य एवं धन लक्ष्मी की पूर्ति एवं समृद्धि प्राप्त होगी, इन सभी कार्यों को करने से बन सकता है । आपका अच्छा योग प्रातः काल में 8 बज के 18 मिनट से लेकर 9 बज के 14 मिनट तक शुभ मुहूर्त का कालचक्र का विशेष योग बन रहा हैं, जिसमें इन कार्यों को प्रातः काल के समय में करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होगी ।

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मध्यस्था का सायंकाल 2 बज के 51 मिनट से लेकर 3 बज के 47 मिनट तक है। जिसमें भगवान धन्वंतरि के पूजा के उपरांत (दोपहर ) के समय में नवीन वस्तुओं का खरीद करें ।

नवीन वस्तुओं को खरीदते समय ध्यान रखें कि उस खरीदी हुई वस्तु में चांदी की कोई भी वस्तु का होना आवश्यक हैं । माना जाता है, कि धनतेरस के दिन चांदी कि किसी भी वस्तु की खरीद करने से पूरे वर्ष भर सुख समृद्धि बनी रहती है, अगर इन सभी विशेष क्रियाओं को अपनाएंगे तो आपको अवश्य ही धन, यश,कृति,समृद्धि की प्राप्ति होगी, और आपको वर्ष भर सुख कि प्राप्ति मिलेगी।

आसानी से देखिए अपनी जन्म कुंडली मुफ़्त में, यहाँ क्लिक करेंसायंकाल का मुहूर्त है, शुभ जाने क्रियाविधि:

सायंकाल के शुभ समय रात्रि 9 बज के 55 मिनट से लेकर 11 बजे तक रहेगा। धनतेरस के दिन शाम के समय यमराज के दीपदान करें। जिसे हम यम (दीप दान) के नाम से जानते है।

घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर और गेरू से लेपन करें, उसके पश्चात मिट्टी के दो दियों में तेल डालकर दिये को प्रज्ज्वलित करें,और दीप मंत्र का जाप भी करें, जिससे निरंजन भगवान का वास रहेगा,और आपके समस्त जीवन के अंधेरे से आपको मुक्ति प्रदान होगी । मंत्र का उच्चारण आपको इस प्रकार करना होगा ।

' दीप ज्योती नमोस्तुते ' मंत्र का जाप करते रहें, और अपने मुख कि दिशा को दक्षिण की ओर रखें ।

धनतेरस के दिन ' यम दीपदान ' करने से परिवार में किसी भी व्यक्ति की अकाल मृत्यु नहीं होगी, और उस आयु में वृद्धि प्राप्त होगी ।

शास्त्र के अनुसार प्रदोष कल जिसे हम सायंकाल कहते है, शाम का समय सूर्यास्त के दो घड़ी के अनुसार अर्थात् 48 मिनट तक रहता है।

मतांतर के प्रमुख विद्वान ने इसे 1 घड़ी (24 मिनट) सूर्यास्त से पूर्व तथा 1 घड़ी (24 मिनट) सूर्यास्त के पश्चात तक का भी माना हैं।

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