दुर्दशा / भरुच के मछुआरों ने प्रधानमंत्री मोदी को खून से लिखा खत
भरुच. नर्मदा नदी की दुर्दशा देख न तो सरकार को कुछ फर्क पड़ा और न ही नेताओं को लेकिन मछुआरों का खून जरूर खौल उठा है। नर्मदा डेम से 6 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग के साथ मछुआरों सहित विभिन्न संगठनों की लड़ाई चल रही है, लेकिन 4 साल में नदी को सरकार ने सूखा कर रख दी है।
खून से लिखा खत प्रशासन को सौंपा
भरूच शहर के मछुआरों ने 2010 से अभी तक 70 बार आवेदन पत्र सौंप कर अनेक स्तर मांग उठाई है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गुरूवार को 71वीं बार मछुआरों ने खून से लिखे प्रार्थना पत्र को प्रशासन को सुपुर्द किया है। नर्मदा डेम से डाउन स्ट्रीम में सिर्फ 600 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। 161 किलोमीटर के डाउन स्ट्रीम के लिए यह पानी बहुत कम पड़ रहा है जिससे नर्मदा नदी सूख गई है। नर्मदा नदी सूखने से मछुआरे, खेती, पर्यटन तथा धार्मिक क्षेत्र पर इसका असर देखने को मिल रहा है।
लड़ाई जारी है
मछुुआरा समाज नर्मदा नदी को जीवित रखने के लिए 6 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग के साथ 2010 से लड़ाई लड़ रहा है। माछी मार अग्रणियों ने बताया कि अभी तक 70 से अधिक बार आवेदन पत्र सौंपा गया है लेकिन अभी तक कोई निराकरण नहीं हो सका है। अब माछीमार समाज के खून से प्रार्थना पत्र लिखकर पीएम मोदी तक को सिफारीश की गई है। नर्मदा मैया को जीवित रखने माछी मार समाज खून का बलिदान देने को तैयार है।
2 मछुआरों ने 20 एमएल खून से 90 मिनट में 6 पन्नों का प्रार्थना पत्र तैयार किया
2010 से माछी मार समाज मांग उठाता रहा है।
70 से अधिक बार आवेदन पत्र सौंपा गया है।
600 क्यूसेक पानी डेम से नदी में छोड़ा जा रहा है।
6000 क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग की जा रही है।
161 किमी डेम से भाडभुत तक का डाउन स्ट्रीम विस्तार।
20 एमएल खून प्रार्थना पत्र लिखने के लिए उपयोग किया गया।
02 लोगों ने पत्र के लिए रक्तदान किया।
90 मिनट में 6 पन्नों का प्रार्थना पत्र लिखा गया।
पत्र में यह लिखा
जय भारत के साथ प्रार्थना है कि सरदार सरोवर डेम से पानी नहीं छोड़े जाने के कारण गुजरात राज्य के वडोदरा, नर्मदा और भरूच जिले से 12 महीने दोतरफा बहने वाली पश्चिम भारत की सबसे बड़ी मां नर्मदा सूख कर नमक का रेगिस्तान बन गई है। हजारों तीर्थस्थान बंजर हो गए है। मां नर्मदा परिक्रमा खंडित हो गई है। लोगों की धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुंच रही है। पशु-पक्षी प्यास से मर रहे है। विश्व की सबसे पुरानी मां नर्मदा संस्कृति और जीव सृष्टि का विनाश हो रहा है। किनारे के हजारों किसान, मछुआरे बेरोजगार हो रहे है।
भरुच में पानी नहीं
जनसंख्या बढ़ने से उद्योगों में बढ़ोत्तरी, झनोर, मंगलेश्वर, नांद के इंटेक पंपिंग स्टेशनों से 2 हजार क्यूसेक से ज्यादा पानी खिंच लेने से डेम के नीचे की ओर छोड़ा जा रहा 600 क्यूसेक पानी की एक बूंद भी भरूच के नर्मदा सागर संगम तक पहुंच नहीं रही है। और मां नर्मदा नदी के 60 किलोमीटर से ज्यादा पट में समुद्र बस गया है, नदी में 20 से 25 फीट का भराव हो चुका है। अभी डेम में 119.50 मीटर से ज्यादा पानी भरा हुआ है। फिर भी डेम के पानी को उद्योगों को बड़ी मात्रा में दिया जा रहा है। लेकिन डेम के नीचे की ओर मां नर्मदा नदी को जिंदा रखने के लिए पानी छोड़ा नहीं जा रहा है। गुजरात राज्य में पानी का असमान बंटवारा होने के कारण मां नर्मदा को विनाशक स्थिति को लेकर गुजरात राज्य में और खास तौर पर वडोदरा, नर्मदा और भरूच जिले की जनता और हम काफी आक्रोशित है। ऐसी विनाशक स्थिति खास तौर पर सरदार सरोवर डेम के गेट बंद होने के बाद हुई है।
90 मिनट में ही 6 पन्नों का प्रार्थना पत्र
समस्त भरूच शहर माछी मार समाज के कमलेश मढीवाला और हीरल ढीमरे ने 20 एमएल खून दिया था। इस खून से संजय माछी नामक पेंटर ने 90 मिनट में ही 6 पन्नों का प्रार्थना पत्र तैयार किया था। जिसे कलेक्टर के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी और सरदार सरोवर नर्मदा निगम के अध्यक्ष को भेजा गया है।