”गीता” को तो छोड़ ही दो ये नही जानते ”खेती” “उपवास” और “गाँधी”
नई दिल्ली। अजीब सा मजाक बना दिया है, इन प्रतिमानों का। भारत की महान परम्परा और उसकी शक्ति को सड़क पर लाकर मटियामेट करने की कोशिश में लगी इन विभूतियों के खिलाफ क्या किया जाये। समझ से बाहर है। सबसे पहले खेती। बकौल शिवराज सिंह वे एक अच्छे किसान है, थोड़ी जमीन में लाखों का मुनाफा कमाने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार करते हैं। हे! उन्नत किसान अपना फार्मूला आत्महत्या करते किसी किसान को बता दो, उपवास से ज्यादा पुण्य लगेगा। उपवास का अर्थ ईश्वर के संग वास होता है। जो शायद यह नहीं है। उपवास भक्ति की वह श्रेणी है जो आत्म कल्याण या जन कल्याण के लिए की जाती है। उसकी आड़ में राजनीति करना या कुछ और करना पाप की श्रेणी में आता है। उपवास का जवाब उपवास देकर कांग्रेस भी कोई पुण्य नही कर रही है। यह सब राजनीति है, ढोंग है। “रोजे” “उपवास” और “फ़ास्ट” की महिमा को खत्म मत कीजिये। इनमे शक्ति है और प्रदर्शन से इनकी पवित्रता समाप्त होती है।
अमित शाह को माफ़ी देना चाहिए या नहीं। गाँधी के बारे में ऐसा जुमला उछालने के बाद। अमित शाह को तो यह सोचना ही चाहिए था की गाँधी सिर्फ आज़ादी के लिए ही जेल गये थे। उनके विरुद्ध ब्रिटिश सरकार कभी कोई झूठा आपराधिक मुकदमा तक दर्ज नहीं कर सकी थी। गाँधी के चरित्र पर टिप्पणी करने से पूर्व अपनी राजनीतिक यात्रा पर दृष्टिपात करते तो हिम्मत ही नहीं होती, खड़े होने की, बोलना तो दूर है। जिस व्यक्ति ने ब्रितानी शेरों और सांप्रदायिक ज़हर वाले सांपों पर जीत हासिल की, वह चतुर बनिया से कहीं अधिक था। अमित शाह ने रायपुर में कहा था, "गांधी चतुर बनिया था। गांधी को मालूम था कि कांग्रेस का आगे क्या हश्र होने वाला है, इसीलिए उन्होंने आज़ादी के बाद तुरंत कहा था कि कांग्रेस को बिखेर देना चाहिए। महात्मा गांधी ने नहीं किया, लेकिन अब कुछ लोग उसको बिखेरने का काम समाप्त कर रहे हैं