तीन तलाक पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, 5 में से 3 जजों ने बताया असंवैधानिक

नई दिल्ली  . देश के सबसे जटिल सामाजिक मुद्दों में से एक तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यों की संविधान बेंच ने मंगलवार को अपना फैसला सुना दिया। पांच में से तीन जजों जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस नरीमन और जस्टिस यूयू ललित ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया। दोनों ने जस्टिस नजीर और सीजेआई खेहर की राय का विरोध किया। तीनों जजों ने तीन तलाक को संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार दिया। जजों ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है। इस फैसले का मतलब यह है कि कोर्ट की तरफ से इस व्यवस्था को बहुमत के साथ खारिज किया गया है। कोर्ट ने मुस्लिम देशों में ट्रिपल तलाक पर लगे बैन का जिक्र किया और पूछा कि भारत इससे आजाद क्यों नहीं हो सकता?

6 महीने में बने कानून

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि संसद को इस मामले पर कानून बनाना चाहिए। कोर्ट ने कानून बनाने के लिए 6 महीने का वक्त दिया है। सबसे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने अपना फैसला पढ़ा। चीफ जस्टिस ने कहा कि तीन तलाक संविधान के आर्टिकल 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव के खिलाफ अधिकार), 21 (मान सम्मान के साथ जीने का अधिकार) और 25 (पब्लिक ऑर्डर, हेल्थ और नैतिकता के दायरे में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन नहीं है। चीफ जस्टिस के मुताबिक, यह प्रथा सुन्नी समुदाय का अभिन्न हिस्सा है और यह प्रथाा 1000 सालों से चली रही है।

चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस नजीर ने अल्पमत में दिए फैसले में कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रैक्टिस है, इसलिए कोर्ट इसमें दखल नहीं देगा। हालांकि दोनों जजों ने माना कि यह पाप है, इसलिए सरकार को इसमें दखल देना चाहिए और तलाक के लिए कानून बनना चाहिए। दोनों ने कहा कि तीन तलाक पर छह महीने का स्टे लगाया जाना चाहिए, इस बीच में सरकार कानून बना ले और अगर छह महीने में कानून नहीं बनता है तो स्टे जारी रहेगा। खेहर ने यह भी कहा कि सभी पार्टियों को राजनीति को अलग रखकर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए।

खचाखच भरा हुआ था कोर्ट रूम

फैसले के वक्त कोर्टरूम नंबर 1 पूरी तरह खचाखच भरा हुआ था। कोर्ट रूम के बाहर तक वकीलों और पत्रकारों की भीड़ मौजूद थी। अमूमन फैसला सुनाए जाते वक्त कोर्टरूम के दरवाजे बंद होते हैं, लेकिन आज दरवाजे खुले थे। फैसला सुनाए जाते वक्त सभी याचिकाकर्ता और पक्षकार कोर्ट में मौजूद थे। बता दें कि चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाले 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 11 मई से 18 मई तक सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। रोचक बात यह है कि इस केस की सुनवाई करने वाले पांचों जज अलगअलग समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। चीफ जस्टिस खेहर सिख समुदाय से हैं तो जस्टिस कुरियन जोसेफ ईसाई हैं। आर. एफ नरीमन पारसी हैं तो यू.यू. दलित हिंदू और अब्दुल नजीर मुस्लिम समुदाय से हैं।

तीन तलाक के खिलाफ क्या दी गई थीं दलीलें

याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील अमित चड्ढा ने कहा था कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रैक्टिस की बात है। तीन तलाक अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं हो सकता। धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है। ऐसे में इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत संरक्षित कैसे किया जा सकता है? तीन तलाक पीड़ितों में से एक की ओर से अदालत में पेश सीनियर वकील राम जेठमलानी ने इस प्रथा की कठोर शब्दों में आलोचना की थी। जेठमलानी ने तीन बार तलाक को 'घृणित' बताते हुए कहा था कि यह महिलाओं को तलाक का समान अधिकार नहीं देता। जेठमलानी ने कहा था, 'शादी तोड़ने के इस तरीके के पक्ष में कोई दलील नहीं दी जा सकती। शादी को एकतरफा खत्म करना घिनौना है, इसलिए इससे दूरी बरती जानी चाहिए।' वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दलील दी गई कि 3 तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है। बोर्ड ने बताया कि कुरान में तीन तलाक का कहीं भी जिक्र नहीं है।

 

केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि संविधान कहता है कि जो भी कानून मौलिक अधिकार के खिलाफ है, वह कानून असंवैधानिक है। कोर्ट को इस मामले को संविधान के दायरे में देखना चाहिए। यह मूल अधिकार का उल्लंघन करता है। तीन तलाक महिलाओं के मानसम्मान और समानता के अधिकार में दखल देता है। ऐसे में इसे असंवैधानिक घोषित किया जाए। सरकार ने कहा था कि पर्सनल लॉ धर्म का हिस्सा नहीं है। अनुच्छेद 25 के दायरे में शादी और तलाक नहीं हैं। साथ ही वह पूर्ण अधिकार नहीं है। शरीयत ऐक्ट 1937 में बनाया गया था। अगर कोई कानून लिंग समानता, महिलाओं के अधिकार और उसकी गरिमा को प्रभावित करता है तो वह कानून अमान्य होगा और ऐसे में तीन तलाक अवैध है।

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