चीन की BRI परियोजना पर अंकुश लगाने में भारत सफल: अमेरिका

वाशिंगटन । दक्षिण एशिया में चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआइ) पर लगाम लगाने में भारत को कुछ हद तक सफलता मिली है। एक अमेरिकी विशेषज्ञ ने यह राय व्यक्त की है। भारत ही दुनिया का एकमात्र ऐसा बड़ा देश है जिसने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का विरोध किया है। बीआरआइ का जोर एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच बेहतर संपर्क और सहयोग बढ़ाने पर है।


अमेरिका के जर्मन मार्शल फंड के वरिष्ठ ट्रांसअटलांटिक फेलो ऐंड्रयू स्मॉल ने कहा, 'भारत ने दक्षिण एशिया में बेल्ट एंड रोड पहल पर कुछ हद तक लगाम लगाई है।' ओबोर कही जाने वाली सिल्क रोड परियोजना की प्रमुख योजना सीपीईसी को लेकर भारत ने संप्रभुता संबंधी चिंता जताई थी। यही कारण है कि पिछले साल मई में बेल्ट एंड रोड फोरम से भारत दूर रहा।

अमेरिका-चीन आर्थिक एवं सुरक्षा समीक्षा आयोग में सुनवाई के दौरान स्मॉल ने कहा कि श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश में चीन पर अंकुश लगाने में भारत कुछ हद तक कामयाब रहा है। उन्होंने कहा कि सिल्क रोड इकोनामिक बेल्ट और यूरो एशियन यूनियन के विलय पर रूस का समर्थन पाने के लिए चीन ने राजनीतिक तौर पर कड़ी मेहनत की। कुछ शर्तो के साथ जापान से भी समर्थन लेने की कोशिश की। लेकिन पहले चरण में वह भारत पर वैसे राजनीतिक प्रयास नहीं कर पाया। भारत ने सीपीईसी का विरोध किया, जिसके बारे में चीन ने नहीं सोचा था। अब चीन को भी इस क्षेत्र में विपरीत परिणाम मिल रहे हैं। 


ग्वादर को सुरक्षा के लिए खतरा मानता है भारत 


एक अन्य विशेषज्ञ के मुताबिक, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत स्थित ग्वादर बंदरगाह को भारत अपने लिए खतरा मानता है। एशिया-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम के सीनियर फेलो डेनिएल क्लिमैन ने कहा कि अगर चीन ग्वादर में अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाता है तो वह अरब सागर में भारतीय नौसेना की गतिविधियों की निगरानी करने में सक्षम हो जाएगा।


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