कहीं हो ना जाए सरकार की किरकिरी! राष्ट्रपति अभिभाषण में 651 संशोधन प्रस्ताव आए
मोदी सरकार के संसद में फ्लोर मैनेजमेंट का खराब इतिहास देखें तो उसे संसद में एक बार फिर शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है. ऐसा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हो सकता है.
संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण बिना किसी संशोधन के पास करने की परंपरा रही है. लेकिन पिछले दो सालों से सरकार को राज्यसभा में शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है. इस बार विपक्ष ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर 651 संशोधन प्रस्तावित किए हैं.
2016 में विपक्ष ने जुड़वाया एक वाक्य
पिछले साल राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान विपक्ष ने एक वाक्य जुड़वाया था. इस वाक्य में कहा गया था कि सरकार सभी स्तरों पर चुनाव लड़ने के लिए सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए वचनबद्ध है. इसे पीएम नरेंद्र मोदी की अपील को दरकिनार करते हुए विपक्ष ने संशोधन में जुड़वाया.
उच्च सदन में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने यह संशोधन पेश किया था. आजाद ने राजस्थान और हरियाणा में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के प्रावधान के संदर्भ में यह संशोधन पेश किया था. प्रस्ताव पर मतदान से फैसला किया गया. सदन में मौजूद 155 सदस्यों में से 94 सदस्यों ने संशोधन के पक्ष में मतदान किया था.
2015 में येचुरी का प्रस्ताव हुआ था मंजूर
2015 में राष्ट्रपति के अभिभाषण में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी नें कालाधन और भ्रष्टाचार का मुद्दा अपने संशोधन के जरिए जुड़वाया था. तब येचुरी ने इस बात पर खेद जताया था कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में कालेधन और भ्रष्ट्राचार के खिलाफ लड़ने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का जिक्र नहीं किया गया है.
कांग्रेस की सरकार ने कभी नहीं झेली यह शर्मिंदगी
देश में सबसे ज्यादा सालों तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी की सत्ता के दौरान एक बार भी ऐसा मौका नहीं आया. वर्तमान राजग सरकार के कार्यकाल से पहले केवल तीन बार ही राष्ट्रपति के अभिभाषण में संशोधन किया गया था. सबसे पहली बार जनता पार्टी के शासन काल में 30 जनवरी 1980 को ऐसा हुआ था. उसके बाद 1989 में ऐसा हुआ जब वीपी सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार थी. तीसरी बार 12 मार्च 2001 को ऐसा हुआ था, जब अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार सत्ता में थी.
क्या है राज्यसभा की वर्तमान दलीय स्थिति
कुल सीटें 245