तीन तलाक पर आज कोर्ट सुनाएगा ‘सुप्रीम’ फैसला

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को तीन तलाक मामले में फैसला सुनाने जा रही है। देश भर की नजर इस फैसले पर होंगी। सुप्रीम कोर्ट में 11 मई से लेकर 18 मई तक इस मामले में पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक की संवैधानिक वैधता के बारे में अपना ऐतिहासिक फैसला देगी।

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा था कि वह तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को परखेगा। क्या तीन तलाक धर्म का अभिन्न अंग है या नहीं? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में क़ुरआन, शरियत एक्ट और इस्लामिक कानून के इतिहास पर जोरदार बहस हुई। साथ ही संविधान के अनुच्छेदों पर विस्तार से दलीलें पेश कीं गईं। संविधान के अनुच्छेद-13(संविधान के दायरे में कानून) , 14 (समानता का अधिकार), 15 (जेंडर, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार), 21 (मान सम्मान के साथ जीने का अधिकार) और 25 (पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और नैतिकता के दायरे में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) पर बहस हुई।

 

याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील अमित चड्ढा ने कहा कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रैक्टिस की बात है। तीन तलाक अनुच्छेद 25 में संरक्षित नहीं हो सकता। धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है। ऐसे में इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षित कैसे किया जा सकता है। राम जेठमलानी ने तीन तलाक के खिलाफ दलील पेश करते हुए कहा कि अनुच्छेद-13 के तहत कानून की बात है। जो भी कानून है वह संविधान के दायरे में होगा। मूल अधिकार को जो कानून, रेग्युलेशन या परंपरा उल्लंघन करेगा वह मान्य नहीं हो सकता।

ऑलं इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दलील दी गई कि तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है। क़ुरआन में तलाक के लिए पूरी प्रक्रिया बताई गई है। पैगंबर की मौत के बाद हनीफी में जो लिखा गया, वह बाद में आया है। उसी में तीन तलाक का जिक्र आया है। क़ुरआन में तीन तलाक का कहीं भी जिक्र नहीं है। क़ुरआन इस्लामिक शास्त्र है। अगर किसी बात पर कोई संशय है तो वह क़ुरआन को देखेगा। अल्लाह ने यही कहा है।

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा…
संविधान कहता है कि जो भी कानून मौलिक अधिकार के खिलाफ है, वह कानून असंवैधानिक है। कोर्ट को इसे संविधान के दायरे में देखना चाहिए ये मूल अधिकार का उल्लंघन करता है। तीन तलाक महिलाओं के मान सम्मान और समानता के अधिकार में दखल देता है। ऐसे में इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए। पर्सनल लॉ धर्म का पार्ट नहीं है। अनुच्छेद 25 के दायरे में शादी और तलाक नहीं है। साथ ही वह पूर्ण अधिकार नहीं है। शरियत एक्ट 1937 में बनाया गया था। अगर कोई कानून लिंग समानता, महिलाओं के अधिकार और उसके गरिमा को प्रभावित करता है तो वह कानून अमान्य होगा और ऐसे में तीन तलाक अवैध है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील
उनके वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परंपरा की बात है और संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है। 14 सौ साल से आस्था चली आ रही है। सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेग्युलेट करने के लिए कानून बना सकता है। हि्ंदू में आस्था है कि राम अयोध्या में पैदा हुए हैं। ये आस्था का विषय है। अनुच्छेद 14 स्टेट कार्रवाई की बात करता है पर्सनल लॉ की नहीं। सिब्बल ने कहा, 'तीन तलाक पाप है और अवांछित है हम भी बदलाव चाहते हैं, लेकिन पर्सनल लॉ में कोर्ट का दखल नहीं होना चाहिए। निकाहनामा में तीन तलाक न रखने की शर्त के बारे में लड़की कह सकती है कि पति तीन तलाक नहीं कहेगा। मुस्लिम का निकाहनामा एक कॉन्ट्रैक्ट है। सहमति से निकाह होता है और तलाक का प्रावधान उसी के दायरे में है।'

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