उत्तराखंड: 300 % महंगी हुई मेडिकल की पढ़ाई, विरोध शुरू
नई दिल्ली छात्रों-युवाओं या यूं कहें कि देश के भविष्य की वर्तमान दशा चिंताजनक है. छात्र सड़क पर बेहतर शिक्षा की मांग को लेकर सड़कों पर हैं, युवा रोजगार के लिए लगातार अपनी आवाज बुलंद किए हुए हैं, जबकि हर एक बीते दिन के साथ देश में शिक्षा महंगी होती जा रही है.
ताजा मामला उत्तराखंड का है, जहां राज्य की बीजेपी सरकार ने 3 प्राइवेट मेडिकल कालेजों को मनमानी फीस लेने का अधिकार दे दिया है. अधिकार मिलने के बाद मनमानी करते हुए कॉलेजों ने गेजुएट और पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्सेज की फीस करीब 300 फीसदी तक बढ़ा दी है. ये खबर सुनने के बाद इन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों के सपने 'अच्छे दिनों' के शोर में बिखरने लगे हैं.
इन तीन कॉलेजों ने बढ़ाई फीस
सूत्रों के अनुसार फीस बढ़ाने में देहरादून के स्वामी राम हिमालयन यूनिवर्सिटी का हिमालयन मेडिकल कॉलेज, SGRR यूनिवर्सिटी का SGRR मेडिकल कॉलेज और सुभारती यूनिवर्सिटी का सुभारती मेडिकल कॉलेज शामिल हैं.
जहां SGRR मेडिकल कॉलेज और हेल्थ साइंसेज कॉलेज ने प्रथम वर्ष की एमबीबीएस ट्यूशन फीस को 5 लाख से बढ़ाकर 19.76 लाख रुपये करने का निर्णय लिया है. वहीं एमडी इन जनरल मेडिसिन के पोस्ट-ग्रेजुएशन कोर्स की पहले वर्ष की फीस 7.38 लाख रुपये से बढ़ाकर 26.6 लाख रुपये कर दी गई.
बढ़ी हुई फीस घोषित होने के बाद छात्रों ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है, छात्र कॉलेज प्रबंधन से अपना फैसला वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
देखें बढ़ी हुई फीस के आंकड़े
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी तक उत्तराखंड के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस के पहले साल की फीस 6 लाख 70 हजार थी, जो अब 23 लाख कर दी गई है. दूसरे साल की फीस 7 लाख 25 हजार को 20 लाख रुपये कर दिया गया है. वहीं तीसरे साल की फीस को 7 लाख 36 हजार से बढ़ाकर 26 लाख रुपये कर दिया गया है.
दूसरे साल के छात्रों से भी ली जाएगी फीस
मेडिकल कॉलेज में पढने वाले जो छात्र दूसरे साल में पहुंच गए हैं, उनसे पहले साल की बकाया फीस ली जाएगी. यानी दूसरे साल के छात्रों को भी फीस में कोई छूट नहीं दी जाएगी.
क्या कहा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने
फीस बढ़ने के मामले में उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र रावत ने कहा है कि एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज बनाने में 700-800 करोड़ लगते हैं, सरकार इन्हें स्थापित करने के लिए कोई सहायता प्रदान नहीं करती है.
उन्होंने कहा, 'सरकार राज्य में निवेशकों का स्वागत करना चाहती है, इसलिए हमने प्राइवेट मेडिकल संस्थानों को अपनी फीस तय करने की अनुमति दी है. हालांकि, यदि संस्थान जरूरत से ज्यादा फीस लेते है तो सरकार हस्तक्षेप करेगी.'
कैबिनेट बैठक में हुआ था फैसला
बता दें कि फीस वृद्धि के मामले में कॉलेजों को छूट देने का फैसला त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की कैबिनेट बैठक में लिया गया था. इस फैसले को लेकर कैबिनेट बैठक में कहा गया था कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज खुद यूनिवर्सिटी हैं, इसलिए MD (डॉक्टर ऑफ मेडिसिन) और MS (मास्टर इन सर्जरी) की पढ़ाई के लिए फीस निर्धारण का अधिकार देने का फैसला लिया गया.
एडमिशन एंड फीस रेगुलेटरी कमेटी ने कैबिनेट के फैसले को मंजूरी दे दी थी. मंजूरी मिलने के बाद MD और MS कोर्स की फीस को करीब 300 प्रतिशत बढ़ा दिया गया.
बता दें कि यहां पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र डोनेशन वाले नहीं, बल्कि मध्यम और गरीब परिवार से हैं. जो दिन रात एक करके 'नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट' (NEET) की परीक्षा पास कर मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने का सपना देखते हैं.
वहीं ऐसे कई छात्र हैं जो लोन लेकर प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन तो ले लेते हैं, लेकिन डॉक्टर बनने के बाद सारी जिंदगी लोन चुकाते रहते हैं. इन छात्रों की परीक्षा अप्रैल से शुरू होने वाली है. वहीं ये पढ़ाई छोड़कर सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं.
अब सोचने वाली बात ये है कि जिन छात्रों से आने वाले देश का भविष्य संवरने वाला है, उन्हीं छात्रों से शिक्षा का अधिकार छीना जा रहा है. छात्र पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन इतनी अधिक फीस में पढ़ाई कैसे करें?