जलियांवाला बाग: उस दिन गोलियां कम पड़ गईं वरना…
भारतीय इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक, जलियांवाला बाग जनसंहार की आज बरसी है. आज ही के दिन 13 अप्रैल 1919 को ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में बैसाखी के मौके पर इकट्ठे हजारों निहत्थे मासूम भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी थीं. इस भीड़ में महिलाएं और बच्चे भी थे. जलियांवाला बाग की चारों तरफ बड़ी बड़ी दीवारें बनी हुई थीं और तब वहां बाहर जाने के लिए सिर्फ एक मुख्य द्वार था और दो-तीन छोटी गलियां ही थीं.
जनरल डायर यहां 50 बंदूकधारी सिपाहियों के साथ पहंचा और बिना किसी पूर्व सूचना के भारतीयों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. एक अनुमान के मुताबिक यह फायरिंग 10 मिनट तक चलती रही और उन मासूम भारतीयों पर लगभग 1650 राउंड की फायरिंग की गई. इस गोलीबारी में लगभग 1000-2000 भारतीय मारे गए और कई गंभीर रूप से घायल हुए.
और गोलियां रहती तो और भारतीयों को मारा जाता
मासूम और निहत्थे भारतीयों का खून बहाने वाले जनरल डायर पर इस घटना का कोई असर नहीं हुआ, उल्टा उसने इस जनसंहार को सही ठहराया था. घटना के बाद डायर ने कहा कि यह जनसंहार दूरगामी प्रभाव के लिए ज़रूरी था. यही नहीं, उसने स्वीकार किया कि अगर और गोलियां होतीं तो फ़ायरिंग और देर तक जारी रहती। इसका सीधा मतलब ये था कि अगर डायर के सिपाहियों की गोलियां ख़त्म नहीं होतीं तो जलियांवाला में और लाशें गिरतीं.
अक्टूबर 1919 में ब्रिटिश सरकार ने इस घटना की जांच के लिए हंटर कमेटी का गठन किया. हंटर कमेटी की सुनवाई के दौरान 19 नवंबर 1919 को लाहौर में सुनवाई के दौरान डायर ने सर चिमनलाल सीतलवाड़ के सवालों का जवाब दिए जो चौंकाने वाले थे. सर चिमनलाल सीतलवाड़ ने अपनी आत्मकथा 'रिकलेक्शनंस एंड रिफ्लेक्शंस' में डायर ने उनके सवालों का जवाब देते हुए कहा कि जलियांवाला बाग़ में हथियारबंद गाड़ियां ना पहुंच पाने से वो मासूमों पर मशीनगन से गोलीबारी नहीं करवा पाया.
अगर गाड़ियां पहुंच जातीं तो वो उनसे भी भारतीयों पर गोलवी चलवाता. डायर ने कोर्ट में सीतलवाड़ के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि वो वहां सज़ा देने गया था और अगर उसे मौका मिलता तो वो केवल अमृतसर ही नहीं पूरे पंजाब में ऐसा कुछ करता क्यूंकि वो भारतीयों का हौसला तोडना चाहता था, भारतीय बागियों का हौसला.
डायर ने भारतवासियों को मारा पर उनके आज़ाद भारत के सपने को नहीं
इस हत्याकांड के बाद रवीन्द्र नाथ टैगोर जी ने विरोध के रूप में अपनी 'नाइटहुड' की उपाधि को वापस लौटा दिया था. डायर ने भले मासूमों का क़त्ल करवाया पर वो आज़ादी के सपने की हत्या नहीं कर सका. घटना के बाद आज़ादी की ज्वाला और ज़ोरों से भड़कने लगी, उन दिनों संचार के साधन कम होने के उपरान्त भी इस जनसंहार की ख़बर पूरे देश में आग की तरह फैल गई. आज़ादी के सपने को कुचलने के लिए करवाए गए इस जनसंहार ने उल्टा आज़ादी की आग को बच्चे-बच्चे के सीने में भड़का दिया.